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________________ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ कालीन परमार और चौलुक्य कलाकी उत्कृष्ट कृति है। इस मन्दिरमें गूढ़मण्डप या गर्भगृह, महामण्डप, अधमण्डप हैं, तीन ओर द्वार बने हुए हैं। गूढमण्डपके ऊपर समुन्नत शिखर है। ऊन के प्राचीन मन्दिरोंमें एकमात्र यही मन्दिर अच्छी दशामें है। इसका जीर्णोद्धार किया जा चुका है। इससे यह आकर्षक बन गया है । जीर्णोद्धार करते समय इसकी प्राचीनता और कलाको क्षति नहीं पहुंची, यह प्रशंसा योग्य है। गर्भगृहमें जानेके लिए १० सीढ़ियां उतरनी पड़ती हैं । गर्भगृहका आकार ११ फुट ८ इंचx ९ फुट ३ इंच और ऊँचाई २० फुट है। गर्भगृह अपने मूलरूपमें सुरक्षित है, केवल शिखरमें कुछ परिवर्तन किया गया है। सामने वेदीपर भगवान् शान्तिनाथकी १२ फुट ९ इंच ऊंची भव्य प्रतिमा विराजमान है। यह कायोत्सर्ग मद्रामें खड़ी है। यह कृष्ण पाषाणकी है। चरण-चौकीपर उनका लांछुन हिरण बना हुआ है तथा मूर्तिलेख भी अंकित है जिसका 'संवत् १२६३ जेष्ठ वदी १३ गुरौ आचार्य श्री यशकीर्ति प्रणमति' यह अंश ही पढ़ा जा सका। इसके पाश्वमें बायीं ओर कुन्थुनाथ और दायीं ओर अरनाथकी ८-८ फुट ऊंची खड्गासन मूर्तियां हैं। कुन्थुनाथकी मूर्तिके पीठासनपर यक्ष-यक्षी और लांछन बकरा बने हुए हैं तथा 'संवत् १२६३ ज्येष्ठ वदी १३ गुरौ सिन्धी पं. तरंगसिंह सुत जीतसिंह प्रणमति' यह लेख अंकित है। अरनाथकी मूर्तिके पादपीठपर उनका चिह्न मत्स्य अंकित है। इन तीनों मूर्तियोंके दोनों पाश्र्वोमें चमरवाहक खड़े हुए हैं। यह नवीन रचना है । मूर्तियोंके सिरके ऊपर पाषाण छत्र नहीं है, बल्कि धातुके नवीन छत्र लगे हुए हैं। गर्भगहका द्वार विशेष अलंकृत है। दायीं ओर तीन दरकी एक वेदीमें मन्दिरके साथ निकली हुई मूर्तियां और चरण विराजमान हैं। एक शिलाफलक ३ फुट चौड़ा और १ फुट ३ इंच ऊँचा है। उसमें पांच पद्मासन तीर्थंकर मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं। यह किसी सिरदलका भाग लगता है। एक अन्य मूर्ति १० इंच ऊँची है। मध्यमें पद्मासन प्रतिमा है। उसके ऊपर छत्र बना हुआ है। दोनों ओर कोष्ठकोंमें दो पदमासन प्रतिमाएं हैं। नीचे दो खड़गासन प्रतिमाएँ हैं। एक और मूर्ति १ फुट ५ इंच चौड़ी और १० इंच ऊंची है । कोष्ठकमें पद्मासन मूर्ति है। दायीं ओर देव पुष्पमाला लिये हुए हैं और देवी बायें हाथमें सम्भवतः बिजौरा फल लिये है । एक पाषाणमें चरणचिह्न बने हए हैं। इनका आकार १० इंच है। बायीं ओरकी वेदीमें किसी मूर्तिका ऊपरी भाग रखा हआ है। इसके शीर्षपर एक पद्मासन तीर्थंकर प्रतिमा बनी हुई है। उससे नीचे माला लिये हुए देवी है। उससे नीचे छत्र हैं। इसके दोनों ओर नर्तक-नर्तकी तथा देव-देवियाँ हैं। उनसे नीचे गज हैं। कोष्ठकमें एक पद्मासन प्रतिमा है। देव माला लिये हुए है और देवी फल (बिजौरा ) लिये हुए है। एक मूर्ति १ फुट २ इंच उन्नत है । शिखराकृतिमें पद्मासन प्रतिमा बनी हुई है। १० इंच लम्बे चरणचिह्न विराजमान हैं। दायीं ओरकी वेदीमें भगवान् पाश्वनाथकी श्वेत पाषाणकी पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। इसका आकार १ फुट ६ इंच है और प्रतिष्ठा-काल वीर सं. २४९३ है। इसके दोनों पावों में दो प्राचीन प्रतिमाएं हैं। एक १ फुट ३ इंच है। यह खड्गासन है। एक ओर तीन पद्मासन और एक खड्गासन प्रतिमा है। सिरके दोनों ओर मालाधारी देव हैं। चरणोंके दोनों ओर चमरेन्द्र खड़े हैं। दूसरी प्रतिमा १ फुट १० इंच है। इस फलकमें दोनों ओर दो-दो स्तम्भ और उनके मध्य कोष्ठक हैं। उन कोष्ठकोंमें खड्गासन मूर्तियां हैं। उनके एक पार्श्वमें चमरवाहक हैं। . इससे आगेकी वेदी महावीर भगवान्की है। उनकी मूर्ति कृष्णवर्णकी है और पद्मासन है। यह १ फुट ४ इंच ऊंची है तथा इसका प्रतिष्ठाकाल वीर संवत् २४६२ है। दायीं ओर एक
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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