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________________ ८४ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ कर दिया कि जैन समाज एक जीवित और संगठित समाज है जो अपने अधिकारोंकी रक्षाके लिए सतत जागरूक है और धर्म-रक्षाके लिए बड़ेसे बड़ा बलिदान देने में भी संकोच नहीं करती। मान्य जजोंके निर्णयोंसे सामान्य हिन्दू जनताने इन असामाजिक स्वार्थी तत्त्वोंके वास्तविक रूप और उद्देश्यको पहचान लिया तथा भविष्यमें इन लोगोंसे सावधान रहनेका संकल्प कर लिया। स्मरण रहे, इस नगरको कुल आबादी ६००० है, जिसमें जैनोंको कुल जनसंख्या ५०० है। धर्मशाला नगरमें दो जैन धर्मशालाएँ हैं-जैन भवन और जैन पंचायती नौहरा । इनमें कुल ९ कमरे हैं। इनमें नल, कुआं और बिजलीकी व्यवस्था है। मेला शिलालेखकी श्लोक संख्या ६० में यह उल्लेख है कि यही वह भीमवन है जहाँ जिनराजका वास है, ये ही वे शिलाएँ हैं जिन्हें कमठने आकाशमें फेंका था तथा यही वह कुण्ड और सरिता है जहाँ ( पार्श्वनाथ ) परमसिद्धिको प्राप्त हुए थे। ____ इस उल्लेखसे ऐसा प्रतीत होता है कि यहींपर पार्श्वनाथ भगवान्के ऊपर कमठासुरने भयंकर उपसर्ग किये थे और यहीं पार्श्वनाथको केवलज्ञान हुआ था। अभी यह निर्णय होना शेष है कि माथुर संघके भट्टारक गुणभद्रने इस स्थानको पाश्वनाथ भगवान्की केवलज्ञान कल्याणक भूमि किस आधारपर शिलालेखमें माना है। क्योंकि शास्त्रीय साक्ष्यों और परम्परासे अहिच्छत्रको पाश्वनाथका केवलज्ञान कल्याणक स्थान माना जाता है। उक्त शिलालेखको इस मान्यताका समर्थन जबतक अन्य प्रामाणिक स्रोतोंसे नहीं हो जाता, तबतक इसे स्वीकार करने में संकोच होना स्वाभाविक है। स्थानीय समाजने तो शिलालेखकी इस मान्यताको प्रमाणित सत्य मान लिया है। इसलिए क्षेत्रका वार्षिक मेला चैत्र कृष्णा ४ को किया जाता है, जिस दिन पाश्र्वनाथ भगवान्को केवलज्ञान हुआ था। सन् १९५५ में नगरमें पंचकल्याणक प्रतिष्ठाका विशाल समारोहपूर्वक मेला हुआ था। इस अवसरपर सुदूर और निकटवर्ती प्रान्तोंसे लगभग २५००० दर्शनार्थी आये थे। यह प्रतिष्ठा समारोह मुकदमेमें सफलता प्राप्त करनेके पश्चात् किया गया था। सन् १९६९ में यहाँपर आचार्य धर्मसागरजी महाराजका चातुर्मास हुआ था। उस समय कार्तिकी अष्टाह्निकामें यहाँ सिद्धचक्र विधान हुआ था। व्यवस्था क्षेत्रको व्यवस्था एक निर्वाचित समिति करती है, जिसका नाम 'श्री दिगम्बर जैन पाश्वनाथ अतिशय क्षेत्र कमेटी' है। क्षेत्रका पता इस प्रकार है मन्त्री, श्री दिगम्बर जैन पार्श्वनाथ अतिशय क्षेत्र कमेटी, बिजोलिया ( जिला भिलवाड़ा) राजस्थान
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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