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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ भगवान्के अभिषेकके काममें आता है। कहते हैं, कभी-कभी यहां सिंह आदि वन्य पशु भी जल पीने आ जाते हैं। यह स्थान राजस्थान प्रान्तके डूंगरपुर जिले में है। प्राचीनकालमें क्षेत्रके निकट बस्ती थी। क्षेत्र-दर्शन
पहाड़ीके ऊपर मन्दिर बना हुआ है । मन्दिरमें गर्भगृह और उसके आगे खेला मण्डप है। मूलनायक प्रतिमा भगवान् पार्श्वनाथकी है। किन्तु पाश्वनाथको यह स्वतन्त्र प्रतिमा नहीं है, अपितु पाश्वनाथके सेवक धरणेन्द्रके शीर्षपर पाश्वनाथकी लघु प्रतिमा विराजमान है । यह काफी घिस गयी है जिससे प्रतीत होता है कि प्रतिमा काफी प्राचीन है। भगवान्के सिरपर सप्तफणमण्डप बना हुआ है। इनमें तीन फण खण्डित हैं।
धरणेन्द्र ललितासनमें बैठे हुए हैं। उनके दायें हाथमें पुष्प है तथा बायां हाथ जंघापर रखा है। उनके हाथोंमें दस्तबन्द, भुजाओंमें भुजबन्द तथा गले में रत्नहार हैं। धोतीकी चुन्नटोंका अंकन बड़ा भव्य बन पड़ा है । बायें हाथके नीचे उत्तरीय लटका हुआ है।
इस प्रतिमाका वर्ण श्याम है। अवगाहना २ फुट २ इंच है। प्रतिमाकी चरण-चौकीके ऊपर कोई लेख नहीं है। मस्तकका पृष्ठभाग खण्डित है। यही प्रतिमा जनतामें नागफणी पाश्वनाथके नामसे प्रसिद्ध है।
नागफणी पाश्र्वनाथको दायीं ओर मल्लिनाथको कृष्णवणं वाली और १ फुट ४ इंच ऊंची पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। बायीं ओर पार्श्वनाथकी प्रतिमा है। यह कृष्ण वर्ण है. पद्मासन है और १ फुट ३ इंच उन्नत है। मल्लिनाथ प्रतिमाके पादपीठपर इस प्रकार लेख अंकित है"श्री मूलसंघे १६३७ वर्षे वैशाख वदि ८ बुधे भट्टारक श्री गुणकीर्ति गुरूपदेशात्"।
वेदी पर धातुके पार्श्वनाथ और एक चौबीसी विराजमान है। गर्भगृहके द्वारपर पाश्र्वनाथ भगवान्को एक मूर्ति है । मूर्ति-लेखके अनुसार इसकी प्रतिष्ठा विक्रम संवत् २००८ ज्येष्ठ कृष्णा ५ को हुई थी। खेला मण्डपके तीन ओर छड़दार किवाड़ें लगी हुई हैं। यहाँका दृश्य बिलकुल तपोवन-जैसा लगता है। मण्डपके आगे दोनों ओर ऊंची पर्वतमालाएं और हरे-भरे वृक्षोंकी कतारें हैं । पर्वतोंके मध्य चौरस भागमें मैस्वो नदी है। यह नदी बरसाती है। ग्रीष्म ऋतुमें यह सूखो पड़ी रहती है। यह स्थान बिलकुल निर्जन है। इसका निकटवर्ती मोदर गांव यहाँसे प्रायः दो फलाँग दूर है। अतिशय
जैन एवं जेनेतर जनतामें एक अतिशय क्षेत्रके रूपमें इस क्षेत्रकी मान्यता है। भक्त जन मनोकामनाएं लेकर यहाँ आते हैं। ग्रामवासियोंके पशु पहाड़पर चरने जाते हैं। कभी कोई पशु चरते-चरते दूर निकल जाता है और सन्ध्याको बहुत ढूंढ़नेपर भी जब नहीं मिलता तो पशुका मालिक नागफणी बाबाकी दुहाई देकर बोलता है-"बाबा ! अगर मेरा जानवर सुबह घर आ जायेगा तो मैं तेरे ऊपर दूध चढाऊँगा।" कहते हैं, इस पहाड़पर सिंह दम्पती रहता है। किन्तु आज तक कभी भी सिंहने यहाँ किसी पशुका शिकार नहीं किया। यहाँके आदिवासियोंका यह दृढ़ विश्वास है कि नागफणी बाबाकी छत्रछायामें कभी भी उनकी कोई हानि नहीं हो सकती। धर्मशाला
मन्दिरके दोनों पाश्वों में धर्मशाला बनी हुई है। मन्दिरकी दायीं बाज़में नीचे ऊपर हाल बने हुए हैं। बायें पाश्वमें नीचे तीन कमरे और ऊपर एक और हाल बना हुआ है।