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________________ ८२ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ कृषि-भूमि दी। वांतरी (उपरमाल ) परगनाके रायना ग्रामके महतो लोवंडि पोपलि, बड़ौर ( बड़ौवा ) ग्रामवासी पारिग्रही आल्हण, और लघु बीझोली (छोटी बिजौली) के गुहिल पुत्र रावल व्याहक महतो माहवने क्षेत्रको कृषि-भूमि प्रदान की। शिलालेखोंमें उल्लिखित भट्टारक इस क्षेत्रपर उपलब्ध शिलालेखोंमें, जो निषधिका स्तम्भोंमें उत्कीर्ण हैं, बलात्कारगण, सरस्वतीगच्छ, मूलसंघ, कुन्दकुन्दाचार्यान्वयके भट्टारकोंको परम्परा दी गयी है, वह इस प्रकार है१. वसन्तकीर्ति (संवत् १२६४) २, विशालकीर्ति (संवत् १२६६ ) ३. दमन कीर्ति ४. धर्मचन्द्र ( संवत् १२७१-१२९६ ) ५. रत्नकीर्ति (संवत् १२९६ से १३१०) ६. प्रभाचन्द्र (संवत् १३१० से १३८४) ७. पद्मनन्दि (संवत् १३८५ से १४५०) ८. शुभचन्द्र (संवत् १४५० से १५०७) ९. हेमकीति इनमें प्रथम भट्टारक वसन्तकीर्तिने दिगम्बर मुनियों पर म्लेच्छों आदि द्वारा उपसर्ग होते देखकर चर्याके समय नग्नताको ढंकने और चर्यासे लौटनेपर आच्छादन छोड़कर पुनः दिगम्बरत्व रण करनेका उपदेश दिया था, और उसे मनियोंके लिए अपवाद वेष बताया था। जैसा कि षट्प्राभृत टीकामें समुल्लेख है "कलौ किल म्लेच्छादयो नग्नं दृष्ट्वोपद्रवं यतीनां कुर्वन्ति तेन मण्डपदुर्गे श्री वसन्तकीर्तिना चर्यादिवेलायां तट्टीसादरादिकेन शरीरमाच्छाद्य चर्यादिकं कृत्वा पुनस्तन्मुंचन्तीत्युपदेशः कृतः संयमिनां इत्यपवादवेषः।" ___बलात्कारगण मन्दिर अंजनगांवकी हस्तलिखित पट्टावलीमें इन भट्टारकके सम्बन्धमें निम्नलिखित उल्लेख मिलता है _ "संवत् १२६४ माह सुदि ५ वसन्तकीर्तिजी गृहस्थ वर्ष १२ दीक्षा वर्ष २० पट्ट वर्ष १ मास ४ दिवस २२ अन्तर दिवस ८ सर्व वर्ष ३३ मास ५ बघेरवाल जाति पट्ट अजमेर।" __इस सूचनाके अनुसार भट्टारक वसन्तकीर्ति संवत् १२६४ में पट्टाधिरूढ़ हुए और वे केवल १ वर्ष ४ माह २२ दिन ही पट्टाधिपति रहे । किन्तु उस कालमें कुछ दिगम्बर मुनियोंने उनका उपदेश स्वीकार किया, इससे प्रतीत होता है कि उस युगमें वे अत्यन्त प्रभावशाली थे। इनकी परम्परामें प्रायः सभी भट्टारक बड़े प्रभावशाली हुए। शुभकीर्ति भट्टारकको किसी मुसलमान बादशाहने नमस्कार किया था। भट्टारक प्रभाचन्द्र सं. १३१० पौष शुक्ला १५ को भट्टारक पदपर प्रतिष्ठित हुए। ये जातिसे ब्राह्मण थे । इनसे दिल्लीमें मुहम्मद शाह बहुत प्रसन्न था। भट्टारक पद्मनन्दिके तीन शिष्य हुए, जिन्होंने तीन भट्टारक परम्पराएं चलायीं-भट्टारक शुभचन्द्रने बलात्कार गणको दिल्ली-जयपुर शाखाको स्थापना की। इनका पट्टाभिषेक संवत् १४५० माघ शुक्ला ५ को हुआ। ईडर शाखाका प्रारम्भ भट्टारक सकलकीर्तिसे हुआ। तथा, भट्टारक देवेन्द्रकीतिने सूरत शाखा चलायी।
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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