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________________ १३१ राजस्थानके दिगम्बर जैन तीर्थ मन्दिर और देहरियोंके ऊपर भी शिखर बने हुए हैं। प्रत्येक देहरीके सामने नक्काशी की हुई गुम्मटवाली चौकी है। देहरियोंके द्वारों, तोरणों, मण्डपके स्तम्भों और छतोंमें सूक्ष्म शिल्पांकन किया गया है । इसमें पुष्प, तीर्थकर, तीर्थंकर माताके चौदह स्वप्न, नेमिनाथकी बारात, शासन-देवताओं आदिके अंकन हैं। छतोंमें पुष्पोंके कटावका वैविध्य इतना कलापूर्ण, सुरुचिपूर्ण और सौन्दर्यपूर्ण है, जिससे निर्जीव पाषाण सजीव हो उठे हैं। शासन देवताओंकी मूर्तियाँ तो इतनी सुन्दर बन पड़ी हैं जो देखनेपर साक्षात् सजीव देवताओंका भ्रम उत्पन्न कर देतो हैं । वस्तुतः यहाँकी कला सोद्देश्य है। विमलशाहकी कुलदेवी नेमिनाथ तीर्थंकरकी शासनदेवी अम्बिकाका मन्दिर इस विशाल जिनालयसे दक्षिण-पश्चिममें मन्दिरके सामने बना हुआ है। कहते हैं, यह इस जिनालयसे भी प्राचीन है। इसके बाहर भैरव क्षेत्रपाल अपने वाहन श्वानके साथ विराजमान हैं। द्वारके पास हस्तिशाला है। इसमें पाषाणके १० हाथी बने हुए हैं। एक घोड़ेपर आरूढ़ विमलशाहकी मूर्ति है। मव्यमें चतुर्मुखी चैत्य है। इस मन्दिरके आगे भगवान् कुन्थुनाथका दिगम्बर जैन मन्दिर है। मन्दिरमें गर्भगृह, सभामण्डप और अर्धमण्डप है। मूलनायक भगवान् कुन्थुनाथकी २ फीट १० इंच ऊँची श्वेतवर्ण पद्मासन प्रतिमा है। इसके दोनों पार्यों में एक-एक तथा आगे तोन मूर्तियाँ विराजमान हैं। दायों और बायीं दीवारवेदियोंमें ३-३ मूर्तियां हैं, तथा गर्भगृहके प्रवेश-द्वारके बाहर बायीं और दायीं ओर ३-३ मूर्तियाँ विराजमान हैं। सभी श्वेत पाषाणकी और पद्मासन हैं। ___ इस मन्दिरके निकट नेमिनाथका प्रसिद्ध मन्दिर है। इस मन्दिरका निर्माण वीरधवलके मन्त्री वस्तुपाल-तेजपाल नामक दोनों भाइयोंने सन् १२३१ में १२,५३,००००० रुपयोंकी लागतसे कराया था। वस्तुपाल और तेजपाल चालुक्यवंशी लवणप्रसाद और उसके पुत्र वीरधवलके मन्त्री थे। लवणप्रसादके पिता अर्णोराजसे प्रसन्न होकर चालुक्य कुमारपालने उसे अनहिल्लपाटनसे १० मील दूर व्याघ्रपल्ली गाँव पुरस्कारस्वरूप दे दिया। तबसे इसके वंशज गांवके नामपर बघेल कहलाने लगे। ये चालुक्य भीमदेव द्वितीयके सहायक थे। भीमदेव कमजोर शासक था। चारों ओरसे उसके राज्यपर यादव सिंहन, लाटनरेश शंख, गोडूहनरेश घुघुल, मालवनरेश देवपाल, मारवाड सरदार, इल्तमश, भद्रेश्वरके भीमसिंह आदि अनेक राजा आक्रमण कर रहे थे। भीमदेवने इन बघेल सरदारोंको राज्यको सुरक्षाका दायित्व सौंप दिया और उन्हें प्रशासनके अधिकार दे दिये। इन बघेल नरेशोंने अपने मन्त्री तेजपालको अपनी राजधानी ढोलका और वस्तुपालको स्तम्भ (वर्तमान काम्बे) का गवर्नर बना दिया और दोनों भाइयोंको दक्षिण गुजरातकी सुरक्षाका भार दे दिया। वस्तुपाल वस्तुतः कुशल कूटनीतिज्ञ और वीर योद्धा था। उसने अपने जीवनमें ६३ युद्धोंमें भाग लिया और विजयश्री प्राप्त की। इन्हीं भाइयोंने यह नेमिनाथ मन्दिर बनवाया था। इस मन्दिरमें ४८ देहरियां हैं। मन्दिरकी कला, शिल्प-सौन्दर्य और पाषाणोंमें सूक्ष्म खदाई आदिनाथ मन्दिरसे होड करती प्रतीत होती है। मन्दिरके गर्भगृहके द्वारके दोनों पावों में दो गोखड़े हैं। ये देवरानी और जिठानीके गोखड़े कहलाते हैं । ये दोनों गोखड़े वस्तुपाल और तेजपालकी पत्नियोंने बनवाये थे और उस समय इनके बनवानेमें सवा लाख रुपये व्यय हुए थे। इस मन्दिरके पृष्ठ भागके पृष्ठ मण्डपमें हस्तिशाला बनी हुई है । इसमें १० खण्ड हैं और प्रत्येक खण्डमें संगमरमरका एक-एक हाथी है । इन हाथियोंके पीछे दीवारसे लगी वस्तुपाल-तेजपाल और उनके परिवारी जनोंकी पूरे कदकी मूर्तियां बनी हुई हैं । हाथियोंके बीचमें काले पाषाणके तीन मंजिलके चौमुख बने हुए हैं। सातवें खण्डमें वस्तुपाल
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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