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________________ राजस्थानके दिगम्बर जैन तीर्थ ८१ नामक नरेश, कुन्त (जालौर) नरेशको बुरी तरह परास्त किया था । कुन्तकी राजधानी जाबालिपुर में आग लगाकर उसे नष्ट कर दिया । पाली और नटुल नामक नगरों का विनाश किया । आशिका ( हाँसी) की विजय करके ढिल्ली (दिल्ली ) पर अधिकार कर लिया । -विग्रहराज के बड़े भाईका पुत्र पृथ्वीराज ( द्वितीय ) था । उसने स्वर्ण आदि दस प्रकार - की बहुमूल्य वस्तुओं के तुलादान से ब्राह्मणों का सत्कार किया था। इसने वस्तुपाल नरेशपर आक्रमण करके 'मनसिद्धि' नामक प्रसिद्ध हाथी छीन लिया था । - पृथ्वीराजका पुत्र सोमेश्वर प्रबल प्रतापके कारण 'प्रताप लंकेश्वर' नाम से विख्यात हुआ था। इसके सामने पड़नेपर शत्रुओं की दो ही गति होती थी- या तो वे युद्ध भूमिसे भाग जाते थे । यदि वे वहाँ ठहरते थे तो मारे जाते थे । मूर्ति निर्माणका इतिहास और प्रतिष्ठाकारककी वंशावली इस शिलालेख से स्वयंभूत पार्श्वनाथ भगवान् की मूर्तिके प्रतिष्ठाकारक प्राग्वाट वंशी लोलार्क श्रेष्ठके पूर्वजों के धार्मिक कार्य, मूर्ति निर्माता, शिल्पकार, शिलालेख रचयिता, शिलालेखको उत्कीर्ण करनेवाले शिल्पी आदिके सम्बन्धमें विस्तृत परिचय प्राप्त होता है । इसके अनुसार लोलार्क श्रेष्ठोके पूर्वज वैश्रवणने तडागपत्तनमें जिनमन्दिर बनवाया । व्याघ्रेरक ( बघेरा ) में भी इनका बनवाया हुआ जिन-मन्दिर है । इनके विष्णु और चंचुल नामक दो पुत्र हुए | चंचुलसे शुभंकर, शुभंकरसे जामुट, जामुटसे पुण्यराशि हुए। इनका बनवाया हुआ नारायण क्षेत्रका वर्द्धमान जिन-मन्दिर इनकी पुण्यराशिको बढ़ाने में सहायक हुआ । इनकी दो पत्नियोंसे चार पुत्र हुए- आम्बट, पद्मट, लक्ष्मट और देसल । इन्होंने पाकोंके नरवरमें भगवान् महावीरका जिनालय बनवाया । लक्ष्मटके दो पुत्र हुए- मुनीन्दु और रामेन्दु । देसलके छह पुत्र हुए — दुद्दवनाथ, मोसल, विशदि, देवस्पर्श, सीयक और राहक । इन भाइयोंने अजयमेरु (अजमेर) में वर्द्धमान मन्दिरका निर्माण कराया । इनमेंसे सीयकने माण्डलगढ़ दुर्ग की साज-सज्जा करायी तथा स्वर्णदण्ड और स्वर्णकलशोंसे सुशोभित श्रीनेमिनाथ मन्दिर बनवाया । सीयकके दो पत्नियां थीं—नागश्री और मामटा । पहलीसे तीन और दूसरीसे दो पुत्र हुएनागदेव, लोलार्क, उज्जल, महीधर और देवधर । इनमेंसे लोलकने स्वयंभूत पार्श्वनाथ मन्दिरका निर्माण कराया । इसके अतिरिक्त इस श्रेष्ठीने यहां सात और मन्दिर बनवाये थे । इनके टूट जानेपर पाँच मन्दिर नये बनाये गये हैं, जिन्हें पंचायतन मन्दिर कहा जाता है । पार्श्वनाथ मन्दिरको प्रतिष्ठा भट्टारक जिनचन्द्रके तत्त्वावधान में की गयी थी । प्रस्तुत शिलालेखकी रचना माथुर संघके गुणभद्र नामक महामुनिने की । इस शिलालेखको नैगम कायस्थ छोति के पुत्र केशवने लिखा । मन्दिरके शिल्पीका नाम आहड़ था जो सूत्रधार हरसिंगका पोत्र और पाल्हणका पुत्र था । नानिगके पुत्र गोविन्द तथा पाल्हण के पुत्र देल्हणने इस शिलालेखको उत्कीर्ण किया । इस मन्दिर और मूर्तिकी प्रतिष्ठा विक्रम संवत् १२२६ फाल्गुन कृष्णा ३ गुरुवारको हुई थी । इस क्षेत्रको विभिन्न व्यक्तियोंने जो दान दिये, उनका भी विवरण इस शिलालेख में मिलता है । उसके अनुसार काँवा ( कामा) और रेवत ( रंधोलपुरा ) के बीच की कृषि भूमि गुहिल पुत्र रावल दाघर मह. घर्णासिंहने प्रदान की । खंदुवर ( खाड़ीपुर ) ग्रामवासी सोनि तथा वासुदेव गो १. श्रोगौरीशंकर हीराचन्द ओझा, राजपूतानाका इतिहास, भाग १, पृ. ३६२ ११
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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