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राजस्थानके दिगम्बर जैन तीर्थ
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खेला मण्डपकी दीवालोंमें आमने-सामने दो शिलालेख उत्कीर्ण हैं । उनमें बायीं ओरका लेख इस भाँति है
शिलालेख नं. १
"श्री आदिनाथं प्रणम्य लोक आश्वासिता केचन वित कार्येन मोक्षमार्गे तमादिनाथं प्रणमादि नित्यमादित्य संवत् १४३१ वर्षे वैशाख सुदी अक्षयतिथी बुध दिनाः गुरावद्देहा वापी कूप प्रसरि सरोवरालंकृत खेड़वाला पत्तने राज्य श्रीविजय राज्य पालयति सति उदयराज सेलमा श्रीमज्जिनेन्द्राराधनतत्पर पंचूली बागड़ प्रति यात्रा श्री काष्ठासंघे भट्टारक श्री धर्मकीर्ति गुरोपदेशेन वा साध वीजासुत हरदास भार्या हारु तदपत्योः सं पुंजा कोताभ्याम् श्री ऋषभेश्वर प्रासादस्य जीर्णोद्वार श्री नाभिराज वरवंश कृतावतार कल्पद्रमा माह सेवनेषु I
"
इसका आशय यह है कि संवत् १४३१ में वैशाख सुदी तृतीया (अक्षय तृतीया) बुधवार के दिन वापी-कूप-तड़ाग-सरोवरोंसे अलंकृत खेड़वाला नगरमें विजयराजके शासनकाल में काष्ठासंघ भट्टारक श्री धर्मकीर्ति गुरुके उपदेशसे शाह हरदास और उसकी भार्या हारुके पुत्र पुंजा और कोताने श्री ऋषभदेवके मन्दिरका जीर्णोद्धार किया ।
इसी प्रकार खेला • मण्डपमें दायीं ओर जो शिलालेख उत्कीर्ण है, वह इस भांति पढ़ा गया है
शिलालेख नं. २
"लोका आश्वासिताः केचन आदिनाथं प्रणमामि नित्यं विक्रमादित्य संवत् १५७२ वर्षे वैशाख सुदी ५ वार सोमे भट्टारक श्री यशकीर्ति राज्ये श्री कला भार्या सोनवाई वीजिराज इदा... घुलीय ग्रामे श्री ऋषभनाथं प्रणम्य फड़िया कोहिया भार्या भरमी तस्य पुत्र होसा भार्या हिलसदे तस्य पुत्र कान्हा देवरा रंगा भ्रात वेणदास भार्या लाछी भ्रात सावा भार्या पांची सुत नाथा नरपाल श्रीकाष्ठासंघे वाचन्याते काश्यप गोत्रे कडिया होसा मंडपः नवचौकीयओ सनी बड़पुत्तला सहस टंका सी ८०० इटड़ी कथ्यः श्री ऋषभजी श्री नाभिराज कुख पुजः ।"
इस शिलालेखका आशय यह है कि विक्रम संवत् १५७२ वैशाख सुदी ५ सोमवारको भट्टारक श्री यशकीर्ति राज्यमें धुलीय ग्राम में फड़िया कोहिया और उसकी भार्या भरमी, उनके पुत्र हीसा उसकी भार्या हिलसदे उनके पुत्र कान्हा देवरा टंगा भाई वेणदास उसकी भार्या लाछी भाई सावा उसकी भार्या पांची उसके पुत्र नाथा नरपाल काष्ठासंघी वाच ज्ञातिके काश्यप गोत्री फड़िया हसाने सभामण्डप और नौचौकीका निर्माण एक हजार टंका ( तत्कालीन मुद्रा ) व्यय करके करवाया । ( यहाँ '८०० इटड़ी कथ्य' इसका अर्थ स्पष्ट नहीं हो पाया )
इन शिलालेखोंसे प्रमाणित होता है कि वि. संवत् १४३१ में गर्भगृह और खेला मण्डप तथा वि. संवत् १५७२ में सभामण्डप और नौचौकी बने थे। दोनों शिलालेखोंसे यह भी सिद्ध होता है कि दोनों शिलालेखों में उल्लिखित निर्माण कार्य काष्ठासंघी भट्टारकों के उपदेशसे उनके अनुयायी भक्त दिगम्बर जैनोंने कराये । इसमें सन्देह करनेकी तनिक भी गुंजायश नहीं है कि ऋषभदेव मन्दिरका जीर्णोद्धार करानेवाले पुंजा और कोता दोनों भाई दिगम्बर जैन थे और उन्होंने यह पुण्य कार्य काष्ठासंघ भट्टारक धर्मकीर्तिके उपदेश से कराया था । इसी प्रकार सभामण्डप और नौचौकीका निर्माण करनेवाले फड़िया हीसा काष्ठासंघके भट्टारक यशकीर्ति के शिष्य थे । वे दिगम्बर जैन धर्मानुयायी थे ।