SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 60
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मध्यप्रदेशके विगम्बर जैन तीर्थ अम्बिका देवीका मन्दिर और हनुमान् मूर्ति गांवके निकट ही हैं। सिहौनियामें पुरातत्त्वसामग्री विपुल परिमाणमें उपलब्ध हुई है। यह सामग्री प्रायः १०-११वीं शताब्दीकी है। यह सम्पूर्ण सामग्री ग्वालियर-दुर्गमें स्थित संग्रहालयमें सुरक्षित है। इस सामग्रीमें विष्णु, नरबराह, नरसिंह, राम-सीता, वैद्यनाथ, पार्वती, अग्नि, सूर्य, ब्रह्माणी, सरस्वती, इन्द्र आदि देव-देवियोंकी मूर्तियाँ हैं । कुछ नारी-मूर्तियां भी हैं, जिनमें से कुछ तो अप्सराओंकी हैं और एक मूर्ति शालभंजिकाकी है । शालभंजिकाकी मूर्ति सरस लोक-जीवनका प्रतिनिधित्व करती है। कुछ ऐसी भी नारीमूर्तियाँ यहाँ मिली हैं, जिनमें स्त्री सिरपर भरा हुआ घड़ा रखकर और दोनों हाथोंमें दीपक लिये इठलाती हुई जा रही है। शायद यह भारतीय नारीकी ही विशेषता है कि वह भरे हुए घड़ेको सिरपर रखकर उसे बिना पकड़े साधकर सहज हीमें ले जा सकती है। इसी विशेषताको प्रदर्शित करनेवाली ये मूर्तियां वस्तुतः भारतके तत्कालीन लोक-जीवनपर प्रकाश डालती हैं। इस सबसे लगता है कि सिहौनिया मध्ययुगमें अत्यन्त समृद्ध था। तत्कालीन समाजमें कलाके प्रति अत्यधिक रुचि थी, कलाने केवल कल्पना न रहकर, वास्तविक रूप ग्रहण कर लिया था; और विकसित दशाको प्राप्त हो चुकी थी। इस कालको कलाकी दृष्टिसे हम उसका प्रौढ़ काल कह सकते हैं। सिहौनिया कलाको अपना महत्त्वपूर्ण योगदान करनेमें किसीसे पीछे नहीं रहा। मार्ग सिहौनिया क्षेत्र आगरा-वालियरके मध्य स्थित मुरैनासे ३० कि. मी. है। मुरैनासे बड़ागांव होकर सिहोनिया तक पक्की सड़क है और बसें चलती हैं। बस गाँवके बाहर थाने तक जाती है। वहाँसे सिहौनिया दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्रका मन्दिर कच्चे मार्गसे लगभग एक किलोमीटर दूर है। ग्वालियर स्थिति और मार्ग ग्वालियर सेण्ट्रल रेलवेकी मुख्य लाइनपर आगरा-झांसीके मध्यमें आगरासे ११८ कि. मी. और झांसीसे ९७ कि. मी. दूर एक प्रसिद्ध शहर है। यह एक समय ब्रिटिश शासनकालमें भारतकी रियासतोंमें चौथे नम्बरपर था और उसके नरेश सिन्धिया वंशके थे। आजकल तो यह मध्यप्रदेशका एक प्रमुख शहर मात्र रह गया है और कुछ प्रशासकीय कार्यालयोंके अतिरिक्त उसका कोई विशेष राजनैतिक महत्त्व नहीं है। किन्तु प्राचीन कालमें इसका बड़ा राजनैतिक महत्त्व रहा है और अनेकों राजनैतिक घटनाएँ यहाँ घटित हुई हैं। दक्षिण-भारतका द्वार होनेके कारण इसको विशेष राजनैतिक महत्व मिल चुका है। जैन इतिहास, जैन कला और पुरातत्त्वकी दृष्टिसे भी इसका गौरवपूर्ण स्थान रहा है। यह शहर तीन भागोंको मिलकर बना है-ग्वालियर, लश्कर और मुरार । ग्वालियर पहाड़ीपर बने हुए किलेके उत्तरमें स्थित है, लश्कर किलेके दक्षिणमें तथा मुरार किलेके पूर्व में है। लश्कर सन् १८१० में दौलतराव सिन्धियाके फोजी लश्कर या छावनीके रूपमें बस गया और मुरारमें पहले अंगरेजोंकी छावनी रहती थी। ग्वालियर आगरासे दक्षिणमें ११८ कि. मी., दिल्ली
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy