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राजस्थानके दिगम्बर जैन तीर्थ
११३ शिलालेख नं. ४
"स्वस्ति श्री संवत् १७५६ वर्षे शाके १६५ (२) ९ प्रवर्तमाने सर्वजितनाम संवत्सरे मासोत्तममासे कृष्णपक्षे १३ तिथी शक्रवासरे श्री काष्ठासंघे लाडबागड़ गच्छे लोहाचार्यान्वये तदनुक्रमेण भट्टारक श्री प्रतापकीर्ति आम्नाये श्री काष्ठासंघे नन्दीतट गच्छे विद्यागणे भट्टारक श्री रामसेनान्वये तदनुक्रमेण भट्टारक श्री श्रीभूषण...भट्टारक श्री इन्द्रभूषण तत्पट्टकमलमधुकरायमान भट्टारक श्री सुरेन्द्रकीति विराजमाने प्रतिष्ठित बघेरवालज्ञाति गोवाल गोत्र संघवी श्री अल्हा भार्या कुढ़ाई...।"
इस जिनालयकी दीवालपर भी ऐसा ही लेख अंकित है।
पश्चिममें सहस्रकूट चैत्यालयके पास जिनालयमें भगवान् शान्तिनाथकी चरण-चौकोपर इस प्रकार लेख हैशिलालेख नं. ५
___ "संवत् १७६६ ना चैत्र वदी ५ वार चन्द्रे श्रीमत् काष्ठासंघे नंदोतट गच्छे विद्यागणे भट्टारक श्रीरामसेनान्वये तदनुक्रमेण भट्टारक श्री राजकीर्ति तदनुक्रमेण भट्टारक श्री सुमतिकीर्ति तत् अनुक्रमेण हुंवर न्यातीय बुध गोत्र संघवी श्री रामजी भार्या सिद्धरदे धर्मार्थ श्री शान्तिनाथ बिम्बं आचार्य श्री प्रतापकीर्ति स्वहस्तेन प्रतिष्ठापितम् ॥श्री॥"
बावन जिनालयोंकी कुछ प्रतिमाओंको छोड़कर शेष सभी प्रतिमाओंपर मूर्तिलेख मिलते हैं। इनसे ज्ञात होता है कि ये सभी प्रतिमाएं दिगम्बराम्नायो भट्टारकोंके उपदेशसे अथवा उनके द्वारा उनके भक्तोंकी ओरसे प्रतिष्ठित की गयी हैं।
दक्षिणके जिनालयोंके मध्यमें मण्डप सहित जो मन्दिर है, उसके द्वारके निकट दोवारमें एक शिलालेख लगा हुआ है । उसका आशय इस प्रकार है
___'दिगम्बर काष्ठा संघके नन्दीतट गच्छ और विद्यागणके भट्टारक श्री सुरेन्द्रकीतिके समयमें बघेरवाल जातिके गोवाल गोत्री संघवी आल्हाके सुपुत्र भोजके कुटुम्बियोंने यह मन्दिर बनवाकर प्रतिष्ठित किया। ___ मन्दिरके चारों ओर बने हुए पक्के कोटका सिंहद्वार अत्यन्त विशाल है। उसके दोनों ओर छतरियां बनी हुई हैं । इस कोटका निर्माण मूल संघ, बलात्कारगणके कमलेश्वर गोत्री गान्धी विजयचन्द सागवाड़ा दिगम्बर जैनने वि. सं. १८६३ (ई. सन् १८०६) में कराया था। इस आशयका एक शिलालेख कोटमें लगा हुआ है। मन्दिर मूलतः दिगम्बर आम्नायका है
मूल मन्दिर, बावन जिनालय, मूर्तियाँ, कोट और उसके द्वारके सम्बन्धमें अनेक शिलालेख और मूर्तिलेख यहाँ उपलब्ध होते हैं । यद्यपि इनसे मुख्य मन्दिरके निर्माण-कालपर कोई प्रकाश नहीं पड़ता, किन्तु एक शिलालेखसे ज्ञात होता है कि इस मन्दिरका जीर्णोद्धार वि. सं. १४३१ में काष्ठासंघो भट्टारक धर्मकीर्तिके उपदेशसे शाह हरदास और उसके पुत्र पुंजा तथा कोताने कराया था। खेला मण्डपके बाहरकी नौचौको और सभा-मण्डप वि. सं. १५७२ में भट्टारक यशकीर्तिके समय काष्ठासंघो वाच जातीय काश्यप गोत्री फडिया कोहिया और उसकी पत्नी भरभीके पत्र होसाने बनवाया था। खेला मण्डपमें २३ दिगम्बर जैन प्रतिमाएं विराजमान हैं। संवत् १४३१ और १५७२ के शिलालेखोंके नीचे सिंहासनपर विराजमान श्यामवर्णकी पंच बालयति अर्थात् पाँच