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________________ ३१८ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ सनत्कुमार तीसरे स्वर्गमें देव बने, ऐसा माना गया है। दूसरा मत उत्तरपुराण और निर्वाणकाण्डका रहा–जिसके अनुसार दो चक्री सिद्धवरकूटमें रेवा-तटसे मुक्त हुए, ऐसा स्वीकार किया गया है। दिगम्बर परम्पराके समान श्वेताम्बर परम्परामें भी इन दस कामकुमारोंके सम्बन्धमें कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता। कुल कामदेव २४ हुए हैं, जिनके नाम इस प्रकार मिलते हैंबाहुबली, अमिततेज, श्रीधर, दशभद्र, प्रसेनजित्, चन्द्रवर्ण, अग्निमुक्ति, सनत्कुमार चक्रवर्ती, वत्सराज, कनकप्रभ, मेघवणं, शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ, अरनाथ, विजयराज, श्रीचन्द्र, राजा नल, हनुमान्, बलराज, वसुदेव, प्रद्युम्न, नागकुमार, श्रीपाल और जीवन्धर। ___ इनमें से कौन-से १० कामकुमार यहाँसे मुक्त हुए हैं, यह उल्लेख कहीं नहीं मिलता। कुछ लोगोंने यहांसे निर्वाण-प्राप्त कामकुमारोंके नाम इस प्रकार दिये हैं-सनत्कुमार, वत्सराज, कनकप्रभ, मेघप्रभ, विजयराज, श्रीचन्द, नलराज, बलराज, वसुदेव और जीवन्धर। ये नाम किस शास्त्रके आधारसे लिये गये हैं, यह ज्ञात नहीं हो सका। इनमें से वसुदेव, जीवन्धर आदि कई कामकुमार तो हरिवंशपुराण, उत्तरपुराणके अनुसार गिरनार, विपुलाचलसे मुक्त हुए हैं । यह विषय अनुसन्धान श्रेणीमें है, अभी निर्णीत नहीं है। क्षेत्रकी खोज ___ सिद्धवरकूट क्षेत्र वास्तवमें कहां था, और वह कब, कैसे विस्मृत कर दिया गया, इसके बारेमें कोई स्पष्ट प्रमाण प्राप्त नहीं होते। 'निर्वाण-काण्ड' में सिद्धवरकूट क्षेत्रसे दो चक्री, दस कामकुमार और साढ़े तीन कोटि मुनियोंका मुक्त होना बताया है, किन्तु शास्त्रोंमें ऐसे प्रसिद्ध निर्वाण-क्षेत्रके बारेमें विशेष ज्ञातव्य कुछ भी उपलब्ध नहीं होता। 'निर्वाण-काण्ड में भी जो बताया है, वह भी बड़ा अस्पष्ट है। ___'निर्वाण-काण्ड' ( प्राकृत ) में सिद्धवरकूटका नाम तो आया है, किन्तु संस्कृत 'निर्वाणभक्ति' में इस क्षेत्रका नाम तक नहीं है, केवल 'विन्ध्ये' शब्द आया है । अर्थात् सम्पूर्ण विन्ध्याचलको सिद्धक्षेत्र स्वीकार किया है। और विन्ध्याचल रेवाके तटपर बहुत दूर तक गया है, इसलिए रेवातटवर्ती सिद्धक्षेत्रोंका अन्तर्भाव इसमें किया जा सकता है। 'निर्वाण-काण्ड' में रेवातटवर्ती सिद्धक्षेत्रोंके लिए निम्नलिखित दो गाथाएँ मिलती हैं 'दहमुहरायस्स सुआ कोडी पंचद्धमुणिवरे सहिया । रेवाउट्ठयम्मि तीरे णिव्वाण गया णमोतेसिं ॥१०॥ रेवाणइए तीरे पच्छिमभायम्मि सिद्धवरकूटे। दो चक्की दह कप्पे आहुट्ठयकोडिणिव्वुदे वंदे' ॥११॥ १. 'क्रियाकलाप' ग्रन्थमें पं. पन्नालाल सोनीने सूचित किया है कि कई पुस्तकोंमें यह गाथा नहीं मिलती। कुछ पुस्तकोंमें इसके स्थानपर निम्नलिखित दो गाथाएँ उपलब्ध होती है रेवातडम्मि तीरे दक्षिणभायम्मि सिद्धवरकूडे । आहुट्ठकोडीओ णिवाण गया णमो तेसि ॥१॥ रेवातडम्मि तीरे संभवनाथस्स केवलुप्पत्ती। आयकोडीओ णिम्वाण गया णमो तेसि ॥२॥
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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