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________________ ५२ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ - इसी प्रकार माधवसेनके दूसरे शिष्य विजयसेनसे दूसरी परम्परा प्रारम्भ हुई। इस परम्परामें विजयसेन, नयसेन, श्रेयांससेन, अनन्तकीर्ति, कमलकीर्ति, क्षेमकीर्ति, हेमकीर्ति, कमलकीर्ति हुए। कमलकीतिके दो शिष्य थे-शुभचन्द्र और कुमारसेन । शुभचन्द्रने अपनी पीठ सोनागिरिमें स्थापित की। इनके शिष्य यशःसेन थे। कमलकीतिके दूसरे शिष्य कुमारसेनकी शिष्य-परम्परामें हेमचन्द्र, पद्मनन्दि, यशःकीर्ति हुए। यशःकीतिके पट्ट-शिष्य दो हुए-गुणचन्द्र और क्षेमकीर्ति । गुणचन्द्रके शिष्य सकलचन्द्र और उनके शिष्य महेन्द्रसेन हुए। यशःकीर्तिकी शिष्य रम्परामें क्षेमकीर्ति और त्रिभवनकीर्ति हए । इनका पदाभिषेक हिसार में हआ। इनकी परम्परामें सहस्रकीर्ति, महीचन्द्र, देवेन्द्रकीर्ति, जगत्कीर्ति, ललितकीर्ति, राजेन्द्रकीर्ति और मुनीन्द्रकीर्ति हुए। .. इन भट्टारकोंका अपने समयमें राजा और प्रजा दोनोंपर ही अद्भुत प्रभाव था। इन्होंने अनेक मन्दिरों और मूर्तियोंकी प्रतिष्ठा की, अनेक भट्टारकोंने स्वयं शास्त्र लिखे तथा दूसरे विद्वानोंको प्रेरणा देकर शास्त्र लिखवाये, शास्त्रोंकी प्रतिलिपि करायी। इन भट्टारकोंमें-से जिन्होंने कुछ विशेष कार्य किये, उनका संक्षिप्त उल्लेख यहां किया जा रहा है विमलसेन–समय १४वीं शताब्दीका उत्तरार्ध । वि. सं. १४१४ में इनके द्वारा प्रतिष्ठित एक पद्मासन धातु चौबीसी जयपुरके पाटौदी मन्दिरमें विराजमान है। सं. १४२८ में प्रतिष्ठित आदिनाथकी एक मूर्ति दिल्लीके नया मन्दिरमें विद्यमान है। - धर्मसेन-समय विक्रमकी १५वीं शताब्दी। इनके द्वारा प्रतिष्ठित पाश्वनाथ, अजितनाथ और वर्धमान तीर्थंकरोंकी प्रतिमाएँ जैन मन्दिर हिसारमें विराजमान हैं। . गुणकोति-इनके तप और चरित्रका प्रभाव तोमरवंशके शासकोंपर पड़ा और वे जैनधर्मकी ओर आकर्षित हुए। ये अत्यन्त प्रभावशाली थे। राजा डूंगरसिंहके शासनकालमें जैन मूर्तियोंके उत्कीर्णनका जो महत्त्वपूर्ण कार्य हुआ, उसका श्रेय इन्हीं भट्टारकको है। . यश कीति-ये गुणकीर्तिके लघुभ्राता और शिष्य थे। ये बड़े विद्वान् थे। इनकी रचनाओंमें पाण्डवपुराण, हरिवंशपुराण, आदित्यवारकथा और जिनरात्रिकथा मुख्य हैं। इन्होंने महाकवि स्वयम्भूके खण्डित और जीर्ण-शीर्ण हरिवंशपुराणका उद्धार ग्वालियरके पास पनिहार जिन चैत्यालयमें बैठकर किया था। भट्टारक गुणभद्र-आप प्रकाण्ड विद्वान् थे। आपने लोगोंके आग्रहसे १५ कथाओंकी रचना की। . भानुकोति-इनकी लिखी हुई रविव्रतकथा प्राप्त होती है। - ___कमलकोति-इनके समयमें कविवर रइधूने चन्द्रवाड़में भगवान् चन्द्रप्रभ-मूर्तिकी प्रतिष्ठा की। ग्वालियरमें जैन मन्दिर और वार्षिक मेले ___ ग्वालियर, लश्कर और मुरार इन तीन भागोंको मिलाकर ग्वालियर शहर कहलाता है। इनमें से ग्वालियरमें ४ मन्दिर और ४ चैत्यालय हैं, लश्करमें कुल २० मन्दिर और ३ चैत्यालय हैं, तथा मुरारमें २ मन्दिर और २ चैत्यालय हैं। : । यहाँ जैन समाजकी ओरसे २६ जनवरीको रथयात्रा निकाली जाती है। असौज कृष्ण २ को ग्वालियर किलेके उरवाही द्वारके नीचे पंचायती मेला होता है। असौज कृष्ण ४ को दिगम्बर जैन जैसवाल मन्दिर दानाओलीसे भगवान्की प्रतिमाको एक पत्थरकी बावड़ीपर ले जाकर
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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