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________________ ११४ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ बालब्रह्मचारी तीर्थंकर-वासुपूज्य, मल्लिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और महावीरकी दिगम्बर प्रतिमाएं बनी हुई हैं। पांच तीर्थकरोंकी ब्रह्मचारी दशामें दीक्षा लेकर केवलज्ञान प्राप्त करनेकी परम्परा दिगम्बर समाजमें ही प्रचलित है । श्वेताम्बर समाज तो मल्लिनाथको स्त्री मानता है तथा पार्श्वनाथ एवं महावीरको विवाहित मानता है। बावन जिनालयोंकी संरचना दिगम्बर भट्टारकोंके उपदेशसे दिगम्बर धर्मानुयायी श्रावकोंने की थी, जैसा कि शिलालेखोंसे ज्ञात होता है। और यह रचना वस्तुतः नन्दीश्वर द्वीपकी प्रतीक है जैसी कि दिगम्बर मान्यता है। उनमें विराजमान सभी प्रतिमाएं दिगम्बर वीतराग तीर्थंकरोंकी हैं। इनकी प्रतिष्ठा भी काष्ठासंघी या मूलसंधी भट्टारकोंके द्वारा अथवा उनके उपदेशसे दिगम्बर धर्मानुयायो श्रावकोंने करायी थी। यह बात मूर्तिलेखोंसे स्पष्ट हो जाती है। मन्दिरमें ही उत्तरी भागमें मलसंघी भट्टारकोंकी तथा दक्षिणी भागमें काष्ठासंघी भट्टारकोंकी गद्दियाँ मन्दिरके निर्माणकालसे अब तक हैं। पहले ये दोनों संघोंके भट्टारक ही मन्दिरको सम्पूर्ण व्यवस्था करते थे। मन्दिरका कोट और सिंहद्वार भी दिगम्बर भट्टारकों और श्रावकोंने बनवाया था, जैसा कि शिलालेखसे प्रमाणित होता है। ___ इन स्पष्ट प्रमाणोंके रहते हुए इसमें सन्देहको किंचिन्मात्र भी अवकाश नहीं रहता कि यह सम्पूर्ण मन्दिर दिगम्बर आम्नायका है और सदासे इस मन्दिरपर उसीका सम्पूर्ण स्वत्व रहा है। प्रसिद्ध इतिहासकार रा.ब. गौरीशंकर हीराचन्द ओझा और कर्नल टाडने भी इस मन्दिरको दिगम्बर आम्नायका माना है। क्षेत्र-दर्शन मन्दिरके चारों ओर पक्का कोट बना हुआ है । उसका प्रवेश-द्वार विशाल है। उसके दोनों ओर छतरियां बनी हुई हैं। उसके ऊपर नक्कारखाना बना है। उस द्वारमें प्रवेश करते ही बाहरी परिक्रमाका चौक है। वहाँपर दूसरा द्वार मिलता है । इसके दोनों ओर कृष्ण पाषाणका एक-एक हाथी बना हुआ है। ऊारको छतमें ८१ कोष्ठकका एक यन्त्र बना हआ है। इन्हें किसी भी ओरसे जोड़नेपर योग ३६९ आता है। इस द्वारके दोनों ओर ताकोंमें ब्रह्मा और शिवकी मूर्तियाँ हैं। ये बादमें रखी गयी हैं । इस द्वारसे दस सीढ़ियाँ चढ़नेपर मन्दिरके बाहरी चौकमें पहुंचते हैं। वहाँसे तीन सीढ़ियां चढ़नेपर एक मण्डप मिलता है। इसमें नौ स्तम्भ हैं। इसलिए इसे नो-चौकी कहते हैं । वहाँसे तीसरे द्वारमें प्रवेश करते हैं। तब खेला मण्डपमें पहुंचते हैं। इसी मण्डपमें होकर निज मन्दिरमें पहुंचते हैं । इसी गर्भगृहमें भगवान् ऋषभदेवकी विश्वविश्रुत प्रतिमा विराजमान है। गर्भगृहके ऊपर ध्वजा दण्ड सहित विशाल शिखर बना हुआ है। इसके द्वारके सिरदलपर पार्श्वनाथकी मूर्ति है । खेला मण्डपमें दो शिलालेख हैं, जिनका उल्लेख ऊपर किया जा चुका है। खेला मण्डप और नौचौकीपर गुम्बज बने हुए हैं। खेला मण्डपमें २३ दिगम्बर जिन प्रतिमाएँ विराजमान हैं। खेला मण्डपके दोनों शिलालेखोंके नीचे सिंहासनपर विराजमान पंच बालयतियोंकी श्यामवर्ण प्रतिमाएं हैं। मध्यको प्रतिमा पद्मासन है तथा उसके दोनों ओर दो-दो प्रतिमाएं खड्गासन हैं।। नौचौकी मण्डपके मध्यमें डेढ़ फुट ऊंची वेदी बनी हुई है। इसपर प्रतिदिन दिगम्बर जैन नित्य नियम पूजन करते हैं । अष्टाह्निका आदि विशेष अवसरोंपर मण्डप बनाकर यहाँ नैमित्तिक पूजन किया जाता है। वेदीके समीप एक स्तम्भपर क्षेत्रपालकी मूर्ति है। उसके निकट दूसरे स्तम्भपर दस दिग्पाल बने हुए हैं।
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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