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________________ राजस्थानके दिगम्बर जैन तीर्थ सं. पूनसी सा. धर्मसो सा. देदसी चैत्यालयोद्भरणधोरेण निज भुजोपार्जितवित्तानुसारेण महायात्रा प्रतिष्ठा तीर्थक्षेत्र उपर्युक्त लेख अधूरा है, किन्तु इससे कीर्तिस्तम्भके निर्माताका परिचय, उसकी वंशावली, उसके धार्मिक कृत्यों आदिपर प्रकाश पड़ता है। इसमें बताया है कि बघेरवाल जातिके, खमडवाड गोत्रके साह जीजाने १०८ शिखरबद्ध विशाल जिनालयोंका जीर्णोद्धार कराया, अनेक जिन बिम्ब प्रतिष्ठित कराये, १०८ बिम्ब प्रतिष्ठाएं करायीं; १८ स्थानोंमें १८ कोटि श्रुतभण्डारोंको स्थापना करायी। एक कोटिको क्या संख्या मानी जाय यह विचारणीय है। जैनकीर्तिस्तम्भ और जीजासे सम्बन्धित तीन शिलालेखोंकी प्रतिलिपियां उदयपुर संग्रहालयमें सुरक्षित हैं । एक शिलालेख, जो सम्भवतः किसी मन्दिरमें लगा हुआ था; वर्तमानमें चित्तौड़में गुसाईंजीके चबूतरेपर स्थित समाधिपर लग रहा है । यह खण्डित है और काफी घिस गया है । यह शिलालेख इस प्रकार पढ़ा गया है "सूनुस्तस्य तु दीनाको वाच्छीभार्यासमन्वितः। अधः सू (क) रोति पूजाये पुरंदर स (श) चीरुचम् ॥२१॥ नायाख्यः सूनुरस्यासीत् नायका (को) धर्मकर्मणि । अथवा न..."कर्मसु सर्द्ध (व) दा ॥२२॥ विशालकच्छ केतुच्छच्छायाछलध्वजवजैः। निजप्रासादसौधाग्रनृत्यतुंगकरिव ॥२३॥ तत्र यः कारयामास...................। रम्यकाम्यं सम्यक्त्ववे (चे) तसाम् ॥२४॥ स्वःसोपानोपदेशं दृढयति जिनः श्रीपदोत्कंठितानांसोपानमंडपोऽपि प्रकटयति ह.........विवाहः । उच्चैः प्रासादचंचत्कनकमयमहाकुंभशुंभध्वजाग्नेरारूढा नृत्यतीव प्रभुपदजयिनी मानसी सिद्धिरस्य ॥२५॥ . नागश्रीसंगतोदेन...........जडाग्नयः । कालकूटान्वयोन्याथी यो वृषांकः कलौ युगे ॥२६॥ हाल्लजिजुस्तथा न्योट्टलसमभिधः श्रीकुमारस्थिराख्यः षष्ठः श्रीए...पि विजयिनश्चक्रवर्तीश्रियस्तम् । तेषां या (यो) जिजुनामाजनि जनिहननप्राणपोरागमायः प्रज्ञातिश्रीत्रिवर्गप्रभुरभवदसौ जैन [धर्माभिलम्बी] ||२७|| यश्चन्द्रप्रभमुच्चकूटघटनं श्रीचित्रकूटे नटत्कोत्पल्लव तालवीजनमरुप्रध्वस्तसूर्याश्रमे। श्रीचैत्ये तलहट्टिका समघटी श्रीसादमीध्या........... .... वि जिनेश्वरस्य सदनं श्रीखोट्टरे सत्पुरे ॥२८॥ बूढाडोगरकेभधाच सुमिरौ जाने समारभ्य तन्मानस्तंभमहादिमं .. मिदं निवत्य... सत्यं स य . सुमंगलाय जयिने श्रीपूर्णसिंहाय वै. गीर्वाणोदयिनीश्च यं समगम धर्मानुरागोल्वणः ॥३०॥ १२
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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