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________________ ३२२ भारतके विगम्बर जैन तीर्य मन्दिर नं. १-यहां मूलनायक भगवान् नेमिनाथकी प्रतिमा श्वेत पाषाणकी १ फुट ७ इंच उन्नत है और पद्मासन मुद्रामें आसीन है । प्रतिष्ठा संवत् १९५१ में हुई। यहाँ वेदीपर धातुको दो प्रतिमाएं भी हैं-महावीर स्वामी और चन्द्रप्रभ स्वामीकी। प्रत्येककी अवगाहना १ फुट ३ इंच है। मन्दिर नं. २-इसमें भगवान् शान्तिनाथकी ३ फुट २ इंच उत्तुंग श्वेतवर्ण प्रतिमा पद्मासनमें विराजमान है। प्रतिष्ठा संवत् २४६३ ( वीर सं.) है। इसके पार्श्वमें कृष्ण वर्ण पाश्वनाथ और श्वेत वर्ण महावीरकी पद्मासन प्रतिमाएं हैं। ४ धातु-प्रतिमाएँ भी हैं। .. इस मन्दिरमें बायीं ओर बरामदेमें दो दीवार-वेदियां हैं। ___ छतरी-इस मन्दिरके निकट एक छतरी है। इसमें १० कामदेव तथा २ चक्रवर्ती मुनियोंके चरण-चिह्न बने हुए हैं तथा १ चरण-चिह्न अन्य मुनिका है। - मन्दिर नं. ३–इस अवसर्पिणी कालके प्रथम सिद्धिप्राप्त मुनिराज बाहुबली स्वामीकी य प्रातमा कायोत्सर्गासनसे ध्यानमुद्रामें खड़ी हुई है। इसकी प्रतिष्ठा वीर संवत् २४९१ में हुई। - मन्दिर नं. ४-बड़े मन्दिरके बाहर बरामदेमें यह मन्दिर है। इसमें भगवान् महावीरको एक खड्गासन मूर्ति विराजमान है, जिसकी प्रतिष्ठा संवत् १९५१ में भट्टारक महेन्द्रकीति द्वारा हुई । यह ४ फुट ऊंची है। यह मुंगिया वर्णकी है। इस वेदीपर २ पाषाण प्रतिमाएं और हैं । मन्दिर . ५-यह यहाँका बड़ा मन्दिर कहलाता है। इसमें मूलनायक प्रतिमा भगवान् सम्भवनाथकी है। यह ३ फट १ इंच अवगाहनाकी है। पद्मासन मद्रामें ध्यानावस्थित है। इसका वर्ण श्वेत है। यह वि. संवत् १९५१ में प्रतिष्ठित हुई है। इसके दोनों पार्यो में चन्द्रप्रभ और सम्भवनाथ तीर्थंकरोंकी श्वेतवर्णकी प्रतिमाएं पद्मासन मुद्रामें अवस्थित हैं। इनके अतिरिक्त समवसरणमें २७ धातुकी और ३ पाषाणकी प्रतिमाएं हैं। बायीं ओर वेदीमें वि. सं. १९५१ की प्रतिष्ठित चन्द्रप्रभकी श्वेत पाषाणकी पद्मासन मूर्ति विराजमान है। अवगाहना १ फुट ८ इंच है। इनके अतिरिक्त सुपाश्र्वनाथ, चन्द्रप्रभ, सुपाश्वनाथकी कृष्ण वर्ण पद्मासन और बाहुबलीकी श्वेत वर्ण खड्गासन प्रतिमाएं विराजमान हैं । इसी बरामदेमें क्षेत्रपाल एक आलेमें विराजमान हैं। दायीं ओर गन्धकुटीमें पार्श्वनाथ भगवान्को एक धातु प्रतिमा है, जिसकी अवगाहना १ फुट २ इंच है। यह भी वि. संवत् १९५१ में प्रतिष्ठित हुई है। ___ इसके आगे बढ़नेपर एक वेदीमें इसी कालकी श्वेत पाषाणकी सम्भवनाथ भगवान्की प्रतिमा है। यह १ फुट १० इंच ऊंची है। इसके अतिरिक्त इस वेदीपर ५ पाषाण प्रतिमाएँ विराजमान हैं, जिनमें ३ कृष्ण वर्णकी ओर १ श्वेत वर्णकी है। इनमें पार्श्वनाथकी १ प्रतिमा वि. संवत् १५४८ की है। - ऊपर छतपर भी एक वेदी है। इसमें भगवान् आदिनाथकी कृष्ण पाषाणकी पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। इसकी चरण-चौकीपर नागरी लिपिमें निम्नलिखित लेख उत्कीर्ण है। इसकी भाषा अत्यन्त अशुद्ध है ___ "संवत्.......११ ऐकन ऐकनपे वैसाष मासे शुक्ल पक्षे तिथौ ९ गुरुवासरे मूलसंघे गणे बलात्कार श्री कुन्दकुन्दचारचारीय आमनाय तत् उपदेसात् श्री हेमचन्द्र असारीय नग्र सीदपुर.... हूबड़ ग्याति लगुसा साषा भवेरज गोत्र साहाजि दयचन्दजी भारीया सुरीबाई बोजा दलीच वषप नीटाकमीनी।"
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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