SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 43
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८ भारतके दिगम्बर जैन तीर्य घुटने टेककर बन्दना कर रहा है। उसके बगलमें सुखासनमें एक मूर्ति बनी हुई है। कुछ विद्वानोंकी सम्मतिमें यह गोमेद यक्षकी मूर्ति हो सकती है। कुछ लोगोंका मत है कि यह कुबेर-मूर्ति है। इसके बायीं ओर आम्रलुम्ब लिये और बायें हाथसे एक बालकको कमरपर थामे अम्बिकाकी मूर्ति है। ऋषभदेवकी अधिष्ठात्री देवी चक्रेश्वरी है, किन्तु इस शिलाफलकमें ऋषभदेवके साथ अम्बिका दी हुई है। ____मूर्ति क्रमांक ६१० और भी अद्भुत है। यह खड्गासन प्रतिमा है। इसका आकार है ३८ इंच ४ ११॥ इंच । प्रतिमाके ऊपर सप्तफण है। लांछन शंख स्पष्ट दिखाई पड़ रहा है। प्रतिमाके मस्तकके ऊपर आम्रवृक्षकी शाखाएँ हैं। मस्तकके बायें भागमें एक देवी-मूर्ति है। उसके बाँयें घटनेपर बालक बैठा हआ है। तीर्थकरके मस्तकके ऊपरी भागमें शासन-देवताकी मूर्ति प्रायः मिलती नहीं। शिल्पपरम्परा यही है कि शासन-देवताके मस्तकके ऊपरी भागमें जिन-प्रतिमा अंकित की जाये । ऐसी मूर्तियाँ सैकड़ोंकी संख्यामें मिलती हैं। दूसरी बात यह है कि सप्तफणावलियुक्त प्रतिमा पार्श्वनाथकी मानी जाती है, किन्तु इसके नीचे लांछन शंखका है जो कि नेमिनाथका चिन्ह है। आम्रशाखाएँ और गोदका बालक अम्बिकाका प्रतीक है। फिर पार्श्वनाथके साथ अम्बिकाकी क्या संगति हो सकती है। किन्तु देवगढ़ आदिमें पार्श्वनाथके साथ अम्बिकाकी कई मूर्तियाँ मिलती हैं। यह खजुराहोसे लायी गयी थी। यह मूर्ति लगभग १०वीं शताब्दीकी है। _ मूर्ति क्रमांक ६११ लगभग ३८ इंच x ३० इंच आकारकी है। यह खण्डित है। मूर्तिके सिरपर केशगुच्छक हैं । स्कन्धपर पड़ी हुई केशावलीसे यह ऋषभदेवकी मूर्ति निश्चित होती है। इसमें भी अधिष्ठातृ देवी अम्बिका है। दक्षिण भागमें खण्डित घुटनोंवाली दो खड्गासन जिन-मूर्तियाँ हैं। इनके ऊपर भी तीन खड्गासन मूर्तियाँ हैं। सम्भवतः यह चतुर्विंशति शिलापट्ट रहा होगा। यह मूर्ति ९-१०वीं शताब्दीकी होगी। एक और मूर्ति इससे भी अद्भुत है। इसमें तीन तीर्थंकर-मूर्तियाँ हैं। दोनों ओरकी मूर्तियाँ क्रमशः पार्श्वनाथ और सुपार्श्वनाथकी हैं, जिनके सिरपर क्रमशः सात और पाँच फणावलियाँ हैं। मध्यमें ऋषभदेवकी मूर्ति है। इन मूर्तियोंके मस्तकपर शिखराकृतियाँ बनी हुई हैं। तीनोंके उभय पाश्वमें दो-दो खड्गासन-प्रतिमाएँ अंकित हैं और मध्यवर्ती भागमें दायीं ओर अम्बिका और बायीं ओर चक्रेश्वरी अपने आयुधों सहित बैठी हुई हैं। शिखरोंके अग्रभागपर भी एक-एक पद्मासन जिन-मूर्ति है। आश्चर्यकी बात यह है कि इनमें देवियोंके अगल-बगलमें जिन-प्रतिमाएं हैं जो प्रायः अन्यत्र देखनेमें नहीं आतीं। पतियानदाईका चतुर्विंशति यक्षी पट भी इसी प्रकारका है। किन्तु ऐसी मूर्तियाँ विरल हैं। ... - एक अन्य मूर्ति भी विलक्षण है। एक वृक्षको दो शाखाएं फैली हुई हैं। उनके सिरेपर दो देवियाँ हैं जो पुष्पमाला धारण किये हुए हैं। वृक्षकी छायामें दायीं ओर पुरुष और बायीं ओर स्त्री बैठी हुई है। दोनोंके बायें घुटनेपर एक-एक बालक बैठा हुआ है। श्री दायें हाथमें सम्भवतः आम्रफल लिये है। बालक भी फल लिये है। पुरुषके सिरपर मुकुट और गलेमें रत्नाभरण हैं। वृक्षकी पत्रावलियोंके बीचमें जिन-प्रतिमा दृष्टिगोचर होती हैं। निम्न भागमें उपासकोंकी सात मूर्तियाँ बनी हुई हैं जो आमने-सामने मुख किये हुए हैं। अवश्य ही यह गोमेद यक्ष और अम्बिका यक्षीकी मूर्ति है। ऊपर भगवान् नेमिनाथकी मूर्ति है। मनोवेगा देवीकी एक मूर्ति बदनावरसे प्राप्त हुई है। देवी चतुर्भुजी है। वह अश्वपर आरूढ़ है। उसके दोनों दायें हाथ खण्डित हैं। ऊपरके बायें हाथमें ढाल है तथा नीचेके बायें हाथसे रास सँभाले हुए है। उसका एक पैर रकाबमें है और दूसरा पैर जंघाके ऊपर रखा है। देवीके
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy