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________________ ११० भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ आदि भी बने हुए हैं। इस चरण चौकीपर १६ स्वप्न अंकित हैं। उनके ऊपर ९ जिन प्रतिमाओंका भव्य अंकन है, जिन्हें नवदेवता कहा जाता है। इस धातु सिंहासनके दोनों भागोंमें ऊपर तेईस जिन प्रतिमाएं बनी हुई हैं, जिनमें दो कायोत्सर्गासनमें तथा शेष पद्मासनमें विराजमान हैं। मध्यमें मूलनायक ऋषभदेवकी प्रतिमा होनेसे और परिकरमें तेईस प्रतिमाएं होनेसे स्वतः ही यह चौबीसी बन गयी है। मूलनायक भगवान् ऋषभदेवकी कृष्ण पाषाणकी यह प्रतिमा साढ़े तीन फुट उत्तुंग है। इसके सिरके ऊपर तीन छत्र सुशोभित हैं, सिरके पृष्ठ भागमें भामण्डल है। भगवान्के दोनों ओर अखण्ड दीपकका स्निग्ध मधुर प्रकाश सदा विकीर्ण रहता है । यहाँका वातावरण नास्तिक व्यक्तिके मनमें भी भक्तिकी तरंगें पैदा कर देता है। भगवान् ऋषभदेव तो जगत्पूज्य, लोकनायक हैं, वे सबके हैं, सब उनके हैं । यह चमत्कार यहाँ आकर देखनेको मिलता है । यह कितने सुखद आश्चर्यकी बात है कि यह प्रतिमा दिगम्बर जैन आम्नायकी है, मन्दिर दिगम्बर जैन आम्नायका है और दिगम्बर जैन भट्टारकोंका पोठ केन्द्र रहा है। किन्तु इस अद्भुत आश्चर्यजनक प्रतिमाके दर्शन करनेके लिए दिगम्बर जैनोंके अतिरिक्त श्वेताम्बर जैन, वैष्णव, शैव, भील, यहाँ तक कि सच्छुद्र भी बिना किसी बाधाके और समान रूपसे जाते हैं। कैसी अद्भुत महिमा है भगवान् केशरियानाथ की! मन्दिरका इतिहास केशरियानाथ अर्थात् ऋषभदेवका यह मन्दिर लाखों-करोड़ों भक्तोंकी श्रद्धाका केन्द्र है । किन्तु इस मन्दिरके निर्माणका इतिहास और काल क्या है, यह मूर्तिके इतिहासके समान अभी तक अनिर्णीत और विवादास्पद बना हुआ है। कुछ लोगोंकी धारणा है कि इस मन्दिरका निर्माण वि. संवत् २ में हुआ था। उस समय वह कच्ची ईंटोंका बना हुआ था। आठवीं शताब्दीमें यह पारेवा पत्थरका बनाया गया। चौदहवीं शताब्दीमें इसका जीर्णोद्धार किया गया। इतिहासमें तथ्यों और उनके समर्थक प्रमाणोंकी आवश्यकता पड़ती है। प्रमाणहीन तथ्य स्वीकार्य नहीं माने जाते। जिन्होंने इस मन्दिरका निर्माण-काल वि. संवत् २ अर्थात् ईसा पूर्व ५५ माना है, उन्होंने यह कल्पना किस आधारपर की है, यह स्पष्ट नहीं हो पाया। इसके समर्थक प्रमाण भी अभी तक प्रकाशमें नहीं आ पाये। अतः जबतक इस प्रकारके प्रमाण उपलब्ध नहीं होते, तबतक उक्त मान्यताको प्रामाणिक स्वीकार नहीं किया जा सकता। आठवीं शताब्दीमें मन्दिरके निर्माणकी कल्पना कुछ युक्तियुक्त प्रतीत होती है। जिस मन्दिरका जीर्णोद्धार चोदहवीं शताब्दीमें हुआ हो, उसका निर्माण चार-पाँच शताब्दी पूर्व माना जाना कुछ ठीक लगता है। केशरियानाथकी मूर्तिका निर्माण-काल भी यही होना चाहिए, इस प्रकारके पूर्व अनुमानकी भी इससे सम्पुष्टि हो जाती है। वर्तमान सम्पूर्ण मन्दिरको संरचना एक ही कालमें नहीं हुई, बल्कि उसके भिन्न-भिन्न भागोंका निर्माण भिन्न-भिन्न कालोंमें हुआ था। इस बातका समर्थन मन्दिरमें उपलब्ध शिलालेखोंसे होता है। इन शिलालेखोंका अपना विशेष ऐतिहासिक महत्त्व है। इनसे संघ, गण, गच्छ, अन्वय, तष्ठाता और प्रतिष्ठा-तिथि आदि अनेक महत्त्वपूर्ण बातोपर प्रकाश पड़ता है। इसालए उपलब्ध सभी शिलालेखोंको यहाँ उद्धृत किया जा रहा है। भगवान् ऋषभदेवकी प्रतिमा जिस गर्भगृह (निज मन्दिर) में विराजमान है, उसके बाहर
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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