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________________ १३२ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ और उसकी दोनों पत्नियों-ललितादेवी और बैजलादेवीकी तथा आठवें खण्डमें तेजपाल और उनकी पत्नी अनुपमाकी मूर्तियां बनी हुई हैं। इस मन्दिरके बाहर एक बगीचेमें दादा साहबकी पगल्याँ और एक स्तम्भ बना हुआ है । इसके निकट लूणिगवसहि है। यह मन्दिर भी वस्तुपाल-तेजपालने अपने बड़े भाईके नामपर बनवाया था। लूणिगका बाल्यकालमें ही निधन हो गया था। इससे आगे पित्तलहर मन्दिर है। इसे गुर्जर जातिके भामाशाह महाजनने बनवाया था। महाराणा सांगाने इन्हें रणथम्भौरका किलेदार नियुक्त किया था। इसकी प्रतिष्ठा अहमदाबादके सुलतान मुहम्मद बेगड़ाके मन्त्री सुन्दर व गदाने संवत् १५२५ में करायी थी। इस मन्दिरमें भगवान ऋषभदेवको १०८ मनकी पंचधातुको प्रतिमा है । दायों ओर भी मन्दिर और मूर्तियां हैं। __ इससे आगे खरतरसहि है। इस मन्दिरके और भी नाम हैं जैसे चौमुखीजी, शिल्पियोंका मन्दिर और चिन्तामणि पाश्र्वनाथ मन्दिर। इस मन्दिरमें चारों दिशाओंमें द्वार हैं और प्रत्येक द्वारके सामने मण्डप बना हुआ है । मण्डपोंके शिखरोंकी छतें कलापूर्ण हैं । द्वारों को बाह्य भित्तियां अलंकृत हैं। इस मन्दिर-गुच्छकमें दो मन्दिर अत्यन्त भव्य, कलापूर्ण और दर्शनीय हैं-आदिनाथ मन्दिर और नेमिनाथ मन्दिर। इन मन्दिरोंको देखने के लिए देश और विदेशके हजारों व्यक्ति आते हैं। ये मन्दिर संगमरमरके बने हए हैं। इन मन्दिरोंके अन्तःभागकी कला अत्यन्त उच्चकोटिकी है। किन्तु इनकी शिखर संयोजना साधारण है। वर्षा, आंधी आदिके कारण शिखर और छतें काली पड़ गयी हैं। उन्हें देखकर ऐसा लगता है कि शिखर और छतोंमें सामान्य पाषाण लगाया गया है। दिलवाड़ासे अचलगढ़को पक्की सड़क जाती है। अचलगढ़ यहाँसे ६ कि. मी. है। अचलेश्वर महादेव मन्दिर तक बस, टैक्सी जाती हैं। यहाँ अनेक छोटे-छोटे हिन्दू मन्दिर बने हुए हैं । यहाँसे अचलगढ़ पर्वतपर चढ़नेके लिए पक्का मार्ग और सीढ़ियां बनी हुई हैं। ऊपर चढ़नेपर कुन्थुनाथ मन्दिर, ऋषभदेव मन्दिर मिलते हैं। फिर सीढ़ियां चढ़कर आदिनाथ मन्दिर है। इसकी प्रतिष्ठा संवत् १५६६ फागुन सुदी १० को हुई। मूलनायक भगवान् आदिनाथकी प्रतिमा १५४४ मन अष्टधातुकी कही जाती है । सभामण्डपमें चारों ओर सुन्दर चित्रांकन है। मन्दिरके बाहर चारों ओर देहरियाँ बनी हुई हैं। धर्मशाला दिगम्बर जैन मन्दिरके चारों ओर धर्मशाला बनी हुई है। इसमें कुल ३८ कमरे हैं। नल और बिजलीको व्यवस्था है। यात्रियोंकी सुविधाके लिए गद्दे, बर्तनोंकी भी पर्याप्त व्यवस्था है। यहाँ कोई वार्षिक मेला नहीं होता। व्यवस्था यहाँके दोनों मन्दिरोंकी व्यवस्था भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी बम्बईकी ओरसे होती है। किन्तु इन दोनों मन्दिरोंकी व्यवस्थाके लिए एक स्थानीय कमेटी भी है। क्षेत्रका पता इस प्रकार है मन्त्री, श्री दिगम्बर जैन मन्दिर दिलवाड़ा, पो. माउण्ट आबू जिला-सिरोही ( राजस्थान)
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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