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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ निज मन्दिरके चारों ओर ५२ जिनालय बने हुए हैं। चारों दिशाओंमें १३-१३ जिनालय बने हुए हैं। इन जिनालयोंमें प्रत्येक दिशामें एक-एक जिनालय शिखरबद्ध हैं और उनके आगे मण्डप बना हुआ है । इन चारों दिशाओंके चारों जिनालयोंमें मूलनायक भगवान् ऋषभदेवकी पद्मासन प्रतिमाएं विराजमान हैं। इन प्रतिमाओंके कन्धोंपर केश लहराते हुए दिखाये गये हैं। सभी ५२ जिनालयोंमें दिगम्बर वीतराग प्रतिमाएँ पद्मासनमें विराजमान हैं। जिनालयोंकी पश्चिम दिशाकी पंक्तिमें श्याम पाषाणका लगभग छह फुट ऊँचा एक पाषाण-स्तम्भ बना हुआ है, जिसके ऊपर १००८ दिगम्बर वीतराग जिन-मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं । यह सहस्रकूट चैत्यालय कहलाता है। ५२ जिनालयोंकी रचना नन्दीश्वर जिनालयोंकी प्रतीक है। यह दिगम्बर जैन मान्यतानुकूल है। सहस्रकूट चैत्यालयमें १००८ मूर्तियोंकी मान्यता भी दिगम्बर मान्यताके अनुकूल है क्योंकि श्वेताम्बर मान्यतानुसार सहस्रकूट चैत्यालय में १०२४ मूर्तियां होती हैं । पूर्वको ओर निज मन्दिरके सामने बीचोंबीच एक पाषाण-गज बना हुआ है। इसके ऊपर गुम्बज बना हुआ है। हाथीके दोनों ओर पाषाण-चरण बने हुए हैं। उनके नीचे चमरवाहक इन्द्र खड़े हैं । निज मन्दिरके सामने पूर्वके प्रवेश-मार्गके ऊपर भरत-बाहुबलोका संघर्ष और बाहुबलीका संन्यास प्रस्तरोंपर उत्कीर्ण किया हुआ है।
___इन जिनालयोंका निर्माण निज मन्दिरके निर्माणके पश्चात् हुआ है। वह विभिन्न कालोंमें हुआ है। बावन जिनालयोंकी प्रतिमाओंके लेखसे ज्ञात होता है कि इनकी प्रतिष्ठा संवत् १६११ से संवत् १८६३ के मध्यमें हुई है। इनके प्रतिष्ठाता भी भिन्न-भिन्न व्यक्ति रहे हैं।
दक्षिण पंक्तिको देवकुलिकाओंमें बड़े मन्दिरके द्वारके पासका शिलालेख इस प्रकार हैशिलालेख नं. ३
"स्वस्ति श्री संवत् १७५३ वर्षे शाके १६१९ प्रवर्तमाने सर्वजिन नाम संवत्सरे मासोत्तमे वैशाख मासे शुक्ल पक्षे १३ तिथौ शुक्रवासरे श्री काष्ठासंघे लाडबागड़गच्छे लोहाचार्यान्वये तदनुक्रमेण भट्टारक श्री प्रतापकोाम्नाये श्री काष्ठासंघे नदीतटगच्छे विद्यागणे भट्टारक श्री रामसेनान्वये तदनुक्रमेण भट्टारक श्री भीमसेन तत्पट्टे भट्टारक श्री चन्द्रकोति तत्पट्टे भट्टारक श्री राजकोर्ति तत्पट्टे भट्टारक श्री लक्ष्मीसेन तत्पट्टे भट्टारक श्री ऐन्द्रभूषण तत्पट्टे कमल मधुकरायमान भट्टारक श्री सुरेन्द्रकीति विराजमाने प्रतिष्ठित बघेरवाल ज्ञातौ गोवाल गोत्रे संघवी श्री आल्हा भार्या कुड़ाई तयोः पुत्र भोज सा भार्या अम्बाई सिंघवी भीमा द्विये भार्या पद्माई बीजी हरषाई तपो संघपति वापृ भार्या जमवाई द्वितीय पूत्राद् भार्या पूतलाई तद्गच्छे वपूजी पसरवार संघपति भोजा द्वितीय भार्या पदाजी तन्मध्ये संघपति भोजा भार्या पद्माई तयो पुत्र चत्वारि, प्रथम मीमासा भार्या ग द्वितीय पुत्र आदु भार्या मगोमाई, तृतीय पुत्र प्रजनि भार्या सकाई तयो पुत्र सिंघवी तवनोसाह भार्या द्वि प्रथम मरुदेवी वीजी गोताई तोजी दुग चतुर्थ पुत्र सिंघवी सितल भार्या हीराई तयो पुत्र प्रथम पुत्र भोजा भार्या जीवाई द्वितीय पुत्र सिंघवी भीमा भार्या...प्रथम कालाई पुत्र सीतला द्वितीय भार्या देवकुः इत्यादि समस्त कुटुम्ब वर्ग संयुक्त श्री ऋषभदेव स्वाशासदिनि मण्डित प्रतिष्ठा महोछव कृत्वा श्री वृषभदेवस्य नित्यं प्रणमति श्रीरस्तु । शुभं भूयात् श्री.... अबप्रव्याग्र श्री धर्मप्रभा तत्सोक्ष्य विजयपुत्र लिखतिंग श्रीवाल्य...."
दक्षिणके मुख्य मन्दिरके पास बायीं ओर प्रथम जिनालयमें भगवान् ऋषभदेवकी प्रतिमा विराजमान है। उसकी चरण-चौकीका लेख इस प्रकार है