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________________ - मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ ३१३ सीढ़ियां बनी हुई हैं। गर्भगृहमें तीन विशाल प्रतिमाएं खड्गासन मुद्रामें विराजमान हैं। ये तीनों प्रतिमाएं भगवान् शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ और अरहनाथकी हैं। . - इस मन्दिरको देखनेसे एक बातकी ओर विशेष रूपसे ध्यान जाता है। इसके शिखरकी रचना अनूठी है और वह जेन स्तूपोंके आधारपर की गयी प्रतीत होती है। चौबारा डेरा मन्दिरोंके आसपासमें प्राचीन मन्दिरोंके अवशेष बिखरे पड़े हैं। अनेक जैन मूर्तियां भी पुरातत्त्व विभागने एक स्थानपर संग्रह कर ली हैं। जैन कन्या विद्यालयके भवनमें भी अनेक मूर्तियां संग्रहीत हैं। इनमें तीर्थंकरों, यक्ष-यक्षियों, नवग्रहों तथा कई हिन्दू देवताओंकी मूर्तियां सम्मिलित हैं। कुछ प्राचीन मूर्तियां शान्तिनाथ मन्दिरके महामण्डपमें विराजमान हैं। इनमें अधिकांश मूर्तियां १२वीं शताब्दीकी हैं । उस कालके जैन मन्दिरोंके समान कई हिन्दू मन्दिर भी अबतक सुरक्षित हैं । यहाँके ये सभी मन्दिर और भग्नावशेष बल्लाल नरेश द्वारा निर्मित मन्दिरोंके ही कहे जाते हैं। शान्तिनाथ मन्दिरको छोड़कर शेष सभी मन्दिर और मूर्तियां भारत सरकारके पुरातत्त्व विभागके संरक्षणमें हैं । क्षेत्र दर्शन सड़कके किनारे ही श्री पावागिरि दिगम्बर जैन सिद्धक्षेत्रको विशाल धर्मशाला है। उसके मध्यवर्ती प्रांगणमें महावीर मन्दिर बना हुआ है। इसमें तीन दरकी. एक वेदी है जिसमें भगवान् महावीरको श्यामवर्णको २ फुट २ इंच उन्नत भव्य प्रतिमा विराजमान है। यही यहाँको मूलनायक प्रतिमा है। यह संवत् १२५२ में आचार्य प्रभाचन्द्रने प्रतिष्ठित करायी। यह प्रतिमा उत्खननमें प्राप्त हुई थी। बायीं ओर पद्मप्रभ ओर दायों ओर आदिनाथ भगवान्को श्वेतवर्ण पद्मासन प्रतिमाएँ विराजमान हैं । ये दोनों वीर संवत् २४६४ में प्रतिष्ठित हुई हैं। वेदीमें ८ घातु प्रतिमाएं तथा १ लघु पाषाण प्रतिमा और विराजमान हैं। मन्दिरके आगे एक भव्य समुन्नत मानस्तम्भ बना हुआ है, जिसके शीर्ष पर ४ मूर्तियां विराजमान हैं। चारों मूर्तियां भगवान् शान्तिनाथकी हैं । मन्दिरके शिखरमें एक वेदी बनी हुई है, जिसमें भगवान् शान्तिनाथकी श्वेतवर्णको खड्गासन मूर्ति सं. १९९५ की विराजमान है । अवगाहना ३ फुट ६ इंच है । एक चरण चिह्न भी है । मन्दिरके द्वारके ऊपर भी एक छोटी वेदी है। उसमें भगवान् शान्तिनाथकी १ फुट ३ इंच ऊंची श्वेत पद्मासन मूर्ति है। प्रतिष्ठा काल संवत् २००८ है। सड़कसे एवं धर्मशालाके पृष्ठभागसे पावागिरि क्षेत्र तक रोड बन गया है। रोडका नाम महावीर मार्ग रखा गया है। कुछ दूर चलनेपर एक पक्का द्वार बनाया गया है जिसका नाम श्री महावीर प्रवेश-द्वार है। उससे थोड़ा और आगे जानेपर क्षेत्रपर पहुंच जाते हैं। यह धर्मशालासे २ फलांग है और एक छोटी पहाड़ीपर है। महावीर मन्दिर-यह एक गमटी या मन्दरिया है। इसमें भगवान महावीरकी एक श्वेत वर्णवाली १ फुट ९ इंच उन्नत पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। प्रतिष्ठा काल संवत् २४८७ है। चन्द्रप्रभ मन्दिर-भगवान् चन्द्रप्रभको ११ फुट ऊंची श्वेत पाषाणकी पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। इसके दोनों पाश्वोंमें भगवान् शान्तिनाथकी श्वेव वर्णवाली पद्मासन प्रतिमाएं विराजमान हैं। , इन दोनों मन्दिरोंके मध्य चौकमें ४० फुट ऊंचा मानस्तम्भ है। इसके सामने ही सुप्रसिद्ध ग्वालियर यी शान्तिनाथ मन्दिर है। यही यहाँका सर्वप्रमुख मन्दिर है। स्वर्णभद्र आदि मुनियोंकी निर्वाण-भूमि यही मानी जाती है। यह मन्दिर एका अंची टेकरीपर बना हुआ है। यह मध्य ३-४०
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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