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________________ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ से ३१७ कि. मी. और बम्बईसे १२२५ कि. मी. दूर है। ग्वालियरसे इन्दौर होते हुए बम्बई तक, आगरा होते हुए दिल्ली तक और कानपुर होते हुए कलकत्ता तक पक्की सड़कें हैं। ग्वालियर हवाई मार्गपर भी है। 'एयर इण्डिया सर्विस' ग्वालियरको दिल्ली-बम्बईसे जोड़ती है। गोपाचल दुर्ग पुरातन कालमें ग्वालियरके कई नाम जैन वाङ्मयमें उपलब्ध होते हैं जैसे गोपाद्रि, गोपगिरि, गोपाचल, गोपालाचल, गोवागिरि, गोवालगिरि गोपालगिरि, गोवालचलहु, ग्वालियर । ये सब नाम ग्वालियरके दुर्गके कारण पड़े हैं। इस दुर्गका अपना एक इतिहास है। कुछ लोगोंका कथन है कि यह दुर्ग ईसासे ३००० वर्ष पूर्वका है। कुछ पुरातत्त्वज्ञ इसे ईसाकी तीसरी शताब्दीमें निर्मित मानते हैं । इस दुर्गकी गणना भारतके प्राचीन दुर्गोमें की जाती है। इस दुर्गकी स्थापनाके सम्बन्धमें कई किंवदन्तियाँ प्रचलित हैं। एक किंवदन्तीके अनुसार यहाँ पहाड़ीपर ग्वालिय नामक एक साधु रहते थे। एक दिन नगरके नरेश सूर्यसेन, जिन्हें कुष्ठ रोग हो गया था, घूमते हुए इस पहाड़ीपर आ निकले और उनकी उक्त साधुसे भेंट हो गयी। नरेशने साधुको प्रणाम करके अपने कुष्ठ रोगका कुछ उपचार पूछा। साधुने राजासे वहाँ बने हुए तालाबमें स्नान करनेका परामर्श दिया। राजाने वैसा ही किया और स्नान करते ही उनका कुष्ठ रोग जाता रहा । राजाने उस साधुके इच्छानुसार उस पहाड़ीपर एक दुर्ग बनवाया और उसका नाम ग्वालिगढ़ रखा और पश्चात् उस नगरका नाम भी ग्वालियर रख दिया। सम्भवतः यह घटना ईसाकी तीसरी शताब्दीकी है। ऐतिहासिक दृष्टि से इसका सर्वप्रथम उल्लेख हूण सरदार मिहिरकुलके सूर्य मन्दिरवाले शिलालेखमें मिलता है। इसमें राज्यके १५३ वर्षमें गोपगिरिपर मातृचेल द्वारा सूर्य मन्दिरको स्थापनाका उल्लेख है। इसी प्रकार चतुर्भुज मन्दिरके वि. सं. ९३२-९३३ के शिलालेखमें भी उक्त दुर्गका उल्लेख मिलता है। यह शिलालेख कन्नौजके राजा भोजदेवके समयका है। उस कालमें इस दुर्गपर कन्नौज-नरेशका अधिकार था। इस प्रकार यह किला इससे पूर्वका होना चाहिए। वह जलाशय अब भी है, जिसका नाम सूर्यकुण्ड है किन्तु लगता है, उसके जलमें पहले-जैसा चमत्कार नहीं रह गया। यह किला ३०० फुट ऊंची पहाड़ीपर बना हुआ है। उत्तरसे दक्षिणकी ओर इसकी लम्बाई पौने दो मील है तथा पूर्वसे पश्चिम तक इसकी चौड़ाई ६०० से २८०० फुट तक है। किलेमें चार हिन्दू और दो मुस्लिम इमारतें विशेष रूपसे उल्लेखनीय हैं-मान मन्दिर, गुजरी महल, करण मन्दिर, विक्रम मन्दिर, जहाँगीर महल और शाहजहानी महल । कुछ महत्त्वपूर्ण हिन्दू मन्दिर भी यहाँ दर्शनीय हैं-जैसे सूर्यदेव, ग्वालिया, चतुर्भुज, जयन्ती थोरा, तेलीका मन्दिर, सास-बहू ( बड़ा), सास-बह ( छोटा ), माता देवी, धीन्धदेव और महादेव । इनके अतिरिक्त एक महत्त्वपूर्ण जैन मन्दिर भी किलेमें है, जिसका पता सन् १८४४ में कनिंघमने लगाया था। गोपाचल दुर्गपर विभिन्न राजवंशोंका शासन सूरजपालने यहाँ ३६ वर्ष राज्य किया। इस केशमें रसकपाल, नहरपाल, भीमपाल, अमरपाल, गंगपाल, भोजपाल, पदमपाल, अनंगपाल. इन्द्रपाल, जीतपाल, ढाण्डपाल, लक्ष्मणपाल नहरपालं, मण्डरपाल, अजीतपाल, बुद्धपाल आदि ८४ राजाओंने राज्य किया। इनका राज्यकाल लगभग ९८९ वर्ष रहा । फिर यहाँ परिहारवंशका १०२ वर्ष तक राज्य रहा । उपर्युक्त शिलालेखोंसे
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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