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राजस्थानके दिगम्बर जैन तीर्थ
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था । वह पद्मिनीको तो प्राप्त नहीं कर सका, अलबत्ता उसने चित्तौड़पर अवश्य अधिकार कर लिया । अमीर खुसरोके ग्रन्थ 'तारीख-ए-अलाई' की सूचनानुसार अलाउद्दीनने किला फतह करनेके बाद तीस हजार हिन्दुओंको कत्ल करवा दिया। रानी पद्मिनीने अन्य अनेक स्त्रियोंके साथ जोहर किया । यह चित्तौड़का प्रथम शाका कहलाता है ।
सन् १५३२ में गुजरातके सुलतान बहादुरशाहने राणा विक्रमादित्य के शासनकाल में चित्तौड़ पर आक्रमण किया । विक्रमादित्यके अशोभनीय व्यवहारके कारण मेवाड़के सरदार उससे अप्रसन्न रहते थे । अतः राजमाता कर्मवतीने उसे बूंदी भेज दिया । सरदारोंने देओलियाके रावत
सिंहको राज्यचिह्न धारण कराकर युद्धकाल तक महाराणाका प्रतिनिधि नियुक्त किया । दोनों ओरसे घमासान युद्ध हुआ । इस युद्ध में सुलतानको विजय मिली। राजमाता कर्मवतीने १३ हजार वीरांगनाओंके साथ जौहर किया । बाघसिंह आदि अनेक सरदार मारे गये ।
इस युद्ध के समय में ही महारानी कर्मवतीने मुगल सम्राट् हुमायूँको राखी भेजकर सहायताहुमायूँको चित्तौड़ पहुँचने में कुछ विलम्ब हो गया । चित्तोड़पर बहादुरशाहका अधिकार हो गया । जब हुमायूँ यहाँ पहुँचा तो बहादुरशाह भयभीत होकर किला छोड़कर भाग गया । यह चित्तोड़का दूसरा शाका कहलाता है ।
सन् १५६७ में मुगल बादशाह अकबरने चित्तौड़के ऊपर आक्रमण किया। महाराणा उदय सिंह बदनौर के राठौड़ जयमल और केलवाके सिसोदिया फत्ताको युद्धका नायक बनाकर सैन्य संग्रह करनेके लिए पहाड़ोंमें चले गये। दोनों नायकोंने युद्धमें वीरगति प्राप्त की । दुर्गपर अकबरका अधिकार हो गया । यह चित्तौड़का तीसरा शाका कहलाता है । इस युद्ध के पश्चात् ही राणा उदयसिंहने एक नवीन नगर उदयपुरकी नींव डाली और उसे ही मेवाड़ राज्यकी नयी राजधानी बनाया ।
इसके पश्चात् महाराणा प्रतापने अपनी मातृभूमिको रक्षाके लिए निरन्तर युद्ध किये । फलतः उन्होंने चित्तौड़को छोड़कर सम्पूर्ण मेवाड़को मुगल दासतासे मुक्त कराने में सफलता प्राप्त की । दुर्गं चित्तौड़ शहर के निकट ही है । दुर्गंमें दर्शनीय स्थल दिखानेके लिए तांगे मिल जाते हैं। तथा दुर्ग में गाइड भी मिलते हैं ।
दुर्गका प्रथम प्रवेशद्वार पाडन पोल है । इस द्वारमें प्रवेश करनेसे पूर्व ही बायीं ओर रावत बाघसिंहका स्मारक ( चबूतरा ) बना हुआ है । द्वितीय पोल भैरों पोलको पार करते ही सड़क के दाहिनी ओर चार खम्भोंवाली छोटी छतरी जयमलके सम्बन्धी कल्लाका स्मारक है तथा छह खम्भोंवाली बड़ी छतरी १६ वर्षीय राठोड़ जयमलका स्मारक है । इसके बाद क्रमशः हनुमान पोल, गणेश पोल, जोरला पोल, लक्ष्मण पोल और राम पोल मिलते हैं । यहाँसे दक्षिणकी ओर जानेवाले मार्गपर सिसौदिया फत्ताका स्मारक है । थोड़ा आगे बढ़नेपर बनवीरकी बनायी हुई दीवार है । यह राणा सांगाके भाई पृथ्वीराजका दासीपुत्र था । इसने महाराणा विक्रमादित्यको मारकर चित्तौड़की गद्दी हथिया ली थी । इसने कुमार उदयसिंह को भी मारनेका प्रयत्न किया था किन्तु पन्ना धायने अपने पुत्रको उदयसिंहके वस्त्र पहनाकर बनवीरके क्रोधका शिकार बना दिया और उदयसिंहकी रक्षा की। यहीं नौलखा भण्डार है । कहा जाता है, यहाँ पहले राज्य कोष रहता था। उक्त दीवारके पूर्वी भाग में तोपखाना और संग्रहालय बना हुआ है ।
बनवीरकी दीवारके मध्य में जैन मन्दिर बने हुए हैं जो राजपूत व जैन स्थापत्य कला के उत्कृष्ट नमूने हैं । यहाँ प्राप्त एक शिलालेख के अनुसार इनका निर्माण महाराणा कुम्भा के कोषाध्यक्ष और शाह कोलाके पुत्र बेलकाने सन् १४४८ में कराया था और जिनसागर सूरि द्वारा इस मन्दिर में
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