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________________ ३१५ मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ प्राचीन प्रतिमा विराजमान है। पाषाणफलक १ फुट ७ इंच है। प्रतिमाके दोनों ओर चमरवाहक खड़े हुए हैं । बायीं ओर भगवान् महावीरकी श्वेतवर्णकी पद्मासन प्रतिमा है। लेखके अनुसार इसकी प्रतिष्ठा संवत् १९९३ में हुई । इसकी अवगाहना १ फुट ८ इंच है। इधर-उधर दो खड्गासन प्राचीन प्रतिमाएं हैं। इनका आकार १ फुट १० इंच है। बगलकी वेदीमें भगवान् सम्भवनाथकी कृष्ण पाषाणकी प्रतिमा पद्मासन मुद्रामें विराजमान है। इसकी अवगाहना २ फुट ८ इंच है। इसके प्रतिमा-लेखमें प्रतिष्ठा संवत् १२१८ दिया है। इसकी बगलमें श्वेतवर्णकी पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। ___पंच पहाड़ी-शान्तिनाथ मन्दिरसे उतरकर थोड़ी दूर चलनेपर एक ऊंची टेकरी मिलती है। इसके ऊपर प्राचीन मन्दिरोंके अवशेषोंपर छोटे-छोटे छह नवीन मन्दिर बने हुए हैं। (१) आचार्य शान्तिसागरजी के चरणचिह्न विराजमान हैं। (२) बाहुबली स्वामीकी मार्बलकी श्वेत प्रतिमा है । (३,४) भगवान् शान्तिनाथकी पद्मासन मूर्तियां हैं (५) भगवान् पाश्वनाथकी श्वेत प्रतिमा है, (६) भगवान् आदिनाथकी पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। . यहां प्राचीन मन्दिरोंके भग्नावशेष दबे पड़े हैं। यदि यहाँ उत्खनन किया जाये तो काफी पुरातत्त्व सामग्री उपलब्ध होनेकी सम्भावना है। अतिशय सिद्धक्षेत्र होनेके कारण यहाँ समय-समयपर कुछ ऐसी असामान्य बातें देखने-सुननेको मिलती हैं, जिन्हें सर्वसाधारण श्रद्धावश दैवी चमत्कार मानता है क्योंकि उन बातोंका कोई कार्यकारण समझमें नहीं आता । जैसे, संवत् १९६२ की बात है। आचार्य महावीरकीर्तिजी महाराजका यहाँ चर्तुमास था। चौंसठ ऋद्धि विधान हो रहा था। एक दिन लगभग १५ मिनट तक 'ॐ नमः' की ध्वनिके साथ रह-रहकर बाजे बजनेकी ध्वनि आती रही। रात्रिमें नृत्य, पूजन और बाजोंको ध्वनि अनेक बार सुनी गयी है। ऐसे अनेक प्रत्यक्षदर्शी विद्यमान हैं, जिन्होंने ये आवाजें सुनी हैं। ये घटनाएं महावीर मन्दिर (धर्मशाला) में होती हैं। धर्मशाला ___यहाँ धर्मशालामें कुल ५२ कमरे हैं । प्रत्येक कमरेके पीछे रसोई घर है। सामूहिक भोजके लिए बड़ा रसोई घर है । धर्मशालामें स्नानगृह, शौचालय, मूत्रालय, नल, कुआं, बिजली आदि सभी आश्यक सुविधाएँ हैं। यहां बाजार होनेसे प्रत्येक आवश्यक वस्तु मिल जाती है । पोस्ट ऑफिस, टेलीफोन, पुलिस-स्टेशन ये धर्मशालाके निकट होने से बड़ी सुविधा है। क्षेत्रपर स्थित संस्थाएं क्षेत्रपर जन-सेवाकी प्रवृत्तियां निरन्तर चलती रहती हैं। जन-सेवा करनेवाली कुछ संस्थाएं भी क्षेत्रपर चल रही हैं। १. श्री शान्तिनाथ आयुर्वेदिक औषधालय । २. श्री सम्भवनाथ वाचनालय। ३. श्री निहालचन्द शारदा भवन (बालकोंका उच्चतर माध्यमिक विद्यालय उस स्थान पर स्थित है जहाँ ५ मूर्तियां भूगर्भसे निकली थीं)। ४. श्री दिगम्बर जैन गुरुकुल ।
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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