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मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ
क्षेत्रका इतिहास
इस क्षेत्रके सम्बन्धमें एक किंवदन्ती बहु-प्रचलित है कि संवत् १८९८ में एक भील अपने खेतमें हल चला रहा था। एक स्थानपर हल अटक गया। उसने हल निकालने का बड़ा प्रयत्न किया किन्तु वह सफल नहीं हुआ । तब थककर वह अपने घर चला गया। रात्रिमें उसे स्वप्न हुआ । स्वप्नमें उसे लगा कि उसे कोई दिव्यपुरुष उस स्थानको खोदनेका आदेश दे रहा है, जहाँ हल अटका था । दूसरे दिन भीलने खेत में जाकर उस स्थानको खोदा । वहाँ एक भोंयरेमें १३ जैन मूर्तियां निकलीं । इसकी सूचना कुक्षिके जैनोंको दो गयी । फलतः दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों सम्प्रदाय के जैन वहाँ एकत्रित हुए। सभी मूर्तियाँ दिगम्बर आम्नायकी थीं । मालवा सदासे दिगम्बर जैनोंका गढ़ रहा है । उस कालमें भी यहाँ दिगम्बर जैनोंका प्राधान्य था । उन्होंने उदारता तथा साधर्मी वात्सल्यके नाते यह सुझाव रखा कि मिली हुई १३ प्रतिमाओंमें ५ बड़ी प्रतिमाएँ हैं और ८ छोटी हैं । इसलिए इनके ऐसे दो विभाग किये जायें । सबने यह सुझाव स्वीकार कर लिया । पर्ची डाली गयी । उसके अनुसार ५ बड़ी मूर्तियाँ दिगम्बरोंको और छोटी ८ प्रतिमाएँ श्वेताम्बरों को मिलीं ।
प्रतिमाओंका बंटवारा हो जानेपर कुक्षिकी दिगम्बर जैन समाजने निश्चय किया कि प्रतिमाओंको कुक्षि ले चलें और वहाँके मन्दिरमें विराजमान कर दें । प्रतिमाएँ गाड़ी में रख दी गयीं । किन्तु बहुत कुछ उपाय करनेपर भी गाड़ी नहीं चल सकी । इस दैवी अतिशयको देखकर सबने यही निश्चय किया कि यहींपर मन्दिर बनवाकर प्रतिमाएँ उसमें विराजमान कर दी जायँ । फलतः यहीं पर एक विशाल दिगम्बर जैन मन्दिर सेठ रोडजी मेघराजजी, सुसारीकी ओरसें बनाया गया जो अब तक विद्यमान है। इसके निकट ही श्वेताम्बर समाजने भी मन्दिरका निर्माण कराया है । जिस स्थानपर ये मूर्तियां निकली थीं, वहाँ एक चबूतरेपर गुमटी बनाकर उसमें चरणं विराजमान कर दिये हैं । इस गुमटीपर दिगम्बर समाजका अधिकार है । यह स्थान मन्दिरसे एक फलींग दूर गाँवके पीछे है ।
धर्मशाला
व्यवस्था
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क्षेत्रपर एक धर्मशाला सड़क के किनारे बनी हुई है । धर्मशाला में ४ कमरे हैं, एक पक्का
कुआं है।
इस क्षेत्रकी व्यवस्था सेठ रोडजी मेघराजजी सुकृत फण्ड, सुसारीकी ओरसे यहाँकी व्यवस्था सुन्दर थी । निकटवर्ती गांवों और दूरके भी यात्री यहाँ आते अब यात्रियों का आना नगण्य-सा ही रह गया है। सुकृत फण्डकी ओरसे जो मिलता है, उसमें श्रीजीकी सेवा-पूजा भी सन्तोषजनक ढंगसे नहीं हो पाती ।
मेला
यहाँ अब कोई नियमित वार्षिक मेला नहीं होता ।
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होती है । पहले रहते थे । किन्तु मासिक अनुदान