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मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ
३०५ बल्लालकी मृत्युके सम्बन्धमें कई प्रशस्तियों और लेखोंमें उल्लेख मिलता है। बड़नगरमें कुमारपालको एक प्रशस्ति मिली है। उसके १५वें श्लोकमें बताया है कि बल्लालको जीतकर उसका मस्तक कुमारपालके महलोंके द्वारपर लटका दिया। इस प्रशस्तिका काल संवत् १२०८ है और कमारपालके राज्याभिषेकका काल सं. १२०० है। अतः इस बीच में ही बल्लालकी मृत्यु होनी सम्भव है।
ऊनके एक शिवमन्दिरमें एक शिलालेख है। उसमें बल्लाल देवका नाम आया है। 'भोजप्रबन्ध' का कर्ता भी एक बल्लाल था। ऊन नगरके बसानेवाले बल्लालसे भोज-प्रबन्धका कर्ता बल्लाल भिन्न था या दोनों एक ही व्यक्ति थे, यह भी एक प्रश्न है। ऊनको बसानेवाला बल्लाल निश्चय ही एक राजा था, और उसका एक सामन्त भुल्लण ब्रह्मणवाड़का शासक था। जैसा कि 'पज्जण्णचरियं' की प्रशस्तिसे पता चलता है। सम्भव है, इस राजाने ही भोज-प्रबन्धकी रचना की हो। .
___ अभी एक समस्या शेष है, जिसका समाधान आवश्यक है। बल्लालको कुमारपाल चरितग्रन्थों, शिलालेखों और प्रशस्तियोंमें सर्वत्र मालवराज लिखा है। क्या मालवमें उज्जयिनी भी शामिल थी?
श्री लक्ष्मीशंकर व्यासने 'चौलुक्य कुमारपाल' नामक ग्रन्थ लिखा है। उसमें उन्होंने बल्लाल नामक दो राजाओंका उल्लेख किया है-एक उज्जयिनीराज बल्लाल तथा दूसरा मालवराज बल्लाल । तथा यह भी लिखा है कि उज्जयिनीराज बल्लालने मालवराज बल्लालसे सैनिक अभिसन्धि कर ली।
इस ग्रन्थके आमुख लेखक डॉ. राजबली पाण्डेयने भो चौलुक्य कुमारपालके विरुद्ध उज्जयिनीके राजा बल्लाल द्वारा अभियान करनेका उल्लेख किया है।
इन इतिहासकारोंके मतमें उज्जयिनी और मालवाके राजाओंके नाम बल्लाल थे। दोनों समकालीन थे और दोनोंकी परस्पर सुरक्षा सन्धि थी। इन विद्वानोंकी इस मान्यताका आधार क्या है, यह स्पष्ट नहीं हो सका। ___आचार्य सोमप्रभ, आचार्य हेमचन्द्र और आचार्य सोमतिलक सूरिके कुमारपाल सम्बन्धी चरित-ग्रन्थोंमें बल्लालको मालवराज लिखा है। तथा यह भी स्पष्ट लिखा है कि बल्लालके ऊपर चढ़ाई करनेवाले सेनापतिने शत्रुका शिरच्छेद करके कुमारपालकी विजयपताका उज्जयिनीके राजमहलपर फहरायी। उदयपुर ( भेलसा ) में कुमारपालके दो लेख सं. १२२० और १२२२ के मिले हैं। उनमें कुमारपालको अवन्तिनाथ कहा गया है। मालवराज बल्लालको मारकर कुमारपाल अवन्तिनाथ कहलाया। इसका तात्पर्य यह है कि मालवराज बल्लाल और उज्जयिनीका बल्लाल ये दो पृथक् व्यक्ति नहीं थे, दोनों एक थे।
___ यहाँ हम संक्षेपमें मालवाके परमारों और गुजरातके चालुक्य राजाओंका क्रमबद्ध इतिहास दे रहे हैं । इससे अनेक शंकाओंका समाधान हो जाता है।
"मुंज और सिन्धुराजने मालवामें परमारोंका राज्य सुदृढ़ किया। सिन्धुराजका पुत्र भोज सन् १००० में मालवाकी गद्दी पर बैठा। उसने अपना राज्य चित्तौड़, बाँसगड़ा, डूंगरपुर, भेलसा,
१. The Parimaras of Malwa (X1). The Chaulukyas of Gujrat (XII ) by
D. C. Ganguly, in the Struggle for Empire, Vol. V, pp. 66.81, Bharatiya Vidya Bhawan, Bombay.