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राजस्थानके दिगम्बर जैन तीर्थ प्रत्येकार्पितसप्तभंग्युपहितधर्मेरनन्तैविधि...तद्रूपविद्रूपशश्वदनेहसा नवनवीभावं स्वसात्कुर्वता । भावानिविंशतः पराकृततृषो द्वेष्यानशेषा....मचल स्वच्छप्रभंगे स्फुरन् दूरं स्वैरमसंकरव्यतिकरं तिर्यनलेतोव॑ताम् ।।७।। आकारैवियुतं युतं च.... ....स्वमहसि स्वार्थप्रकाशात्मके मज्जंतो निरुपाख्यमोघचिदचिन्मोक्षातितीर्थक्षिपः । कृत्वा नाद्य....... ....स्थितिकृते स्वर्गापवर्गात्तये। यः प्राज्ञैरनुमीयते सुकृतिना जीजेन निर्मापित स्तंभः सै ...... ...."सुभालोकैर्न कैरंच्यते ॥ वघेरवाल जातीय साः नायसुतजीजाकेन स्तंभः कारापितः ॥ शुभं भवतु ।"
इस शिलालेख में यद्यपि 'अनुमीयते' पद दिया है अर्थात् यह स्तम्भ पुण्यात्मा जीजाने बनवाया, ऐसा विद्वान् अनुमान लगाते हैं। किन्तु शिलालेखको उत्कीर्ण करानेवाले सज्जनने अन्तिम पंक्तिमें अपना अभिमत दिया है कि बघेरवाल जातीय नायके पुत्र जोजाकने इस स्तम्भका निर्माण कराया, यद्यपि यह शिलालेख जीजाकके पश्चात्वर्ती कालमें उत्कीर्ण कराया गया, इसमें सन्देह नहीं है, किन्तु जब भी यह उत्कीर्ण कराया गया हो, उस कालमें भी सबकी परम्परागत धारणा यही थी कि इस स्तम्भका निर्माण करानेवाला जीजा ही था।
एक तोसरा शिलालेख है जिसमें संघ सहित जीजाकी तीर्थ यात्रा समाप्त कर लौटनेका वर्णन है। इस शिलालेखमें प्रारम्भमें आचार्य पूज्यपादकी संस्कृत निर्वाणभक्तिके अन्तिम १२ पद्य देकर अन्तमें निम्नलिखित पाठ दिया है... "तेन सुवानन्तजिने ( श्वरा ) णां मुनिगणानां च (निर्वाण ) स्थानानि निवृत्त्यै (वा) पांतु संघं जीजान्वितं सदा॥" ___ अर्थात् अनन्त तीर्थंकरों और मुनियोंकी निर्वाण भूमियाँ यात्रा करके लौटे हुए जीजा सहित संघकी रक्षा करें।
यह शिलालेख निश्चय ही उस समय उत्कोणं कराया गया होगा, जब जीजा यात्रा संघके साथ तीर्थक्षेत्रोंकी यात्रा समाप्त करके यहां सानन्द वापस लोटा होगा।
उपर्युक्त शिलालेखोंसे यह तो स्पष्ट ही है कि चित्तौड़का कीर्तिस्तम्भ निश्चित रूपसे बघेरवाल जातिके नायकके पुत्र जीजाने बनवाना प्रारम्भ किया था। उसके पुत्र पुण्यसिंह अथवा पूर्णसिंहने उसका निर्माण कार्य पूरा कराया और उसकी प्रतिष्ठा करायी। इन लेखोंसे यह भी सिद्ध होता है कि जीजा और उसका पुत्र अत्यन्त वैभवसम्पन्न और राजमान्य व्यक्ति थे। कोतिस्तम्भके सम्बन्धमें भ्रान्त धारणाएँ
___चित्तौड़के कीर्तिस्तम्भके निर्माता और निर्माण-कालके सम्बन्धमें कुछ विद्वानोंने अवश्य ही भिन्न विचार प्रकट किये हैं। इस प्रकारके कुछ मतोंको यहाँ उद्धृत करना उपयुक्त प्रतीत होता है, जिससे उचित निर्णयपर पहुंचने में सहायता मिल सके।