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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ १२. गूवाक १३. चन्दन १४. वप्पयराज १५. विन्ध्यराज १६. सिंहराज १७. विग्रहराज १८. दुलंभ (द्वितीय) १९. गुण्डु ( गोविन्दराज) २०. वाक्पति २१. वीर्यराय ( वाक्पतिके अनुज ) २२. चामुण्डराय २३. सिंघट २४. दूसल २५. बीसलराज ( पत्नी राजदेवी) २६. पृथ्वीराज (इनकी पत्नीका नाम रासल्लदेवी था ) २७. जयदेव ( बीसलराजके पुत्र ) ( इनको रानीका नाम सोमल्लदेवी था ) २८. अर्णोराज २९. विग्रहराज ३०. पृथ्वीराज (द्वितीय ) ( विग्रहराजके बड़े भाईके पुत्र)
३१. सोमेश्वर शिलालेखमें दी हुई इस वंशावलीकी प्रामाणिक्ता असन्दिग्ध है, क्योंकि इसमें दिये हुए नाम शेखावाटीके हर्षनाथके मन्दिरमें लगी हुई विक्रम सं. १०३० की चौहान राजा सिंहराजके पुत्र विग्रहराजके समयकी प्रशस्ति, किनसरिया ( जोधपुर जिलेमें ) से मिले हुए सांभरके चौहान राजा दुर्लभराजके समयके विक्रम सं. १०५६ के शिलालेख तथा 'पृथ्वीराज विजय' महाकाव्यमें मिलनेवाले नामोंसे ठीक मिल जाते हैं।
___इस शिलालेखसे इन राजाओंके सम्बन्धमें कुछ और भी नये तथ्य प्रकाशमें आये हैं। स्वयंभूत पार्श्वनाथ मन्दिरको भुक्ति और मुक्तिके लिए पृथ्वीराज (द्वितीय) ने मोराझरी नामक गाँव दानमें दिया था।
इसके अतिरिक्त इस शिलालेखसे इन राजाओंकी कुछ महत्त्वपूर्ण सैनिक विजयोंपर भी प्रकाश पड़ता है। जैसे
-महाराज जयदेवने श्रीमार्ग, दुर्द, चंचिग, सिंघल और यशोराज जैसे वीरोंको स्वर्ग पहुँचाया। संग्राम क्षेत्रमें सोल्लण नामक प्रधान दण्डनायक आँख दिखाने मात्रसे ऊँटपर बैठा हुआ निश्चेष्ट हो गया।
-जयदेवके पुत्र अर्णोराज अत्यन्त वीर, गम्भीर, धीर, उदार और ओजस्वी थे। इन्होंने कुश, (कन्नौज), बारण (बुलन्दशहर ) के राजाओं और निर्वाण नारायण (नरवर्मन ) जैसे बलवान राजाओं तक का तिरस्कार किया था।
-अर्णोराजका पुत्र विग्रहराज अत्यन्त दयालु था, किन्तु युद्धक्षेत्रमें हाथमें तलवार पकड़ने पर यह अत्यन्त क्रूर हो जाता था और शत्रुओंके लिए कालरूप बन जाता था। इसने सज्जन