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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ सं. १७४६ के मूर्ति लेखमें आया है। अर्थात् सुरेन्द्रकीतिका काल वि. सं. १७४६ से पूर्वका है। क्योंकि सं. १७४६ में भट्टारक क्षेमकीर्तिने मूर्ति-प्रतिष्ठा करायी थी।
मूलसंघके भट्टारकोंका उल्लेख इन मूर्ति-लेखोंमें वि. सं. १६११ से १८६३ तक मिलता है। उन्होंने यहां पर वि. सं. १६११, १७११, १७४२, १७४६, १७६७, १७६८, १७६९, १७७३, १८६३ न संवत्सरोंमें अनेक मूर्तियोंकी प्रतिष्ठा करायी।
काष्ठासंघ
आचार्य देवसेनने 'दर्शनसार' में लिखा है कि आचार्य विनयसेनके शिष्य कुमारसेनने वि. सं. ७५३ में नन्दियड ( वर्तमान नान्देड़ ) में काष्ठासंघको स्थापना की। बादमें काष्ठासंघकी कई शाखाएं हो गयीं । जैसे माथुरगच्छ, बागड़गच्छ, लाडवागड़गच्छ तथा नन्दीतटगच्छ। काष्ठासंघका नाम दिल्लीके निकटवर्ती काष्ठा नामक ग्रामके नामपर रखा गया। बारहवीं शताब्दीमें यह टक्क वंशके शासकोंकी राजधानी थी। यहाँके टक्क शासक मदनपालने 'मदनपाल निघण्टु' नामक वैद्यक ग्रन्थको रचना की थी। फीरोजशाह तुगलककी माता यहाँके शासककी पुत्री थी।
ऋषभदेवमें काष्ठासंघकी शाखा नन्दीतटगच्छके भट्टारकोंका प्रभाव प्रारम्भसे ही रहा है। शताब्दियों तक इस क्षेत्रको व्यवस्था भी इनके हाथमें रही है। इस क्षेत्रके ज्ञात इतिहासके प्रारम्भसे ही इस संघके भट्टारकोंकी गद्दी भी इस क्षेत्रपर रही है। यहाँ सबसे प्राचीन शिलालेख वि. संवत् १४३१ का मिलता है। इस समय इस प्राचीन मन्दिरके जीर्णोद्धार का उल्लेख मिलता है जो काष्ठासंघी भट्टारक धर्मकीर्तिके उपदेशसे सम्पन्न हुआ था।
इस क्षेत्रपर उपलब्ध शिलालेखों और मूर्तिलेखोंमें काष्ठासंघको एक शाखा नन्दीतटगच्छ विद्यागणके निम्नलिखित भट्टारकोंका उल्लेख मिलता है
भट्टारक रामसेन, धर्मकीति, यशकीति, विश्वभूषण, त्रिभुवनकीति, भीमसेन, गोपसेन, राजकीर्ति, लक्ष्मीसेन, इन्द्रभूषण, सुरेन्द्रकीर्ति, प्रतापकोति, श्रीभूषण, शुभचन्द्र, जयकीर्ति, सुमतिकीर्ति, देवेन्द्रकीर्ति, ज्ञानकीर्ति।
यहां काष्ठासंघकी एक अन्य शाखा लाडवागड़-गच्छका उल्लेख संवत् १७५३ के एक शिलालेखमें आया है किन्तु इस गच्छका केवल उल्लेख मात्र आया है, भट्टारक परम्परा नन्दीतटगच्छकी ही दी है।
इन भट्टारकोंने यहाँ मूल मन्दिरका जीर्णोद्धार कराया, नवीन जिनालयोंका निर्माण कराया, मूर्तियोंकी प्रतिष्ठा की तथा अन्य अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य किये । इनके लेख वि. सं. १४३१ से १८४९ तकके उपलब्ध होते हैं। सर्वप्राचीन नामोल्लेख भट्टारक धर्मकीतिका और सबसे अन्तिम नामोल्लेख भट्टारक ज्ञानकीर्तिका मिलता है।
काष्ठासंघ-नन्दीतटगच्छके भट्टारकोंका सुविचारित कालपट इस प्रकार है