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________________ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ ..."जैन कीर्तिस्तम्भ आता है जिसको दिगम्बर सम्प्रदायके बघेरवाल महाजन सा. नायके पत्र जीजाने वि.सं.की चौदहवीं शताब्दीके उत्तरार्धमें बनवाया था। यह कीर्तिस्तम्भ आदिनाथका स्मारक है। इसके चारों भागोंपर आदिनाथको एक-एक विशाल दिगम्बर ( नग्न ) जैन मूर्ति खड़ी है और बाकीके भागपर अनेक छोटी जैन मूर्तियां खुदी हुई हैं।" -श्री गौरीशंकर हीराचन्द ओझा, उदयपुर राज्यका इतिहास __ श्री ओझाजीने विक्रमकी चौदहवीं सदीके उत्तरार्धमें इस स्तम्भका निर्माण स्वीकार किया है, जो विचारणीय है क्योंकि भट्टारक परम्परा, पट्टावलियों, शिलालेखों और मूर्तिलेखोंके आधारपर यह सिद्ध होता है कि जिन भट्टारक धर्मचन्द्रने पुण्यसिंहके आग्रहसे कीर्तिस्तम्भको प्रतिष्ठा करायी थी, उनका भट्टारकीय काल वि. सं. १२७१ से १२९६ तक है। अतः प्रतिष्ठा इसी बीच करायी होगी। इसलिए विक्रमको चौदहवीं शताब्दीको बजाय तेरहवीं शताब्दीका उत्तरार्ध इसका निर्माण-काल मानना युक्तिसंगत प्रतीत होता है। "कीर्तिस्तम्भको सं. ९५२ में बघेरवाल जातिके जीजा या जीजकने बनवाया था।" -बा. कामताप्रसाद "इसे बघेरवाल जीजाने सं. ११०० के लगभग बनवाया था।" -ब्र. शीतलप्रसादजी..मध्यभारत व राजपूतानेके जैन स्मारक, प. १३३-४१ चारित्ररत्नगणिकी चित्रकूटीय महावीर मन्दिरको प्रशस्तिमें राजा कुमारपालको इसका निर्माता बताया है। _ "जे कीर्तिस्तम्भ ऊपर जणाव्यो छे ते कीर्तिस्तम्भ प्राग्वंश ( पोरवाड़) संघवी कुमारपालो आप्रासादनी दक्षिणे बंधाव्यो हतो।" -श्री मोहनलाल दलीचन्द देसाई, जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, पृ. ४५५ "चित्तौड़ना किल्लां मां वे ऊंचा कीर्तिस्तंभो छे जो पैकीनो एक भ० महावीर स्वामीना कंपाउंड मां जैन कीर्तिस्तम्भ छे जे समये श्वेताम्बर अने दिगंबरना प्रतिमा भेदो पड्या हता ते समय नो एटले वि. सं. ८९५ पहेला नो ए जैन श्वेताम्बर कीर्तिस्तम्भ छ । उल्लट राजा जैनधर्म प्रेमी हतो। तेना समय मां भ० महावीर स्वामी ने मन्दिर अने कोतिस्तंभ ननो हसे। आ कीतिस्तंभ नो शिल्प स्थापत्य अने प्रतिमा विधान ते समयने अनुरूप छे ।" । -जेन सत्य प्रकाश, वर्ष ७, अंक १-२-३, मुनि ज्ञानविजयजी इस प्रकार इस कीर्तिस्तम्भके सम्बन्धमें अनेक विद्वानोंने विभिन्न मत प्रकट किये हैं। इसका कारण यह रहा है कि इन विद्वानोंके समक्ष इससे सम्बन्धित पर्याप्त सामग्रीका अभाव रहा है। किन्तु जबसे चित्तौड़के उपर्युक्त शिलालेखों तथा अन्य प्रामाणिक सामग्रीका प्रकाशन हुआ है, तबसे यह स्वीकार कर लिया गया है कि चित्तौड़का कीर्तिस्तम्भ बघेरवाल जातीय दिगम्बर जैनधर्मानुयायी जीजाने निर्माण कराया और उसके पुत्र पुण्यसिंहने उसे पूर्ण करके प्रतिष्ठा करायी। बा. कामताप्रसादजीने कीर्तिस्तम्भको बघेरवाल जातिके जीजा द्वारा बनवाया हुआ तो स्वीकार किया है किन्तु उसका समय उन्होंने जो संवत् ९५२ दिया है, वह कर्नल टाडकी रिपोर्टके आधारपर दिया है। कर्नल टाडको कोतिस्तम्भके अधोभागमें संवत् ९५२ का एक शिलालेख उपलब्ध हुआ था, जिसमें इस स्तम्भको आदिनाथ मन्दिर माना है, जब कि वस्तुतः यह मन्दिर नहीं, मानस्तम्भ था। इससे स्वभावतः यह निष्कर्ष निकलता है कि टाड साहबको प्राप्त शिलालेख मूलतः कीर्तिस्तम्भका नहीं था, किन्तु किसी अन्य आदिनाथ मन्दिरका रहा होगा। वह मन्दिर संवत् ९५२ में यहाँ होगा।
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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