SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 373
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३४० भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ ज्ञान होनेपर अन्तिम श्रुतकेवली भद्रबाहु अपने विशाल संघके साथ दक्षिण भारतकी ओर चले गये थे। उनके साथ मौर्य सम्राट् चन्द्रगुप्त भी मुनि-दीक्षा लेकर चले गये। जो मुनि यहां रह गये, वे परिस्थितियोंसे बाध्य होकर शिथिलाचारी बन गये और वस्त्र पहनने लगे। धीरे-धीरे इसका अभ्यास होनेपर दुष्काल बीतनेपर भी वे शिथिलाचारका परित्याग नहीं कर सके और अपने शिथिलाचारको शास्त्र सम्मत सिद्ध करनेके लिए उन्हें श्वेताम्बर सम्प्रदाय नामसे एक पथक सम्प्रदाय और नये शास्त्रोंका सृजन करना पड़ा। मुनि अभयघोष अन्तकृत् केवली थे, वे यहाँसे मुक्त हुए । अतः यह निर्वाण-क्षेत्र भी है। यहां जयसिंहपुरा दिगम्बर जैन मन्दिरके पृष्ठ कक्षमें जैन संग्रहालय है, जिसमें लगभग ५०० प्राचीन कलावशेष और मूर्तियाँ सुरक्षित हैं। नमकमण्डीमें दिगम्बर जैन धर्मशाला है। उज्जैन मध्यप्रदेशका प्रमुख व्यवसाय केन्द्र है और जिला मुख्यालयका केन्द्र है। गन्धर्वपुरी उज्जैनसे देवास और सोनकच्छ होते हुए गन्धर्वपुरी ७८ कि. मी, है। पक्की सड़क है। सोनकच्छ देवास-भोपाल मार्ग पर है। वहाँसे गन्धर्वपुरी ९ कि. मी. है। बस और टैम्पो जाते हैं। नगरमें एक जैन मन्दिर है। यहां एक सरकारी संग्रहालय है। उसमें अनेक जैन मूर्तियां हैं। नगरके भीतर और बाहर जैन पुरातत्त्व बिखरा पड़ा है। कई मकानोंमें जैन मूर्तियां लगी हुई हैं। यहां कोई जैन धर्मशाला नहीं है। जैनोंके कुछ घर हैं। यहां पोस्ट-आफिस है तथा इसका जिला देवास है। इन्दौर । गन्धर्वपुरीसे सोनकच्छ लौटकर वहांसे इन्दौर जाना चाहिए। यहां जवरीबागमें सर सेठ हुकमचन्दजोकी नशिया है। वहीं विश्रान्ति-भवन ( जैन धर्मशाला ) है। वहीं जिनालय, जैन महाविद्यालय एवं छात्रावास है। यह स्थान मध्यप्रदेशका प्रमुख व्यापारिक केन्द्र है तथा जैनोंका गढ़ है। यहाँ अनेक जैन संस्थाएं हैं । यहाँके प्रमुख जिनालयोंमें कांच-मन्दिर, तुकोगंज, मल्हारगंज और दीतवारियाके मन्दिर हैं। इन्दौरसे चाहें तो मोरटक्का होते हुए सिद्धवरकूट, फिर पावागिरि, बजवानी, तालनपुर होते हुए बनैडियाको जा सकते हैं। अथवा पहले बड़वानी, तालनपुर, पावागिरि, सिद्धवरकूट और बनैडियाकी यात्रा की जा सकती है। चूलगिरि ___ इन्दौरसे सड़क मार्गसे बड़वानी १५० कि. मी. है । बड़वानीसे चूलगिरि बावनगजाजी क्षेत्र ६ कि. मी. है। पक्की सड़क है। बस धर्मशाला तक जाती है। चूलगिरि सिद्ध-क्षेत्र है। यहांसे इन्द्रजीत और कुम्भकर्ण मुक्त हुए हैं। पर्वतपर भारतकी सबसे विशाल प्रतिमा भगवान् आदिनाथको ८४ फुट ऊंची विराजमान है । पहाड़पर कुल ११ मन्दिर है तथा तलहटीमें मन्दिरोंकी कुल संख्या १९ है । पहाड़की चोटीपर चूलगिरि मन्दिर है। यहीं निर्वाण-स्थान माना जाता है। यहाँ ४ धर्मशालाएं हैं, जिनमें नल, कुआं, बिजलीकी व्यवस्था है। बड़वानीमें विशाल नेमिनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर, श्री हरसुखराय दि. जैन छात्रावास और जैन धर्मशाला है। क्षेत्रका पता है-मन्त्री, श्री दिगम्बर जैन सिद्ध क्षेत्र, चूलगिरि, जिला खरगोन म. प्र.।
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy