SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 330
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मध्यप्रवेशके विगम्बर जैन तीर्थ २९७ (१९) महावीर मन्दिर-महावीर स्वामीकी श्वेतवर्ण पद्मासन प्रतिमा इस मन्दिरकी मूलनायक प्रतिमा है । यह ३ फुट ६ इंच ऊंची है। इस वेदीपर दो-पाषाण प्रतिमाएं और विराजमान हैं। इस मन्दिरका निर्माण श्री गुमानीराम सदालाल इन्दौरने कराया। (२०) मानस्तम्भ-मानस्तम्भ ६० फुट ऊँचा है। इसकी शिखर वेदिकापर पुष्पदन्त भगवान्की श्वेतवर्णकी ४ पद्मासन और ४ खड्गासन प्रतिमाएं विराजमान हैं। इसका निर्माण सेठ चांदमल धन्नालाल सजानगढने कराया। इस प्रकार पहाड़की तलहटीमें १९ मन्दिर, १ मानस्तम्भ और १ छत्री है। क्षेत्रपर जितनी मूर्तियाँ हैं, उनमें दो मूर्तियां, जो मुनिसुव्रतनाथकी कही जाती हैं, वि. संवत् ११३१ की हैं। ये ही मूर्तियां यहाँकी प्राचीनतम मूर्तियां हैं। इनके अतिरिक्त पार्श्वनाथको दो मूर्तियां संवत् १२४२ की हैं। एक धातु मूर्ति संवत् १४८७ को है। संवत् १३८० और १९३९ की मूर्तियोंकी संख्या बहुत है। तलहटीके मन्दिरोंमें १३ मन्दिर एक अहातेमें बने हुए हैं तथा ६ मन्दिर अलग-अलग बने हुए हैं। धर्मशालाएं तलहटीमें चार धर्मशालाएँ यात्रियोंके लिए बनी हुई हैं। इनमें कुल ५० कमरे हैं। धर्मशालाओंके निकट ही बावड़ी, कुआं, जलकुण्ड, स्नानघर, नल और बस स्टाप है। प्रकाशके लिए बिजलीको सुविधा है। क्षेत्रको व्यवस्था क्षेत्रकी व्यवस्था प्रबन्धकारिणी कमेटी, श्री चलगिरि सिद्धक्षेत्र द्वारा होती है। इस क्षेत्रपर प्रारम्भसे ही दिगम्बर जैन समाजका अधिकार रहा है। एक बार सं. १७४२ में वैष्णव समाजने चूलगिरिके मुख्य मन्दिरपर अपना अधिकार जतानेका प्रयत्न किया था। वह इन्द्रजीत, कुम्भकर्णके चरणोंको दत्तात्रेयके चरण बताते थे । यह केस संवत् १७५८ तक चला, उसमें जैनोंकी विजय हुई। स्वर्गीय महाराजा रणजीतसिंहजीकी राजमातेश्वरी धनकुँअर महारानीने क्षेत्रपर दिगम्बर जैनोंके परम्परागत अधिकारोंको स्वीकार किया और वैष्णव समाजको सन्तुष्टिके लिए उन्होंने नर्मदाके तटपर बड़वानीसे ३ मल दूर दत्तात्रेयका एक सुन्दर मन्दिर बनवा दिया। शिकारका निषेध - तलहटीके घेरेमें और पहाड़के शिखरपर जानेके मार्गसे एक मील सभी दिशाओंमें सरकारी आज्ञाके अनुसार शिकार खेलना कानूनन निषिद्ध है। वाषिक मेला क्षेत्रका वार्षिक मेला पौष सुदी ८ से १५ तक भरता था। चतुर्दशीको चूलगिरिके सभी मन्दिरोंपर ध्वजारोहण किया जाता था। जब बड़वानी स्टेट थी, उस समय आखिरी दिन बड़वानीके सभी मुख्य बाजारोंसे होकर पालकी निकलती थी। किन्तु कई वर्षसे यह उत्सव बन्द हो गया है। . क्षेत्रपर उल्लेखनीय मेला वि. संवत् १९३९ और १९८७ में हुआ था। दोनों ही बार पंचकल्याणक प्रतिष्ठा हुई जिसमें हजारों व्यक्तियोंने सम्मिलित हो धर्मलाभ लिया। संवत् १९८० की ३-३८
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy