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________________ १२९ राजस्थानके दिगम्बर जैन तीर्थ एक दिन वहांके शासक वीरधवल नरेशको स्वप्नमें किसी देवीने आदेश दिया कि "तुम वस्तुपाल-तेजपालको अपना मन्त्री बना लो। तुम्हारे राज्यको श्रीवृद्धि होगी और तुम निश्चिन्ततापूर्वक शासन करोगे।" देवीके आदेशानुसार राजाने प्रातःकाल होते ही दोनों बन्धुओंको बुलाया और उन्हें मन्त्री पद दे दिया। इतना ही नहीं, वस्तुपालको स्तम्भ तीर्थ और धवलक्ककका शासक बना दिया और तेजपालको सम्पूर्ण राज्य-व्यापारकी मुद्रा दे दी। उन्होंने अपने जीवनमें सवा लाख मूर्तियोंको प्रतिष्ठा करायी। उन्होंने शत्रुजय तीर्थपर १८,९६,००००० रुपये, गिरनारपर १२,८०,००००० रुपये और अदगिरिपर लूणिगवसतिके निर्माणमें १२,५३,००००० रुपये लगाये। उन्होंने ९८४ पौषधशालाएं निर्मित करायीं, १३०४ शिखरबद्ध जैन मन्दिर बनवाये तथा २३०० जैन मन्दिरोंका जीर्णोद्धार कराया। इनके अतिरिक्त अनेक कार्य किये । कुल मिलाकर उन्होंने अपने जीवनमें ३००१४१८८०० रुपये व्यय किये। जब वीरधवल राजाका- स्वर्गवास हो गया तो उन्होंने राजाके पुत्र बीसलदेवको राजसिंहासनपर आरूढ़ किया। किन्तु कुछ समय पश्चात् उसने अभिमानमें आकर इन्हें मन्त्रीपदसे पृथक् कर दिया तथा अन्य व्यक्तिको मन्त्री बना लिया। राजाके पुरोहित सोमेश्वर महाकविने एक काव्य द्वारा इसके लिए राजाकी बहुत भर्त्सना की। इस प्रकार इन दोनों भ्राताओंका जीवन अत्यन्त यशस्वी था। उन्होंने आबू पर्वतपर मन्दिर निर्माणमें साढ़े बारह करोड़ रुपयेसे अधिक व्यय किया। निश्चय ही यह व्यय पाषाण, निर्माण सामग्री और मजदूरीके लिये हुआ, इन चीजोंका हिसाब किया जा सकता है। किन्तु वे पाषाण कलाका वरदान पाकर बोल उठे, वहां कला अपने सहस्र रूपोंमें मखरित हो उठी है. उसका मूल्यांकन करनेका सामर्थ्य भला किसमें है ? कलाका मूल्यांकन सोने-चांदीके मानकों द्वारा नहीं होता। ____ भट्टारक ज्ञानसागरजीने 'सर्वतीर्थवन्दना' में आबू तीर्थको प्रशंसा करते हुए लिखा है कि "आबूगढ़ अभिराम काम त्रिभुवन माँ सारे । श्री जिनबिम्ब अनेक समस्त भवजल तारे । जिनवर भुवन विशाल देखत पाप पणासे । कहेता न लहुँ पार कर्म अनन्त विनासे । आबूनी रचना प्रबल देखत जन मन उल्लसे । ब्रह्म ज्ञानसागर वदति मुझ मन जिनचरणे बसे ॥१६॥" इसी प्रकार भट्टारक जयसागरने आदिनाथकी मनोज्ञ प्रतिमाको नमस्कार किया है'सुआबुगढ़ जिनबिम्ब मनोहार । सुआदिनाथ पाली भवतार ॥' इससे प्रतीत होता है कि भगवान् आदिनाथकी किसी मूर्तिकी बड़ी ख्याति रही होगी। क्षेत्र-दर्शन माउण्ट आबू बस स्टैण्डसे ३ कि. मी. आगे दिलवाड़ा है। बस दिगम्बर जैन मन्दिरके सामने रुकती है। कुछ सीढ़ियां चढ़कर मन्दिरका द्वार मिलता है। चारों ओर धर्मशाला है और मध्यमें शिखरबद्ध मन्दिर है। मन्दिरमें गर्भगृह, सभामण्डप, उससे आगे एक कमरेमें मण्डप, उसके नीचे पूजाका चबूतरा है। मुख्य वेदीपर भगवान् आदिनाथकी ३ फीट २ इंच ऊंची श्वेत पद्मासन मूर्ति २ फीट १ इंच ऊँचे पीठासन पर विराजमान है। पीठासन संगमरमरका है।
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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