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________________ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ शान्तिनाथ भगवान्की प्रतिष्ठा करायी थी। यह मन्दिर पांच फीट ऊंचे प्रासाद पोठपर वर्गाकार बना हुआ है। प्रवेशद्वार उत्तर और पश्चिम दिशामें हैं। इनके सिरदलपर तीर्थंकर पार्श्वनाथकी मूर्ति बनी हुई है। दक्षिण और पूर्व दिशामें गवाक्ष बने हुए हैं। इस मन्दिरमें गर्भगृह और खेलामण्डप अथवा सभामण्डप है । वर्तमान वेदी सूनी है । इसके बगल में भी एक मन्दिर है । इसमें खुला गर्भगृह और आगे ऊंची चौकीका मण्डप है। इस मन्दिरमें भी कोई मूर्ति नहीं है। इनकी बाह्य भित्तियोंपर जैन तीर्थंकरों और उनके शासन देवताओंकी मूर्तियां उत्कीर्ण हैं। कुछ लोग इस मन्दिरको शृंगार चंवरी कहते हैं। उनका कहना है कि महाराणा कुम्भाको राजकुमारीके विवाहकी चंवरी (विवाह मण्डप ) यही वेदी है । ऐसे लोग जैन मन्दिरों और उनकी वेदी-रचनाके सम्बन्धमें जानकारी न होनेके कारण ऐसी भूल करते हैं। उपलब्ध शिलालेखों और मन्दिरके प्रवेशद्वारके ऊपर एवं भित्तियोंपर बनी तोर्थंकर-मूर्तियोंसे इसके जैन मन्दिर होने में कोई सन्देह नहीं है। बनवोरकी दीवारके दक्षिणमें महाराणा कुम्भाके महल हैं। कहते हैं, इनके तहखानेसे एक सुरंग गोमुख तक जाती है। इनके निकट हो कंवरपदाके खण्डहर हैं। यहीं उदयसिंहका जन्म, पन्ना धाय द्वारा अपने पूत्रका बलिदान, महाराणा विक्रमादित्य द्वारा मीराबाईको विष-पान कराना आदि घटनाएं हुई थीं। कुम्भामहलका प्रवेश-द्वार 'बड़ी पोल' या 'त्रिपोलिया' कहलाता है। इस पोलके सामने महाराणा फतहसिंह द्वारा नवनिर्मित दो मंजिला भव्य महल है। इसमें सरकारी संग्रहालय है। इसके पश्चिममें मोतीबाजारके खण्डहर हैं। फतहप्रकाश महलके दक्षिण-पश्चिममें एक भव्य श्वेताम्बर मन्दिर है जो २७ देवरियों-के कारण 'सतवीस देवरा के नामसे प्रसिद्ध है। यह ११वीं शताब्दीका बताया जाता है। यहाँसे एक छोटी सड़क दक्षिण-पश्चिमकी ओर विजयस्तम्भके लिए जाती है । इसी सड़कपर महाराणा कुम्भा द्वारा निर्मित कुम्भश्यामका मन्दिर है। इस मन्दिरके अहातेमें मीराँ मन्दिर है जहाँ मोराबाई मुरली बजाते हुए कृष्णके सामने भक्तिमें लोन दिखाई गयी है। इस मन्दिरके सामने मीराँके गुरु रैदासकी छत्री बनी हुई है। इन मन्दिरोंसे आगे १० फोट ऊँची चौकीपर १२२ फीट ऊंचा नी मंजिलका विजयस्तम्भ बना हुआ है। इसमें ऊपर जानेके लिए १५७ सीढ़ियां बनी हुई हैं। इसके आन्तरिक और बाह्य भागमें पौराणिक देव-देवियोंकी मूर्तियाँ बनी हुई हैं। इस स्तम्भका निर्माण महाराणा कुम्भाने मांडूके सुलतान महमूद खिलजीके ऊपर अपनी विजयके उपलक्ष्यमें सन् १४४० से १४४८ में कराया था। इसके निकट एक समतल स्थल है जो यहाँके महाराणाओंका श्मशानस्थल था तथा यहींपर कर्मवती आदि रानियों और राजपूतललनाओंने जलती हुई चिताओंमें जौहर व्रत किया था। . इसके निकट ही गोमुख कुण्ड है। इसमें एक चट्टानमें बने गोमुखसे पहाड़ी स्रोत द्वारा निरन्तर जल गिरता रहता है। इसके उत्तरी किनारेपर पार्श्वनाथ जैन मन्दिर है। यह छोटा-सा मन्दिर श्वेताम्बरोंका है। इसमें एक चैत्य है। कुम्भा महलसे इस मन्दिर तक सुरंग आती है। गोमुख कुण्डके दक्षिणमें जयमल और फत्ताके भग्न महल खड़े हैं। इन महलोंके दक्षिणमें और सडकके पश्चिमी किनारेपर कालिका मन्दिर है। यह ८-९वीं शताब्दीका बताया जात इसके दक्षिण-पश्चिममें नौगजा पीरकी कब्र बनी हुई है। यह ९ गज लम्बी है। यहाँसे सड़क द्वारा कुछ आगे बढ़नेपर पद्मिनी महल मिलते हैं। एक छोटा महल तालाबके बीचमें बना हुआ है। इसके सामने बने हुए महलके एक कमरेमें बड़े-बड़े दर्पण लगे हुए हैं। कहते हैं, जल महलमें
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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