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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ कहते हैं, तत्कालीन भण्डारियोंने भट्टारकजीकी हत्या करके क्षेत्रपर अपना अधिकार जमा लिया था। यहां दो छतरी और एक कुटीर बनी हुई है। भट्टारकजीके नामपर इस पहाड़ीपर उनका यह स्मारक बना है । एक छतरीपर संवत् १७३७ का लेख भी अंकित है।
इस पहाड़ीके नीचे सूरज कुण्ड है । मूलनायकके अभिषेकके लिए दिनमें दो बार यहींसे जल ले जाया जाता है।
भीमपगल्या-गांवकी परिक्रमा करती हुई एक छोटी-सी सदातोया नदी बहती है जिसे कोयल या कुंवारिका कहते हैं। इस नदीपर पक्का घाट और पुल भी है। नदीके दरवाजेके पास काष्ठासंघके सुप्रसिद्ध भट्टारक भीमसेनका प्राचीन स्मारक है। यह पुरातत्त्व विभागके सुरक्षित स्मारकोंमें है। चैत्यालय
गांवमें चार चैत्यालय हैं । ऋषभदेव-उदयपुर मार्ग में यहांसे ५ मील दूर पीपली ग्राममें एक मन्दिर है। भट्टारक यशकोति गुरुकुल
पगल्याजी मार्गपर विशाल गुरुकुल बना हुआ है जिसमें इस क्षेत्रके बाहरके लगभग ५० छात्र रहकर शिक्षण प्राप्त करते हैं। इस गुरुकुलमें ५० कमरे बने हुए हैं। यहीं भट्टारक यशःकीर्तिजी
और उनके विद्वान् शिष्य रहते हैं। इन कमरोंमें कुछ कमरे धर्मशालाके रूपमें प्रयुक्त होते हैं, जिनमें बाहरसे आनेवाले यात्री ठहरते हैं । गुरुकुल भवनके सामने खेलका विशाल मैदान है जिसमें छात्र खेलते हैं । गुरुकुलकी स्थापना सन् १९६८ में हुई थी।
जिनालय
गुरुकुल भवनके प्रांगणमें एक भव्य जिनालय बना हुआ है। उसमें नीचे और ऊपरके भागमें दो वेदियां बनी हुई हैं । नीचे गर्भगृह, विशाल सभामण्डप और अर्धमण्डप या बरामदा है । वेदीपर भगवान् ऋषभदेवकी ६ फुट ऊंची श्यामवर्ण पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। इसको प्रतिष्ठा वैशाख सुदी ११ संवत् २०३२ में हुई थी। इसके आगे धातुकी चौबीसी है।
___ ऊपर एक चबूतरेपर श्वेत पाषाणकी भगवान् महावीरकी पद्ममासन प्रतिमा विराजमान है जिसकी अवगाहना ५ फुट ५ इंच ( आसन सहित ) है । बायों और दायीं ओर ४ फुट ९ इंच ऊंची भरत और बाहुबलीकी श्वेत पाषाणकी खड्गासन प्रतिमा हैं । प्रतिष्ठा संवत् २०३२ में हुई थी।
इनके आगे ऋषभदेव, महावीर, शान्तिनाथको धातु-प्रतिमाएं तथा धातुकी एक चौबीसी है।
मन्दिरकी पंचकल्याणक प्रतिष्ठा २१ मई सन् १९७५ को हुई थी। इस अवसरपर लगभग ५० हजार व्यक्ति महोत्सवमें सम्मिलित हए थे।
भट्टारक यशकीर्तिजीने अपनी सम्पूर्ण सम्पत्तिका लोकहितार्थ एक ट्रस्ट बना दिया है, जिसके अन्तर्गत गुरुकुल, भट्टारक यशकीर्ति भवन, भ. यशकीर्ति दि. जैन सरस्वती भवन, चैत्यालय आदि संस्थाएँ हैं । भट्टारक यशकीर्ति भवन पाँच मंजिलका है । पहले इसीमें भट्टारजी रहते थे। इसमें तीसरी मंजिलमें सरस्वती भवन और चैत्यालय हैं। इसमें भगवान् आदिनाथकी १ फुट ९ इंच ऊँची श्यामवर्ण पद्मासन मूलनायक प्रतिमा है। इसकी प्रतिष्ठा संवत् २०१५ में हुई थी। इसके अतिरिक्त यहाँ धातुको २७ मूर्तियां हैं।