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________________ मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ उमादेवी, सुबयदेवी, वर्षादेवी और सवाईदेवी। इन देवियोंके नाम किसी दिगम्बर अथवा श्वेताम्बर ग्रन्थमें नहीं मिलते। हो सकता है, ये देवियां न होकर मूर्ति प्रतिष्ठापिका गृहस्थ स्त्रियाँ हों। यक्ष-यक्षियोंको स्वतन्त्र मूर्तियां तो मिलती ही हैं, इनके स्वतन्त्र मन्दिर भी रहे हैं। ऐसा लगता है, इन यक्ष-यक्षियोंकी मान्यता तीर्थंकर-मूर्तियोंके निर्माण-कालके कुछ अनन्तर ही प्रारम्भ हो गयी थी। कुषाण-कालसे पूर्वकी तीर्थंकर मूर्तियोंकी संख्या उँगलियों पर गिनने लायक है। कुषाण-कालमें मथुरामें मूर्ति-कलाका विकास हुआ। इस कालमें निर्मित मूर्तियोंकी संख्या सैकड़ों है। इसी कालमें यक्ष और यक्षियोंकी मूर्तियाँ भी निर्मित होने लगी थीं। इस कालमें तीर्थंकर मूर्तिके दोनों पावों में इनका अंकन होने लगा था तथा साथ ही इनका स्वतन्त्र निर्माण भी होने लगा था। इस सम्बन्धमें हम किसी क्रमिक विकासकी कल्पना करना चाहें तो यह एक कठिन कल्पना ही कहलायेगी। मथुरा संग्रहालयमें कंकाली टीलेसे प्राप्त प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेवकी यक्षी चक्रेश्वरीकी एक मूर्ति कुषाण-कालकी सुरक्षित है। यह दसभुजी और ढाई फुट ऊंची है। यह गरुड़ासना है। इसके ऊपर पद्मासन जिनप्रतिमा है। इस मूर्तिके अतिरिक्त मथुराके कंकाली टीलेसे सरस्वती, नैगमेश आदि देव-देवीकी मूर्तियां उपलब्ध हुई हैं। ___मध्यप्रदेश में शासन-देवियोंके स्वतन्त्र मन्दिर कई स्थानोंपर पाये गये हैं। जैसे-कटनीके समीप बिलहरी ग्राममें 'लक्ष्मणसागर' के तटपर चक्रेश्वरीका एक प्राचीन मन्दिर बना हुआ है। चक्रेश्वरी गरुडपर विराजमान है और उसके मस्तकपर आद्य तीर्थंकर ऋषभदेव विराजमान हैं। यह मूर्ति आजकल खैरमाईके नामसे पूजी जा रही है। - इसी प्रकार सतनाके निकट पतियानदाईका एक प्राचीन मन्दिर है। एक शिलाफलकमें चौबीस यक्षियोंकी एक मूर्ति है। मध्यमें अम्बिका विराजमान है तथा दोनों पाॉमें तीर्थंकर और यक्षी मूर्तियां बनी हुई हैं । यह प्रतिमा आजकल प्रयाग संग्रहालयमें सुरक्षित है तथा मन्दिर भग्न दशामें खड़ा है। लगभग ६ फुट ऊंचे और साढ़े तीन फुट चौड़े शिलाफलकपर लगभग ४१ इंचकी चतुर्भुजी अम्बिका अंकित है। इसके चारों हाथ खण्डित हैं। कण्ठमें हार मुक्तामाला, बाँहोंमें भुजबन्द, हाथोंमें नागावलि सुशोभित है। केश-विन्यास त्रिवल्यात्मक है। मुखपर ओज, लावण्य और भाव-विमुग्धताको सुललित छवि है। कटि भागमें रत्नमेखला कई लड़ोंकी है। चरणमें नूपुर और तोड़ोंका अंकन है। प्रतिमाके दायीं ओर एक बालक सिंहपर आरूढ़ है, बायीं ओर एक बालक खड़ा है। नीचेके भागमें एक स्त्री और पुरुष अंजलिबद्ध खड़े हैं। देवीके मस्तकपर भगवान् नेमिनाथको पद्मासन प्रतिमाका अंकन है। शंखका चिह्न स्पष्ट दिखाई पड़ता है। इस परिकरमें कुल १३ जिन-मूर्तियां तथा अम्बिकाके अतिरिक्त २३ देवी-मूर्तियां बनी हुई हैं। इस शिलाफलकके अधोभागमें एक पंक्तिका लेख उत्कीर्ण है। कलाकी दृष्टिसे अम्बिकाकी ऐसी सर्वांग सम्पूर्ण मूर्ति तथा २४ यक्षियोंकी ऐसी भव्य मूर्तियां अन्यत्र देखने में नहीं आयीं। सम्भवतः यह मूर्तिफलक १०-११वीं शताब्दीका है। इसे चन्देल कलाकी प्रतिनिधि रचना माना जा सकता है। प्रयाग संग्रहालयमें भुभारा, भरहुत, खजुराहो, नागौद और जसो आदिसे लायी हुई जैन मूर्तियां रखी हैं । इन मूर्तियोंमें शासन-देवियोंकी ६ मूर्तियां ऐसी हैं, जिन्हें अद्भुत कहा जा सकता है। यक्षोंकी कोई स्वतन्त्र मूर्ति यहां नहीं मिली है। देवियोंकी मूर्तियोंमें एक मूर्ति (क्रमांक २३५) साढ़े तीन फुटी शिलाफलकपर है। मूर्ति आद्य तीर्थंकर ऋषभदेवकी है। इसके दोनों ओर डेढ़ फुट अवगाहनावाली दो खडगासन जिन-मूर्तियां हैं। नीचेके भागमें एक ओर गृहस्थ दम्पती हाथ जोड़े
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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