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________________ ३२ भारतके दिगम्बर जैन लो ___ इसके अतिरिक्त शेष १८ मूर्तियां तीर्थंकरोंकी हैं। इनमें खड्गासन और पद्मासन दोनों ही प्रकारकी मूर्तियां हैं। किन्तु अधिकांश मूर्तियां पद्मासन हैं। ये मूर्तियां कमसे कम ९ इंचकी हैं और अधिकतम अवगाहनावाली मूर्ति तीन फुटकी है। एक मूर्ति चतुर्मुखी ( सर्वतोभद्रिका ) है। इन मूर्तियोंके लिए अभी तक वेदी नहीं बनी है। अतः ये मूर्तियाँ अभी भूमिपर ही रखी हुई हैं। " मूलनायक प्रतिमाको भित्तिके पीछे खुले आकाशके नीचे भूगर्भसे प्राप्त कुछ खण्डित मूर्तियां रखी हुई हैं। • उपर्युक्त सभी खण्डित और अखण्डित मूर्तियां मध्यकालकी, विशेषतः १०-११वीं शताब्दी की हैं। पुरातत्त्व मध्यप्रदेशमें पुरातत्त्व और कलाकी दृष्टिसे जिन स्थानोंका-सर्वाधिक महत्त्व है, उनमें सिहोनियाका भी अपना विशिष्ट स्थान है। यहाँ उपलब्ध पुरातत्त्वावशेष मन्दिर और मूर्तियाँइस बातकी साक्षी हैं। सिहोनिया मध्ययुगमें एक सम्पन्न नगर था। इसका पता हमें यहां प्राप्त हिन्दू और जैन मन्दिरोंके अवशेषोंसे चलता है। इस समय यह गांव बहुत साधारण और छोटा-सा रह गया है, किन्तु इस समय भी यहां प्राचीन गौरवकी परिचायक कुछ सामग्री-मन्दिर और मूर्तियाँ-बची हुई हैं। जैसे काकनमठ, अम्बिकादेवीका मन्दिर, हनुमान्की मूर्ति, पाषाण-स्तम्भ और जैन मूर्तियाँ। इनमें पाषाण-स्तम्भ तो असन्दिग्ध रूपसे किसी जैन मन्दिरका मानस्तम्भ था। क्या यह कल्पना करना संगत होगा कि शान्तिनाथ मन्दिर ( जिसमें शान्ति. कन्थ और अरनाथकी विशाल मूर्तियां विराजमान थीं) उस कालमें इतना विशाल बना हुआ था कि उक्त मानस्तम्भ उस मन्दिरके सामने पड़ता था। यह कल्पना कुछ तर्कसंगत भी प्रतीत होती है क्योंकि अब तक जितनी जैन मूर्तियां यहाँ उपलब्ध हुई हैं, वे सभी वर्तमान जैन मन्दिर और पाषाण-स्तम्भके मध्यवर्ती क्षेत्रमें ही मिलती हैं । इसमें भी सन्देह नहीं है कि उपलब्ध जैन तीर्थंकर मूर्तियां और यह पाषाणस्तम्भ समकालीन हैं। यह भी सम्भव है कि यह मानस्तम्भ निकटवर्ती किसी अन्य जैन मन्दिरका रहा हो। सिहौनिया और उसके निकटवर्ती स्थानोंपर जो पुरातत्त्व-सामग्री प्राप्त हुई है, वह कछवाहा अथवा परिहार नरेशोंके शासनकालकी है। ग्वालियर-दुर्ग में बने हुए सास-बहूके मन्दिरमें उत्कीर्ण एक लेखसे ज्ञात होता है कि कछवाहानरेश कीर्तिराजने सिहौनियामें शिवका एक विशाल मन्दिर बनवाया था। कीर्तिराजने ग्वालियर-दुर्गपर लगभग १००० ई. में राज्य किया था। लेखमें सिहोनियाका नाम 'सिंहपाणीय' दिया है। यह शिवमन्दिर कौन-सा था, इस सम्बन्धमें कुछ विद्वानोंको मान्यता है कि काकनमठ ही वह शिव मन्दिर है । इन विद्वानोंको सम्मतिमें काकनमठका निर्माण रानी काकनवतीने कराया था और यह कोतिराजको पत्नी थी। कुछ अन्य विद्वान् इस मठको मूलतः जैन मन्दिर मानते हैं। इस मन्दिरमें इस समय कोई मूर्ति नहीं है। इसका सभामण्डप स्तम्भोंपर आधारित है। मण्डपके ऊपर शिखर है। पहले यह भूतलसे १०० फूट ऊँचा था। अब तो मन्दिरकी ऊंची चौकी जमीनके अन्दर दबी हुई है। इस मन्दिरके स्तम्भों और बाह्य भागपर नाना दृश्य उत्कीर्ण थे जो अब नष्ट या अस्पष्ट हो गये हैं। इस मठके चारों ओर बिखरे हुए भग्नावशेषोंसे ज्ञात होता है कि इसके चारों ओर अनेक मन्दिर बने हुए थे किन्तु अब तो उनके अवशेष ही पड़े मिलते हैं। काकनमठ गांवसे दो मील उत्तर-पश्चिममें है।
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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