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राजस्थानके दिगम्बर जैन तीर्थ पहाड़के नीचे तलहटीमें एक मन्दिर है। उसमें भगवान् पार्श्वनाथकी विशाल अवगाहनावाली खण्डित प्रतिमा विराजमान है। यहींपर नवनिर्मित जैन धर्मशाला है ।
व्यवस्था
क्षेत्रको व्यवस्था एक निर्वाचित प्रबन्धकारिणी समिति करती है। यह समिति पंजीकृत है। वार्षिक-मेला
इस क्षेत्रपर प्रतिवर्ष पौष वदी ९ और १० को मेला भरता है।
चित्तौड़
चित्तौड़का किला
चित्तौड़का विश्वविख्यात किला ऐतिहासिक दृष्टिसे अत्यन्त महत्त्वपूर्ण रहा है। मेवाड़के सीसौदियावंशी राणाओंकी राजधानीके रूपमें इसने शताब्दियों तक ख्याति प्राप्त की है। जब यह राजधानी था, तब यहाँके महल और बाजारोंको श्रीसमृद्धि और शोभा देखने योग्य थी, किन्तु अब तो लगभग चार शताब्दियोंसे यह उजड़ गया है और किलेके भीतर एक छोटा-सा गांव रह गया है।
यह किला राजस्थानके दक्षिण-पूर्वी पठारी भागमें अरावली पर्वतके दक्षिण-पूर्व में स्थित है। समुद्र-तलसे यह १८१० फुट ऊंची पहाड़ीपर स्थित है । यह उत्तर-दक्षिणमें साढ़े तीन मील लम्बा और आधा मील चौड़ा है। यह ६९० एकड़ भूमिपर बना हआ है। इसके ऊपर चढ़ने के लिए घूमती लहराती एक सड़क जाती है। इसपर सात द्वार बने हुए हैं। इनमें से एककी तो मात्र चौकी अवशिष्ट है। दक्षिण-पूर्वको ओरसे चढ़नेपर पहले पाडन पोल आता है। फिर जीर्ण-शीर्ण भैरो या फूटा पोल मिलता है। इसके बाद क्रमशः हनुमान् पोल, गणेश पोल, जोड़ला पोल, लक्ष्मण पोल, राम पोल और बड़ी पोल मिलते हैं। रामपोलके सामने एक कमरा है जो पाषाणस्तम्भोंपर बना हुआ है। आजकल यह पहरेदारों, रक्षकोंके उपयोगमें आता है। एक स्तम्भके शीर्ष भागमें विक्रम सं. १५३८ का एक शिलालेख अंकित है। इस लेखमें किसी विशिष्ट जैनकी यात्राका उल्लेख है। इस कमरेके ऊपर दोनों ओर छतरी बनी हुई हैं। इससे आगे बढ़नेपर बायें दक्षिणकी ओर जानेवाली सड़क मिलती है। जरा आगे बढ़नेपर पत्तासिंहका चबूतरा है। उससे दक्षिणको ओर कुछ मुड़नेपर एक छोटा हिन्दू मन्दिर है। उसके निकट विख्यात जैन कीर्तिस्तम्भ गर्वसे मस्तक उठाये खड़ा है। जैन कोतिस्तम्भ
___ स्थानीय जनता इसे छोटा कीर्तम कहती है। यह ७५।। फुट ऊँचा है। नीचे इसका व्यास ३१ फुट है तथा ऊपर जाकर यह १५ फुट रह गया है। प्रसिद्ध इतिहासवेत्ता कर्नल टाडको इस स्तम्भके अधोभागमें शिलालेखका एक खण्डित भाग प्राप्त हुआ था, जिसके अनुसार यह प्रथम जैन तीर्थंकर आदिनाथको अर्पित किया गया था। शिलालेखमें इसका काल विक्रम सं. ९५२ वैशाख सुदी पूर्णमासी गुरुवार दिया है। हमारी मान्यता है कि यह शिलालेख किसी अन्य मन्दिरका होगा जो मन्दिरके नष्ट होनेपर यहाँ रख दिया गया होगा।