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________________ ८५ राजस्थानके दिगम्बर जैन तीर्थ चंवलेश्वर पार्श्वनाथ अवस्थिति और मार्ग श्री चंवलेश्वर पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र राजस्थान प्रदेशके भीलवाड़ा जिले में भीलवाड़ासे ४५ कि. मी. पूर्वकी ओर है। भीलवाड़ासे पारौली तक पक्की सड़क है, बसें जाती हैं। वहाँसे लगभग ६ कि. मी. कच्चा मार्ग है. बैलगाड़ी मिलती है। दूसरा मार्ग अजमेरसे खण्डवा जानेवाली पश्चिमी रेलवे लाइनपर विजयनगर है। वहाँसे ४२ कि. मी. शाहपुरा है। पक्की सड़क है। बसें चलती हैं। शाहपुरासे बैलगाड़ीका रास्ता है । सवारी मिलती है। तीसरा मार्ग देवली कैण्टसे जहाजपुर होते हुए बस द्वारा पारौली पहुंचनेका है। वहाँसे क्षेत्र तक बैलगाड़ी द्वारा पहुँच सकते हैं। यहां अरावली पर्वत शृंखलाने प्रकृतिको अनिन्द्य सुषमाका अक्षय कोष लुटाया है। इन पर्वत मालाओंके चरणोंको मेवाड़की विश्रुत बनास नदी पखारती है। इन्हीं पर्वतमालाओंके मध्य कालोघाटी अवस्थित है । इसीके एक पहाड़पर चंवलेश्वर क्षेत्र विद्यमान है। अतिशय क्षेत्रका इतिहास ___ कहा जाता है, इन्हीं पर्वतोंके मध्यमें प्राचीनकालमें 'दरिवा' नामक एक नगर था जो धनधान्यसे सम्पन्न और व्यापारके कारण अत्यन्त समृद्ध था। इस नगरमें शाह श्यामा सेठ रहते थे। उनके पुत्रका नाम था सेठ नथमल शाह । एक ग्वाला इनकी गायको चराने ले जाता था। कुछ दिनोंसे गाय दूध नहीं देती थी। जब चरकर आती तो उसके स्तन खाली मिलते। सेठने ग्वालेसे इसका कारण पूछा, किन्तु वह जवाब नहीं दे सका । तब ग्वालेने उन्हें आश्वासन दिया कि मैं इस बातका पता लगाऊंगा। दूसरे दिन ग्वालेने सेठकी गायपर बराबर नजर रखी। जब गोधूलि वेलामें गायोंके वापस होनेका समय हुआ तो ग्वालेने देखा कि सेठजीको गाय स्वतः ही पहाड़की चूलपर जा रही है और एक स्थानपर खड़ी होनेपर उसका दूध स्वयं झर रहा है। सारा दूध झरनेपर गाय वापस आकर स्वतः ही गायोंके झुण्डमें मिल गयी है। ग्वालेने अपनी आँखों देखा सारा वृत्तान्त सेठजीको सुना दिया। सेठजी सोचने लगे"गायका दूध स्वतः ही क्यों झरता है और वह भी एक निश्चित स्थानपर!" इसका कोई समा न उन्हें प्राप्त नहीं हो सका। वे इसी विषयपर विचार करते-करते सो गये। रात्रिके अन्तिम प्रहरमें उन्हें स्वप्न आया। कोई देव पुरुष उनसे कह रहा था-"जहाँ गायका दूध झरता है, उस स्थानपर भगवान् पाश्वनाथकी मूर्ति है। उसे तुम निकालो और जिनालय बनवाकर उसमें प्रतिष्ठा करो।" प्रातः जागनेपर सेठजी स्वप्नका स्मरण करके बड़े प्रसन्न हुए। इस दैवी प्रेरणासे वे अपने आपको भाग्यशाली मानने लगे। उन्होंने सामायिक किया, नित्यक्रियासे निवृत्त होकर स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण किये और कुछ व्यक्तियोंको साथ लेकर स्वप्नमें निर्दिष्ट स्थानपर पहुंचे। उन्होंने नौ बार णमोकार मन्त्र पढ़कर जमीन खोदना प्रारम्भ किया। कुछ समय पश्चात् उन्हें मूर्तिका एक भाग दिखाई दिया। तब धीरे-धीरे सावधानीपूर्वक मिट्टी हटायी गयी, मूर्तिको बाहर निकाला। देखा कि मूर्ति सचमें भगवान् पार्श्वनाथकी है जो बलुआई पाषाणकी सलेटी वर्णकी पद्मासन
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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