SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 339
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३०६ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ खानदेश, कोंकण और गोदावरीके ऊपरी मुहानों तक विस्तृत कर लिया। धारा, उज्जैन और माण्डु भी उसके अधिकारमें थे । उसके राज्यकालमें ही सन् १०४२ में चौलुक्य जयसिंहके पुत्र सोमेश्वर प्रथमने मालवापर कुछ समयके लिए अधिकार कर लिया । भोजकी मृत्युके बाद सन् १०५५ में मालवा कलचुरि और चालुक्योंके हाथमें चला गया। भोजका उत्तराधिकारी जयसिंह हुआ । उसने दक्षिणके विक्रमादित्य षष्ठकी सहायतासे पुनः एक बार मालवापर अधिकार कर लिया । सोमेश्वर द्वितीयने पुनः मालवापर चढ़ाई करके जयसिंहको मार दिया और मालवापर अधिकार कर लिया । जयसिंहकी मृत्यु होनेपर भोजके भाई उदयादित्यने चाहमान विग्रहराज तृतीयको सहायतासे पुनः मालवापर अधिकार कर लिया। सन् १०८० और १०८६ के उदया· दित्यके शिलालेखोंके अनुसार उसकी राज्य सीमाएँ दक्षिणमें निमाड़ जिला, उत्तरमें झालावाड़ स्टेट, पूर्वमें भेलसा तक थीं । सन् १९०४ के लेखके अनुसार उसके बाद क्रमशः उसके दो पुत्र लक्ष्मदेव और नरवर्मन गद्दीपर बैठे । नरवर्मन मालवाकी गद्दीपर सन् १०९४ में बैठा । यह चन्देल और शाकम्भरीके राजाओंसे पराजित भी हुआ । चौलुक्य नरेश जयसिंह सिद्धराजके हाथों भी उसे करारी पराजय उठानी पड़ी और इसमें वह कैद भी हो गया । वह बादमें छूट गया, किन्तु परमार राज्यकी चूलें -तक इससे हिल गयीं । नरवर्मनका पुत्र यशोवर्मन सन् १९३३ में गद्दीपर बैठा । परमार राज्य बिखर गया था । देवास में विनयपालने अपना राज्य जमा लिया । चन्देल मदनवर्मनने भेलसापर अधिकार कर लिया । फिर चौलुक्य जयसिंह सिद्धराजने पुनः मालवापर आक्रमण करके उसे बन्दी बना लिया और सम्पूर्ण मालवापर अधिकार करके उसे अपने राज्यमें मिला लिया और अवन्तिनाथ विरुद धारण किया । सन् १९३८ तक मालवा जयसिंहके अधिकारमें रहा । इसके पश्चात् सम्भवतः यशोवर्मंनके पुत्र जयवर्मन ने जयसिंह चौलुक्यके शासन के अन्तिम दिनों में मालवाको स्वतन्त्र कर लिया । किन्तु वह अधिक समय तक मालवापर अपना अधिकार नहीं रख सका । कल्याणके चालुक्य जगदेकमल्ल और होयसल नरसिंह प्रथमने मालवापर आक्रमण किया, उसकी शक्ति नष्ट कर दी और उस देशकी राजगद्दीपर 'बल्लाल' नामक एक व्यक्तिको बैठा दिया। इस घटना के कुछ समय पश्चात् सन् ११४३ में चौलुक्य कुमारपाल बल्लालको राजगद्दी से उखाड़ फेंका और भेलसा तक सारा मालवा अपने राज्यमें मिला लिया । • लगभग बीस वर्ष तक मालवा गुजरातके राजाका भांग रहा । इस अवधि में परमार वंशके राजा गुजरात नरेश सामन्त बनकर भोपाल, निमाड़ जिला, होशंगाबाद और खानदेशका शासन चलाते रहे । इन्हें 'महाकुमार' कहा जाता था । बारहवीं शताब्दी के सातवें शतकमें परमार जयवर्मनके पुत्र 'विन्ध्यवमंनने चौलुक्य मूलराज द्वितीयको पराजित करके मालवापर अधिकार कर लिया । किन्तु विन्ध्यवर्मन शान्तिपूर्वक राज्य नहीं कर पाया । होयसलों और यादवोंने उसे चैनसे नहीं बैठने दिया । वे मालवापर निरन्तर आक्रमण करते रहे । सन् १९९० के लगभग चोलोंकी सहायता से विन्ध्यवमंनने होयसल राज्यपर आक्रमण कर दिया किन्तु होयसल नरेश बल्लाल द्वितीयने उसे भगा दिया ।" उपर्युक्त विवरण से कई बातोंपर प्रकाश पड़ता है। (१) मालवराज बल्लाल परमार वंश का राजा नहीं था । (२) मालवा और अवन्तीमें बल्लाल नामके दो राजा नहीं थे, किन्तु अवन्ती भी मालवा में थी और चालुक्य होयसल राजाओंने मिलकर परमार नरेशको मारकर उसके स्थानपर बल्लालको राजा बनाया था । (३) होयसलवंशी बल्लाल द्वितीय कुमारपालकी मृत्यु (सन्
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy