SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 356
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ ३२३ यह प्रतिमा लिपि और भाषाकी दृष्टिसे १८वों-१९वीं शताब्दीकी प्रतीत होती है। इसके अतिरिक्त चार श्वेत वर्णकी तीर्थंकर प्रतिमाएं इस वेदोपर विराजमान हैं। ये सभी पद्मासन हैं। इस मन्दिरके प्रवेशद्वारके ललाट बिम्बपर अर्हन्त भगवान्की पद्मासन मूर्ति उत्कीर्ण है। दूसरे द्वारपर भी एक पद्मासन अहंन्त मूर्ति बनी हुई है। यह एक शिलाफलकपर उत्कीर्ण है। ऊपरके भागमें यक्ष-यक्षी और पुष्पमाल लिये हुए देव-देवियां बने हुए हैं। ___ मन्दिर नं. ६-ऊपरवाले मन्दिरके बगलमें ही यह मन्दिर बना हुआ है। इसमें संवत् १९५१ में प्रतिष्ठित भगवान् अजितनाथकी श्वेत पाषाणकी पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। इसकी अवगाहना १ फुट ६ इंच है। इसी कालकी चन्द्रप्रभ स्वामीकी दो पाषाण प्रतिमाएं इसी वेदीपर विराजमान हैं। ये ९ इंच ऊंची हैं। मन्दिर नं. ७–पूर्ववाले मन्दिरके पृष्ठ भागमें एक वेदीमें कृष्ण पाषाणकी भगवान् महावीरकी पद्मासन प्रतिमा है। इसका माप २ फुट ७ इंच है। पादपीठपर कोई लेख नहीं है। प्रतिमा शास्त्रीय दृष्टिसे सौम्य और समचतुरस्र नहीं है । सम्भवतः यह संवत् १९५१ में ही प्रतिष्ठित हुई है। इसके दोनों पाश्वोंमें आदिनाथ और चन्द्रप्रभ भगवान्की कृष्ण वर्णकी पद्मासन प्रतिमाएं हैं। इस मन्दिरके बाहर बरामदेमें दीवालपर यक्ष-यक्षी उत्कीर्ण हैं। यक्ष-दम्पति ललितासनसे बैठा हुआ है। यक्षके दोनों हाथोंमें चक्र है। यक्षी चतुर्भुजी है। दायें ऊपरी हाथमें कुठार है तथा नीचेका दायां हाथ वरद मुद्रामें है। ऊपरका बायां हाथ खण्डित है तथा नीचेके हाथमें कलश है। इस यक्ष-दम्पतिके ऊपर गहरी सफेदी पोती हुई है। यक्ष-यक्षीके उपकरण स्पष्ट नहीं हैं, केवल अनुमान द्वारा लिखे गये हैं। मन्दिर नं. ८-यह गुमटी या मन्दरिया है। इसमें देशी पाषाणकी भगवान् आदिनाथकी १ फुट २ इंच ऊंची प्रतिमा खड्गासन मुद्रामें विराजमान है। प्रतिमापर कोई लेख और लांछन नहीं है। इस मन्दिरके चबूतरेपर किसी मन्दिरके तोरणका भाग रखा हुआ है। यह ३ फुट ६ इंच ऊंचा और ४ फुट ४ इंच चौड़ा है। शीर्षपर अहंन्त प्रतिमा पद्मासन मुद्रामें विराजमान है। उनके दोनों पाश्वमें माला लिये हुए देव खड़े हैं। उनके अधोभागमें चमरवाहक खड़े हैं। नीचे देवियोंकी पाँत है। एक कोष्ठक मध्यमें खाली है। उसके ऊपर हाथ जोड़े भक्त खड़े हैं। कोष्ठकके दोनों ओर गज खड़े हैं। कोष्ठकके नीचे खड्गासन तीर्थंकर प्रतिमा है। उसकी एक बांह खण्डित है। इस फलकके दोनों सिरोंपर स्तम्भ बने हुए हैं, जिनमें श्रृंखला युक्त घण्टे लटक रहे हैं । इस फलकको भी चूना-सफेदीसे पोत दिया गया है। अतः इन मूर्तियोंके निर्माण कालका कोई अनुमान नहीं लगाया जा सकता। मन्दिर . ९-इसमें कृष्ण पाषाणकी भगवान् पाश्वनाथको प्रतिमा विराजमान है। यह २ फुट ११ इंच उत्तुंग है एवं पद्मासन मुद्रामें है। इसकी प्रतिष्ठा संवत् १९५१ में हुई। धातुकी खड्गासन मुद्रामें एक सिद्ध प्रतिमा भी वेदोपर विराजमान है। मन्दिर नं. १०-इसमें धातुकी शान्तिनाथ प्रतिमा मूलनायक है। इसके अतिरिक्त १० कामकुमारों और २ चक्रियोंकी भी धातु-प्रतिमाएं विराजमान हैं। मूर्तियोंपर उनके नाम भी अंकित हैं तथा दीवारपर भी दर्शनार्थियोंके अवलोकनार्थ नाम लिख दिये हैं।
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy