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________________ मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ विराजमान करते हैं और वहां मेला भरता है। असौज अमावस्याको वासुपूज्य मन्दिर ग्वालियरसे श्रीजीको जलेव एक पत्थरकी बावड़ीपर जाती है । यह मेला बड़ा होता है। जैनधर्मशालाएँ यहाँ लश्करमें ९, ग्वालियरमें २ तथा मुरारमें १ जैन धर्मशालाएँ हैं। इनमें नयी सड़क ( लश्कर ) में महावीर धर्मशाला अधिक सुविधाजनक है। मनहरदेव मार्ग - श्री मनहरदेव क्षेत्र ग्वालियर जिलेकी तहसील पिछौरमें स्थित है। सेण्ट्रल रेलवेके आन्तरी और डवरामण्डी स्टेशनोंसे यह लगभग १९ कि. मी. दूर है। चिनौर तक पक्की सड़क है। वहाँसे ५ कि. मी. कच्चा रास्ता है। इसका पोस्ट ऑफिस करहिया ( जिला ग्वालियर, मध्यप्रदेश ) है। करहियासे यह ८ कि. मी. दूर पड़ता है। यह क्षेत्र चैत्य नामक ग्रामके निकट एक छोटी-सी पहाड़ीपर स्थित है। अतिशय-क्षेत्र __श्री शान्तिनाथ दिगम्बर जैन अतिशय-क्षेत्र मनहरदेव एक पहाड़ीपर है। पहाड़ी विशेष ऊँची नहीं है। पर्वतपर एक जैन मन्दिर है तथा ११ मन्दिर जीर्ण-शीर्ण दशामें विद्यमान हैं। पर्वतकी तलहटीमें भी दो मन्दिर हैं। पर्वतपर स्थित मन्दिरमें मूलनायकके रूपमें सेठ पाड़ाशाह द्वारा प्रतिष्ठित भगवान् शान्तिनाथकी १५ फुट उत्तुंग कायोत्सर्गासन दिगम्बर जैन प्रतिमा विराजमान थी, जो अब सोनागिर क्षेत्रपर पहुंचा दी गयी है। प्रतिमा अत्यन्त मनोज्ञ और अतिशयसम्पन्न है। इसके अतिशयोंके सम्बन्धमें जनतामें अनेक किम्वदन्तियाँ प्रचलित हैं। जैन जनताके समान निकटवर्ती अजैन जनतामें भी इस क्षेत्रकी अत्यधिक मान्यता रही है और वह इसे चैत्य-क्षेत्रके नामसे पूजती हैं। वास्तवमें चैत्य-क्षेत्र उसी क्षेत्रको कहा जाता है जहाँ चैत्य अर्थात् जैन मूर्ति और जैन मन्दिर हों। इसी कारण गांवका नाम भी चैत्य पड़ गया है। यह मूर्ति मनको हरनेवाली है। इसलिए सर्वसाधारणमें यह मनहरदेवके नामसे प्रसिद्ध रही है। प्रतिमाकी चरण-चौकीपर कोई लांछन स्पष्ट नहीं है। करहिया निवासी पं. लेखराजजीने 'वरैया विलास' नामक ग्रन्थमें इस मूर्तिको ऋषभदेवकी मूर्ति के रूपमें उल्लेखित किया है। किन्तु जैन समाजमें भगवान् शान्तिनाथकी मूर्तिके नामसे यह प्रसिद्ध है । इस प्रसिद्धिका कारण सम्भवतः यह मान्यता है कि इस मूर्ति के प्रतिष्ठाकारक सेठ पाडाशाह थे और पाडाशाहने सर्वत्र शान्तिनाथकी मूर्ति ही मूलनायकके रूपमें प्रतिष्ठित की है। यह मान्यता अधिक साधार रही है, अतः सर्वसाधारणमें यही मान्यता प्रचलित रही है और सभी इस मूर्तिको शान्तिनाथकी ही मूर्ति मानते हैं। - यह क्षेत्र नितान्त एकान्तमें है और इस क्षेत्रपर एवं इसके निकटवर्ती प्रदेशमें जैन पुरातत्त्वकी सामग्री विपुल परिमाणमें असुरक्षित दशामें बिखरी हुई पड़ी है। ऐसे स्थान मूर्तिचोरोंको अपनी सुरभिसन्धि पूरी करने में बहुत अनुकूल पड़ते हैं। इस क्षेत्रपर भी इन लोगोंने अपने कुत्सित कृत्यों द्वारा कला, इतिहास और धार्मिक भावनाओंको गहरा आघात पहुँचाया है।
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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