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________________ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ पुरातत्त्व इस क्षेत्रपर पुरातत्त्व सम्बन्धी सामग्रीका सर्वथा अभाव नहीं है। यहां कई प्राचीन मूर्तियां देखनेमें आयी हैं। इनके ऊपर सफेदी-चूना पुता हुआ होनेके कारण इनका समय निर्धारण तो नहीं किया जा सकता किन्तु ओंकारेश्वर पहाड़ीपर जो भग्नावशेष पड़े हुए हैं, उन्हें ध्यानपूर्वक देखनेपर ज्ञात होता हैं कि यह सम्पूर्ण अवशेष जिन मन्दिर मूर्तियोंके हैं वे अनुमानतः ११वीं-१२वीं शताब्दीके लगते हैं। क्षेत्रपर स्थित ये मूर्तियां उन्हीं अवशेषोंके भाग हैं। अतः कोई आश्चर्य नहीं कि इन मूर्तियोंका काल भी वही हो। पुरातत्त्वावशेषोंको उक्त श्रृंखला कावेरीको पार करके क्षेत्रके पृष्ठ भागमें दूर तक चली गयी है। कुछ भग्न मन्दिर और मूर्तियां क्षेत्रसे लगभग ३ फलींग दूर कावेरीकी तटवर्ती पहाड़ीके ऊपर एक स्थानपर पड़े हुए हैं। यहां एक जीर्ण मन्दिर खड़ा हुआ है। एक छोटा मन्दिर अर्धभग्न हो चुका है। मन्दिरका एक गर्भगृह भी अपनी अन्तिम सांसें गिन रहा है। इन मन्दिरोंके स्तम्भ तथा अन्य सामग्री भी यहां-वहां बिखरी हुई पड़ी हैं। इस कलावशेषमें एक बहुमूल्य मूर्ति सुरक्षित खड़ी हुई है। यह मूर्ति ५ फुट ऊँची और २ फुट ९ इंच चौड़ी शिलामें बनी है। मूर्ति किसी राजपुरुषकी प्रतीत होती है। उसके सिरपर मुकुट, गलेमें रत्नहार, भुजाओंमें केयूर, कटिपर रत्नमेखला आदि रत्नाभरण हैं । उसके शीर्षपर तीर्थंकर प्रतिमा पद्मासन मुद्रामें है। दोनों पावों में चमरवाहक हैं। एक ओर अश्वपर एक पुरुष आरूढ़ है। उसके साथ सेवक-सेविका भी हैं। कुछ लोग इसे चक्रवर्तीकी मूर्ति बताते हैं। किन्तु इसमें चक्रवर्तीका परिचय देनेवाले नवनिधि या चौदह रत्न अथवा चक्र कुछ भी नहीं हैं। केवल अलंकारोंके कारण इसे चक्रवर्तीको मूर्ति स्वीकार करना तर्कसंगत नहीं लगता। इसमें कोई सन्देह नहीं है कि यह मूर्ति अद्भुत है और परमार-शिल्पकी प्रतिनिधि रचना है। धर्मशालाएं क्षेत्रपर १४ धर्मशालाएं हैं। इनमें बिजली और नलकी व्यवस्था है। यात्रियोंको ठहरनेके लिए ६२ कमरे हैं । यहाँ मुनि और त्यागियोंके लिए पृथक् आश्रम हैं। मेला क्षेत्रपर वार्षिक मेला फागुन सुदी १३ से १५ तक होता है। व्यवस्था क्षेत्रको व्यवस्था एक प्रबन्धकारिणी समिति द्वारा होती है, जिसका चुनाव मेलेके अवसरपर होता है। मार्ग इन्दौरसे मान्धाता (ओंकारेश्वर )७७.कि. मी. है। खण्डवासे भी इतना ही है। ओंकारेश्वर रोड ( अजमेर-खण्डवाके मध्य रेलवे स्टेशन ) से मान्धाता ११ कि. मी. है। वहाँसे नाव द्वारा सिद्धवरकूट पहुंचते हैं। बड़वाह ( पश्चिमी रेलवेके इन्दौर खण्डवा स्टेशनोंके मध्य एक स्टेशन ) से फेअरवेदर रोड द्वारा सिद्धवरकूट १९ कि. मी. है। इस मार्गसे नर्मदा नदी नहीं
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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