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राजस्थानके दिगम्बर जैन तीर्थ
१२१ इसी सन्दर्भमें कोटमें उत्तरकी ओर लगे हुए एक और शिलालेखका उल्लेख कर देना यहाँ अनुचित न होगा। यह शिलालेख इस प्रकार है
श्री आदोश्वर नी पादिना नाम महादेव । सकल जिनेश्वर यह नमि प्रणमि सरस्वति माय । श्री गुरुना यह अनुसरी करो बुधि उपाय ॥ आदि जिनेश्वर मंदिरे दिसे दुर्ग उत्तुंग । चन्द्रकीर्ति सुरिवर जहाँ कोधो मन तणे रंग ।। दंडारग देस मेवाड़में उदियापुर सुजाण । राज करै तिहाँ राजवी भीमसिंह राजान । हिन्दुपत पातमा भलो समोवड़ अर्क-प्रताप। गुण गंभीर सायर समो कल्पतरु सम साख ।। संवत् १८६३ में असाढ़ सुदी तीज। गुरुवारे मुहूर्त जु करौ भली तरै पूजा कीध ।। मूल संघ गच्छ सरस्वती बलात्कारगणधार। कुन्दकुन्द सूरीवर भलो सु आम्नाय तेह उधार ।। तह अनुक्रमे सूरीवर भलो सकल कीर्ति गछराय । तेह पाटै गुरु शोभतो भुवनकीर्ति नमूं णाय ॥ ज्ञानभूषण पाटे प्रगट विजयकीर्ति सुरि ईश । सुभचन्द्र सूरीवर सदा सुमतिकीर्ति गुणकीर्ति । गुरु गुपातिलो वादिभूषण तसपाट । रामकीर्ति पाट सोभतो राच्यो धर्म नो ठाठ ॥ पद्मनन्दी पाटे सुजस देवेन्द्रकीर्ति गुणधार । खेमकीर्ति पट उज्वलो नरेन्द्रकीर्ति मनुहार ।। विजयकीर्ति पाटे गुरु नेमिचन्द्र भवतार । चन्द्रकीर्ति चन्द्रसमौ रामकीर्ति सुखकार ॥ यशकीर्ति सुरीजी सह उदयो पुन्य अंकूर । करी प्रतिष्ठा दुर्गतणी जस व्याप्यो भरपूर ।। वागड़ देश सोहामणो सागल पुरवर ग्राम । संघपति साह रात्रिया मणि सुन्दर सैनी नाम ।। गांधी धनजीकरण जी कसनजी सुत आण। कमलेश्वर गोत्रज तणु यसव धारणवान ।। भार्या आणन्दे कुंवर जे सुत माणकचन्द । जेह भार्या कसनवाई निर्मली माणकदेवीजी तेह सुत अजेचन्द्र जाणिये । पुण्यवंत गुणवंत बालमदे भार्यामली शोलवंति सुसंत सुत नवलचन्द। जनमियो पुत्री हंसी जाण पुण्यवंत प्रतपो घणु गुण कला निधान । चन्द्रकीति गुरु उज्वला को दुर्ग उतंग । यशकीर्ति गुरु निर्मलो करि प्रतिष्ठा मनरंग ।।