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________________ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ की मृत्यु सन् ११४३ में परमारवंशी यशोधवलके हाथों हुई थी। इतिहासकारोंका यह कथन सत्य ही है कि खजुराहोके पश्चात् एक पावागिरि ही ऐसा स्थान है जहाँ इतने प्राचीन मन्दिर अब तक खड़े हैं। यहाँको मूर्तियोंके पादपीठपर वि. सं. १२१८, १२५२, १२६३, १३३२ के लेख मिलते हैं । इन लेखोंसे ज्ञात होता है कि ये मन्दिर और मूर्तियाँ १२वीं शताब्दी और उसके परवर्ती कालमें निर्मित हुए थे। मनहरदेव, सोनागिरि, बजरंगढ़, गन्धर्वपुरी और सिद्धवरकूटमें १५-१२वीं शताब्दीकी जिन-मूर्तियां मिलती हैं। ___ उत्तरवर्ती कालकी जिन-मूर्तियाँ प्रायः सभी तीर्थोपर प्राप्त होती हैं। 'हमने अबतक मध्यप्रदेशमें प्राप्त पाषाणोत्कीर्ण तीर्थंकर प्रतिमाओं और मन्दिरोंका ऐतिहासिक क्रमसे काल-निर्धारण करनेका प्रयत्न किया है। उपर्युक्त विश्लेषणसे एक तथ्य और भी उजागर हो जाता है कि मध्यप्रदेशको विन्ध्यभूमिकी जैन कलाकृतियोंपर मुख्यतः चन्देल कलाकी छाप है, महाकोशल विभागकी जैनाश्रित कला कलचुरि कलासे प्रभावित रही है और मध्यभारत सम्भागपर परमार कलाका प्रभाव अंकित है। तीनों ही गोलियोंकी अपनी-अपनी विशेषताएँ रही हैं, किन्तु किन्हीं कलाकृतियोंपर इन शैलियोंका साँझा प्रभाव भी दृष्टिगोचर होता है। इन शैलियोंकी अपेक्षा मन्दिरों पर अधिक आसानीसे पहचाना जा सकता है। धातु मूर्तियाँ प्रायः ५-६वीं शताब्दीके बाद निर्मित होनी प्रारम्भ हुई, इससे पूर्वकी कोई धातु-प्रतिमा उपलब्ध नहीं होती, अब तक ऐसी धारणा चली आ रही थी। इस धारणाके अनुसार चौसा ( जिला शाहाबाद, बिहार ) से प्राप्त धातु मतियां सर्वाधिक प्राचीन मानी जाती हैं। वे आजकल पटना संग्रहालयमें सुरक्षित हैं। यद्यपि इन मूर्तियोंमें से किसीके भी पाद-पीठपर लेख नहीं है, किन्तु इनका निर्माण-काल ५-६वीं शताब्दी माना जाता है। . भारत-कला-भवन वाराणसीमें एक लघु जैन धातु-मूर्ति रखी हुई है। मूलत: यह सोनागिरिके भट्टारकको है । इसका निर्माण-काल गुप्तकाल अनुमानित किया जाता है। मध्यप्रदेशमें धातु-प्रतिमाएं उपलब्ध तो होती हैं, किन्तु वे विशेष प्राचीन नहीं हैं। शासन-देवताओंको मूर्तियां __ मध्यप्रदेशमें शासन-देवताओंकी मूर्तियां बहुलतासे प्राप्त होती हैं। शासन देवताओंकी मूर्तियाँ तीर्थंकर-मूर्तियोंके साथ भी मिलती हैं और स्वतन्त्र भी मिलती हैं। प्रत्येक तीर्थंकरके अनुषंगी एक यक्ष और एक यक्षी माने गये हैं। तीर्थकर-मूर्तिके दायें-बायें प्रायः इन यक्ष-यक्षियोंका अंकन प्राप्त होता है । कुछ प्राचीन प्रतिमाएँ ऐसी भी मिलती हैं, जिनमें इनका अंकन नहीं मिलता, किन्तु तीर्थंकरके परिकरमें इनका अंकन आवश्यक माना गया है। ऐसी सपरिकर तीर्थंकर प्रतिमाएँ प्रायः सभी तीर्थ क्षेत्रों और प्राचीन स्थानोंपर मिलती हैं। इन शासन देवताओंके अतिरिक्त भी कुछ देव-देवियोंका अंकन जैन प्रतिमाओं पर मिलता है तथा जैन प्रतिष्ठा ग्रन्थोंमें इन देव-देवियोंका उल्लेख भी प्राप्त होता है। इन देव-देवियोंमें सोलह विद्या देवता, नवग्रह, दस दिक्पाल, अष्ट मातका सम्मिलित हैं। जैन संग्रहालय उज्जैनमें स्थित एक ताम्र-यन्त्रपर ६४ जैन शासन-देवियोंके नाम उत्कीर्ण हैं। जो नाम उसमें दिये गये हैं, वे किस आधारसे दिये गये हैं, यह ज्ञात नहीं हो सका। इसी संग्रहालयमें मूर्ति क्रमांक १५६ में चार देवियां बालक लिये हुए अंकित हैं । उनके नीचे उनके नाम इस प्रकार दिये गये हैं-देवीदासी, रसादगुणदेवी, विभारवती और त्रिसला। मूर्ति क्रमांक १४१ में ६ शासन-देवियाँ अंकित हैं। उनके नीचे उनके नाम हैं-वारिदेवी, सिमिदेवी,
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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