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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ इस क्षेत्रपर मनहरदेवकी मूलनायक प्रतिमाके अतिरिक्त भगवान् चन्द्रप्रभ और भगवान् नेमिनाथकी दो विशाल मूर्तियाँ हैं। मूर्तिचोरोंने इन दोनों मूर्तियोंका शिरोच्छेदन और हस्तविच्छेदन कर दिया है। सन् १९६७ में मूर्तिचोरोंने इस क्षेत्रपर १९ मूर्तियोंके सिर काट दिये।
इन घटनाओंके कारण क्षेत्रपर असुरक्षा और आतंकका वातावरण बन गया। इसलिए भगवान् शान्तिनाथकी मूर्तिको वहाँसे हटाकर किसी सुरक्षित स्थानपर ले जानेका निर्णय किया गया। इसके लिए सोनागिरको सर्वाधिक सुरक्षित स्थान मानकर मूर्तिको हटानेकी व्यवस्था की गयी और माघ शुक्ला १३ संवत् २०२५ (३० जनवरी सन् १९६९ ) को-सोनागिरमें भट्टारक चन्द्रभूषणजीको कोठीमें अलग वेदी बनवाकर विराजमान कर दी गयी। मूर्तिको हटानेमें उसके होठों और हाथोंको कुछ क्षति अवश्य पहुंची है, किन्तु अब वह मूर्ति पूर्णतः सुरक्षित हो गयी है। . भगवान् शान्तिनाथके कारण ही यह स्थान 'श्री दिगम्बर जैन अतिशय-क्षेत्र मनहरदेव' कहलाता था। उस मूर्तिके हटनेसे अब इस स्थानका पूर्ववत् महत्त्व नहीं रह गया है। यहाँ तलहटीके मन्दिरोंका जीर्णोद्धार वि. सं. २००४ में हो चुका है किन्तु अभी तक पहाड़ीके ऊपरके मन्दिरोंका जीर्णोद्धार नहीं हो पाया। यहाँपर बिखरी हुई पुरातत्त्वसामग्रीको एकत्रित और सुरक्षित करनेकी आवश्यकता है। यहाँ पर ११-१२वीं शताब्दीकी भी मूर्तियां उपलब्ध होती हैं।
सोनागिरि अवस्थिति
सोनागिरि जिसे स्वर्णगिरि, श्रमणगिरि आदि भी कहते हैं, परम पावन सिद्धक्षेत्र है। यह मध्यप्रदेशके दतिया जिलेमें दतियासे रेलमार्गसे ११ कि. मी. दूर पर अवस्थित है। पहाड़की तलहटीमें सनावल नामक एक ग्राम है। यहीं सोनागिरि क्षेत्रका कार्यालय और धर्मशाला है। सेण्ट्रल रेलवेको ग्वालियर-झाँसी लाइनपर ग्वालियरसे ६१ कि. मी. आगे सोनागिरि स्टेशन है, वहाँसे क्षेत्र ५ कि. मी. है। स्टेशनसे क्षेत्र तक पक्की सड़क है। सड़कका निर्माण दिगम्बर जैन समाजकी ओरसे तोर्थक्षेत्र कमेटीने कराया है। ट्रेनसे जाते समय पर्वतपर स्थित मन्दिरोंके उत्तुंग शिखरोंके दर्शन होते हैं । इसका पोस्ट ऑफिस सोनागिरि ही है। सिद्धक्षेत्र
___ सोनागिरि स्वर्णगिरिका हिन्दी रूपान्तर है। बोलचालमें सोनागिरि नाम ही प्रसिद्ध है। यह सोनागिरि सिद्धक्षेत्र है। यहाँसे नंग, अनंग आदि साढ़े पाँच जोटि मुनि तपस्या करके मुक्त हुए हैं। प्राकृत निर्वाण काण्डमें इस सम्बन्धमें निम्नलिखित गाथा उपलब्ध होती है
धंगाणंगकुमारा कोटी पंचद्ध मुणिवरा सहिआ।
सोनागिरि वरसिहरे णिव्वाणगया णमो तेसिं ॥५॥ अर्थात्, सोनागिरिके शिखरसे नंग-अनंगकुमार साढ़े पांच करोड़ मुनियों सहित मोक्ष पधारे।
कई प्रतियोंमें सवणागिरि पाठ मिलता है। कुछ प्रतियोंमें 'सुवण्णगिरि मत्थ-यत्थे' पाठ है। सवणागिरिका संस्कृत रूप श्रमणगिरि होता है और सुवण्णगिरिका संस्कृत रूप सुवर्णगिरि। इससे कोई अन्तर नहीं पड़ता। श्रमणसे सवन, सोन और सोनागिरि बन गया। इसी प्रकार सुवर्णसे सोनागिरि बन जाता है। इस सोनागिरि क्षेत्रसे साढ़े पांच करोड़ मुनि मोक्ष पधारे । अतः यह क्षेत्र अत्यन्त पवित्र है।