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१. रत्नकीर्ति २. लक्ष्मीसेन I
राजस्थानके दिगम्बर जैन तीर्थ
३ भीमसेन
४. सोमकीर्ति ( संवत् १५२६ - १५४० ) ५. विजयसेन
६. यशः कीर्ति
७. उदयसेन ८. त्रिभुवनकीर्ति
९. रत्नभूषण ( संवत् १६७४ ) ५. विजयकीर्ति
१०. जयकीर्ति ( संवत् १६८६ ) ११. केशवसेन
१२. विश्वकीर्ति ( संवत् १६९६ -१७०० )
१२. लक्ष्मीसेन
I विजयकीर्ति
१. धर्मसेन
२. विमलसेन
३. विशालकीर्ति ४. विश्व सेन ( संवत् १५९६ )
विद्याविभूषण (सं. १६०४-१६३६ )
६. श्रीभूषण (सं. १६३४-१६७६ ) ७. चन्द्रकीर्ति ( सं १६५४ - १६८१ ) ८. राजकी
९. लक्ष्मीसेन (सं. १६९६-१७०३ ) १०. इन्द्रभूषण (सं. १७१५-१७३६ ) ११. सुरेन्द्रकीर्ति ( सं. १७४४-१७७३ )
I
१२५
I
देवेन्द्रकीर्ति
(सं. १८८१ - १८८५ )
सकलकीर्ति
(सं. १८१६ )
(सं. १८६२ )
यह तालिका पूरी नहीं है तथा काल-गणना भी अधूरी है। इस तालिकामें कई नाम छूट गये हैं जो ऋषभदेवमें शिलालेखों और मूर्तिलेखों में आये हैं- जैसे धर्मकीर्ति, विश्वभूषण, गोपसेन, प्रतापकीर्ति, शुभचन्द्र, सुमतिकीर्ति, ज्ञानकीर्ति ।
इनमें से कुछ तालिका में दिये गये नामोंसे मिलते-जुलते हैं किन्तु उनकी कालगणना शिलालेखों और मूर्तिलेखोंके समयसे नहीं मिलती। इससे लगता है, समान नाम भिन्न व्यक्तियोंके रहे हैं। ऐसे भट्टारक हैं- यशः कीर्ति, त्रिभुवनकीर्ति, भीमसेन, देवेन्द्रकीर्ति । शिलालेखों और मूर्तिलेखों के अनुसार काष्ठासंघके भट्टारकोंने वि. सं. १५७२, १७०४, १७३४, १७५३, १७५४, १७५६, १७६०, १७६३, १७६४, १७६६, १७६८, १८४९ में मन्दिरों और मूर्तियों की प्रतिष्ठा करायी ।
ज्ञाति और गोत्र
शिलालेखों और मूर्ति-लेखोंसे मन्दिरों और मूर्तियोंकी प्रतिष्ठा करानेवाले धार्मिक व्यक्तियों के परिचय के अतिरिक्त उनकी जाति और गोत्रके बारेमें भी प्रकाश पड़ता है । इन लेखों के अनुसार हूमड़, दसा हूमड़, नरसिंगपुरा, खण्डेलवाल, बघेरवाल, वाच, आवांसिता, लाड जातिके उदार सज्जनोंने मन्दिर निर्माण, जीर्णोद्धार और प्रतिष्ठा कार्य कराये ।