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________________ मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ ३१७ संस्कृत निर्वाण-भक्तिमें सिद्धवरकूट नामक किसी निर्वाण-क्षेत्रका उल्लेख नहीं मिलता, किन्तु उसमें 'विन्ध्ये' पद द्वारा विन्ध्याचलके समस्त तीर्थोंको ले लिया है। इस निर्वाण-भक्तिमें इसी कारण सिद्धवरकूटके समान पावागिरिका भी नामोल्लेख नहीं किया है एवं विन्ध्याचलके समान सहस्राचल और हिमवान पर्वतका ही नाम दिया है, वहांके तीर्थोंका नहीं। बोधप्राभृतकी गाथा २७ की व्याख्यामें भट्टारक.श्रुतसागरने क्षेत्रका नाम सिद्धकूट दिया है । भट्टारक गुणकीर्ति, विश्वभूषण आदि लेखकोंने भी इसका नाम सिद्धकूट ही दिया है। प्राकृत निर्वाण-काण्डकी उपर्युक्त गाथामें इस क्षेत्रको अवस्थितिकी ओर भी संकेत किया गया है कि यह क्षेत्र रेवा नदीके पश्चिम तटपर अवस्थित है। कूट शब्दसे यह आशय निकलता है कि यह क्षेत्र पर्वतकै ऊपर है और वह कूट सिद्धकूट या सिद्धवरकूट कहलाता है। संस्कृत निर्वाण-भक्तिमें 'वरसिद्धकूटे' शब्द आया है किन्तु वह इस क्षेत्रके सन्दर्भमें नहीं आया, बल्कि वैभारगिरिके सन्दर्भमें आया है और उसमें 'वेभार पर्वततले वरसिद्धकूटे' इस पद द्वारा यह स्पष्ट किया है कि वैभारगिरिकी तलहटी और ऊपर शिखरसे मुनि मुक्त हुए। रेवाके तटवर्ती इस क्षेत्रका कोई विशेष नाम नहीं था, बल्कि साढ़े तीन करोड़ मुनियोंका सिद्धिस्थान होनेके कारण इस पर्वत-शिखर और क्षेत्रका नाम ही सिद्धवरकूट हो गया। दो चक्री और बस कामदेव-दो चक्रवर्ती और दस कामकुमार कौन थे, इनके नामोंका उल्लेख कहीं देखनेमें नहीं आया। चक्रवतियोंमें भरत और सगर कैलाससे मुक्त हुए। शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ और अरनाथ सम्मेदशिखरसे मोक्ष गये। हरिषेण सर्वार्थसिद्धिमें और जयसेन अनुत्तर विभागमें अहमिन्द्र बने। सुभौम और ब्रह्मदत्त ये दो चक्रवर्ती नरकमें गये। केवल मघवा, सनत्कुमार और पद्मनाभ ये तीन चक्रवर्ती शेष रहे, जिनके सम्बन्धमें विशेष अनुसन्धानकी आवश्यकता है। इस सम्बन्धमें आचार्यों में कुछ मतभेद प्रतीत होता है। 'तिलोय-पण्णत्ति' ४११४१० के अनुसार आठ चक्रवर्ती मोक्षमें, ब्रह्मदत्त और सुभौम नरकमें तथा मघवा और सनत्कुमार तीसरे सानत्कुमार कल्पमें गये। 'उत्तर पुराण' के अनुसार ये दोनों चक्रवर्ती मुक्त हुए थे। पद्मनाभके सम्बन्धमें दोनों आचार्य एकमत हैं और उनको मुक्त होना मानते हैं। केवल मतभेद मघवा और सनत्कुमार इन दो चक्रवर्तियोंके बारेमें है। मुनिराज सनत्कुमारने जिस प्रकार घोर तपश्चर्या की और इन्द्रको भी उनकी तपोनिष्ठाको प्रशंसा करनी पड़ी थी, उससे तो यह विश्वास होता है कि ऐसा सम्यग्दृष्टि घोर तपस्वी मुनि अवश्य मुक्त हुआ होगा। यदि इन दोनों चक्रवर्तियोंको हम मुक्त हुआ मान लें तो उनका निर्वाण-स्थान कौन-सा था, इस सम्बन्धमें जिज्ञासा होना स्वाभाविक है। लगता है, जिन आचार्योंने सिद्धवरकूट क्षेत्रसे दो चक्रवतियोंका निर्वाण-गमन लिखा है, वे 'उत्तरपुराण' के मतके ही थे और उनके मनमें, सिद्धवरकूटसे मघवा और सनत्कुमार ये दो चक्रवर्ती मुक्त हुए, यह बात रही थी। अस्तु, जिस प्रकार दो चक्रवर्तियोंके सम्बन्धमें कहीं स्पष्ट उल्लेख उपलब्ध नहीं होता, इसी प्रकार दस कामकुमारोंके सम्बन्धमें भी कहीं कोई उल्लेख देखने में नहीं आया। - इस सम्बन्धमें दिगम्बर परम्परामें जो स्थिति है, लगभग वही स्थिति श्वेताम्बर परम्परामें भी रही है। आचार्य हेमचन्द्र कृत 'त्रिषष्ठि शलाकापुरुषचरित' में बारह चक्रवतियों में से आठ चक्रवतियोंको मोक्ष माना है, मघवा और सनत्कुमारको तीसरे स्वर्ग सानत्कुमारमें देव पर्याय और सुभौम एवं ब्रह्मदत्त दो चक्रवर्तियोंको नरक पर्यायकी प्राप्ति बताया है। . इससे ऐसा प्रतीत होता है कि इस सम्बन्ध में कुछ अस्पष्टता या मत-विभिन्नता रही है। एक मत 'तिलोयपण्णत्ति' और 'त्रिषष्ठिशलाकापुरुषचरित' का रहा है, जिसके अनुसार मघवा और
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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