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राजस्थानके दिगम्बर जैन तीर्थ यात्रियोंके लिए गद्दे, रजाइयां और बर्तनोंकी सुविधा उपलब्ध है। जलकी सुविधा प्रकृतिने कर ही दो है। प्रतिमाका इतिहास और किंवदन्ती
नागफणी पार्श्वनाथ प्रतिमाकी प्राप्तिके सम्बन्धमें एक अद्भुत किंवदन्ती प्रचलित है। कहते हैं, पहले यह प्रतिमा ऊपर पहाड़पर पेड़ोंके झुरमुटमें पड़ी हुई थी। एक महिला किसी कार्यवश पहाड़पर जा रही थी। जब वह इस प्रतिमाके निकटसे गुजरी तो अकस्मात् उसकी दृष्टि प्रतिमाके ऊपर पड़ो। भगवान्के दर्शन पाकर उसे बड़ी प्रसन्नता हुई। उसने मनौती मनायी"बाबा ! अगर मेरी कामना पूर्ण हो जाये तो मैं प्रतिदिन तेरी सेवा-पूजा किया करूंगी।" जब इस भक्त महिलाकी कामना पूर्ण हो गयी तो वह अपनी प्रतिज्ञानुसार प्रतिदिन वहां आकर भगवान्की सेवा-पूजा करने लगी। उसने अन्य लोगोंसे भी इस प्रतिमाके सम्बन्धमें चर्चा की। फलतः भक्तजनोंकी संख्या बढ़ने लगी। एक दिन उस भक्त महिलाने अपने भगवान्से कहा"बाबा ! मैं बूढ़ी औरत ठहरी। मुझमें हर रोज इतना ऊंचा चढ़कर आनेकी शक्ति नहीं है। तुम नीचे आ जाओ, वरना मैं कलसे नहीं आऊंगी।" भक्तके निश्छल हृदयकी पुकार थी यह । फलतः रात्रिमें देवने स्वप्नमें उसे उपाय बताया-"तू सरकण्डेकी गाड़ी बना और कच्चे सूतकी गुण्डी बना। तू मुझे गाड़ीपर रखकर ले जाना। लेकिन पीछे मुड़कर न देखना।"
वह वद्धा स्वप्नमें बताये गये उपायका स्मरण कर बडो प्रसन्न हई। प्रातःकाल होते ही उसने सरकण्डोंकी गाड़ी बनायी, कच्चे सूतसे उसे कसा और गाड़ी लेकर अपने भगवान्को लेने पहुंची। उसके मनमें खुशी समा नहीं पा रही थी कि आज भगवान् उसके घरपर पधारेंगे। उसने भगवान्की अगवानीके लिए बड़ी तैयारियां की थीं। उसने अपनी झोंपड़ीको सजाया-संवारा था। गोबरसे उसे लीपा था। आज त्रिलोकीनाथ भगवान् अपनी इच्छासे उसकी झोपड़ी में आनेवाले थे। तीनों लोकोंमें कौन इतना भाग्यशाली होगा।
___ऐसी हुमस लिये गाड़ी लेकर वह भगवान्के पास पहुँची । उसके शरीरपर पड़ी हुई झुर्रियोंमें आज उमंग, उत्साह और शक्तिको अलौकिक विद्युत् प्रवाहित हो रही थी। उसके भाग्यसे स्पर्धा करनेकी क्षमता आज किसीमें नहीं थी। उसने जाकर अपने भगवान्के आगे हाथ जोड़े, साष्टांग नमस्कार किया और उठकर आदेशके स्वरमें बोली-“अब चलो भगवान् !' यों कहकर उसने भगवान्को उठाया । लगा कि भगवान् तो चलनेके लिए जैसे बड़े उत्सुक हों। उस वृद्धाका जरासा सहारा मिला कि भगवान् गाड़ीमें सवार हो गये। गाड़ी खींचती हुई भगवान्को ले चली। गाड़ी खींचने में उसे कोई जोर नहीं लगाना पड़ रहा था। गाडी ऊबड़-खाबड़ पहाडी रास्तेपर ऐसे चली जा रही थी, मानो कोई चिकनी सीमेण्ट की सड़क हो।
गाड़ी एक झरनेके निकट आयी। वह पहाड़से उतर आयी थी। अब तक वह वृद्धा हर्ष और भक्तिसे विह्वल मानो बेसुध बनी चली आ रही थी। झरनेपर आकर उसके मनमें सन्देह जागा-'गाड़ी इतनी हलकी कैसे लग रही है। भगवान् तो बहुत भारी हैं, किन्तु गाड़ी तो भारी नहीं लगती। कहीं भगवान् रास्ते में ही तो नहीं गिर गये।' उसने मुड़कर देखा। बड़ी प्रसन्न हुई कि भगवान् तो गाड़ीपर बैठे हैं। फिर उसी उमंगसे उसने गाड़ी खींची, किन्तु गाड़ी टससे मस नहीं हुई। भक्तिके जिस सम्बलके सहारे वह भगवान्को यहाँ तक लाने में सफल हुई थी, सन्देह होते ही भक्तिका वह सम्बल हाथसे छूट गया था। आदिवासी गाजे-बाजे लेकर भगवान्की अगवानीके लिए वहाँ आये। उन सभीने मिलकर भगवान्को ले जानेके अनेक