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________________ ३०४ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ - इन आचार्योंके इन ग्रन्थोंसे बल्लाल तथा तत्कालीन राजाओंके इतिहासपर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है। कुमारपाल जब गद्दीपर बैठा, उस समय चौलुक्य वंशका राज्य-विस्तार सुदूर प्रान्तों में था। उसका मन्त्री उदयन था। उदयनका तीसरा पुत्र चाहड़ बड़ा साहसी समरवीर था। जब कुमारपाल अपने राज्यकी व्यवस्थामें लगा हुआ था, तब किसी कारणवश चाहड़ कुमारपालसे असन्तुष्ट होकर शाकम्भरी-नरेश अर्णोराजसे जा मिला। अर्णोराजके साथ कुमारपालकी बहन देवलदेवीका विवाह हुआ था। किन्तु अर्णोराज कुमारपालके विरुद्ध हो गया था। चाहड़की कूटनीतिसे मालवराज बल्लाल भी कुमारपालके विरुद्ध इस गुटमें आ मिला। जब कुमारपाल अर्णोराजके ऊपर चढ़ाई करनेके लिए चला तो चन्द्रावती ( आबूके निकटस्थ ) के राजा विक्रमसिंहने कुमारपालकी अभ्यर्थना करके भोजनका निमन्त्रण दिया। किन्तु चतुर कुमारपाल उसकी कपट-योजनाको भांप गया। वास्तवमें विक्रमसिंहने लाखका एक महल बनवाया था। वह कुमारपालको मारना चाहता था। कुमारपाल उस समय वहाँसे शत्रुसे युद्ध करने चला गया। उसने अर्णोराजपर प्रबल आक्रमण करके उसे शरणागत होनेको बाध्य किया। लौटते हुए उसने विक्रमसिंहपर आक्रमण किया और उसे पिंजड़े में बन्द करके अपने साथ अपनी राजधानी ले गया। बल्लालके ऊपर आक्रमण करनेके लिए उसने अपने विश्वस्त सेनाध्यक्ष काकमरकी अध्यक्षतामें एक विशाल सेना भेजी। सेनापतिने मालवनरेशका सिर काटकर कुमारपालकी विजयपताका उज्जयिनीके राजमहलपर फहरा दी। इस प्रकार गुजरातके पड़ोसी और प्रतिस्पर्धी तीन राज्योंको एक साथ गुजरातके मातहत कर लिया। मन्त्री तेजपालके आबू स्थित लूणबसति के लेख में-जो संवत् १२८७ का है-मालवराज बल्लालका वध करनेवालेका नाम यशोधरबल दिया है। इसका समर्थन अचलेश्वर मन्दिरके शिलालेखसे भी होता है। - यशोधवलका वि. सं. १२०२ का एक शिलालेख अजारीगाँवसे मिला है, जिसमें 'प्रमारवंशोद्भव महामण्डलेश्वर श्रीयशोधवलराज्ये' इस वाक्य द्वारा यशोधवलको महामण्डलेश्वर और परमारवंशका बताया है । वह कुमारपालका माण्डलिक राजा था और आबूमें राज्य करता था। उसके पुत्र धारावर्षका संवत् १२२० का एक लेख मिला है। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि यशोधवलका देहान्त इससे पूर्व हो गया होगा। , मालवाके परमार राजा यशोवर्माको गुर्जरनरेश सिद्धराज जयसिंहने पराजित करके मालवापर अधिकार कर लिया था। यशोवर्माके पश्चात् मालवाधिपतिका विरुद बल्लालदेवके साथ लगा हुआ मिलता है। किन्तु परमार वंशावलीमें बल्लाल नामक कोई व्यक्ति नहीं मिलता। तब प्रश्न उठता है कि यह बल्लाल किस वंशका था। १. रोदःकन्दरवर्तिकीतिलहरीलिप्तामृतांशुद्युते रप्रद्युम्नवशो यशोधवल इत्यासीत्तनूजस्ततः । यश्चौलुक्यकुमारपालनृपतिः प्रत्यर्थितामागतं मत्त्वा सत्त्वरमेव मालवपति बल्लालमालब्धवान् ॥ अर्थात् परमारवंशी रामदेवके अत्यन्त यशस्वी कामजेता यशोधवल नामक पुत्र हुआ। चौलुक्यवंशी कुमारपालके शत्रु मालवपति बल्लालको आता जानकर इसीने उसको मार डाला। २. भारतके प्राचीन राजवंश, भाग १, पृ. ७६-७७ ।
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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