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________________ मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ २९५ जीर्णोद्धार किया गया था। इससे प्रतीत होता है कि सिद्धक्षेत्रके रूपमें इस क्षेत्रकी मान्यता प्राचीन कालसे चली आ रही है। मन्दिरके बाहर बने हुए अहातेके आलोंमें २२ मूर्तियां रखी हुई हैं। ये संब पहाड़पर उत्खननमें प्राप्त हुई थीं। इन मूर्तियोंमें नेमिनाथकी एक मूर्ति ४ फुट ४ इंच तथा पार्श्वनाथकी एक मूर्ति ४ फुट ३ इंचकी है। ये मूर्तियां प्रायः खण्डित हैं। कुछ मूर्ति-लेखोंके अनुसार ये संवत् १३८० की हैं। ___ इस मन्दिरके पृष्ठभागमें एक गुमटी या मन्दरिया बनी हुई है। इसमें तीन वेदियां हैं। सामनेवाली वेदीमें २ फुट २ इंच ऊंची एक खड़ी नग्न मूर्ति है। मूर्ति हाथ जोड़े हुए है। इसके दोनों ओर चमरवाहक हैं। मूर्तिके साथ पीछी-कमण्डल नहीं है। दायीं दीवारमें कृष्ण पाषाणकी हाथ जोडे हए मनि-मति है। नीचे हाथ जोडे हए श्रावक-श्राविका हैं। इस मतिके अधोभ लेख अंकित है। इसी प्रकार बायीं ओरकी दीवारमें भी एक मुनि-मूर्ति खड़ी है। उसके दोनों पावों में चमरवाहक हैं। बगलमें एक यक्षी-मूर्ति है। इन तीनों मूर्तियोंका आकार १ फुट ८ इंच • है। कुछ लोगोंकी धारणा है कि दायीं ओर की दीवारमें बनी हुई मूर्ति आचार्य कुन्दकुन्दकी है और शेष दोनों मूर्तियाँ दो गणधरोंकी हैं। इस मूर्ति-लेखको देखकर यह भ्रान्ति पकड़में सरलतापूर्वक आ जाती है। मूर्ति-लेखके प्रारम्भमें 'कुन्दकुन्द....न्वये' रह गया है । ऐसा प्रतीत होता है कि 'कुन्दकुन्द' शब्दको पढ़कर इस मूर्तिको ही कुन्दकुन्द मान लिया गया। अनुकरणप्रिय लोगोंने बिना देखे-समझे रिपोर्टों, पत्रों आदिमें उसे प्रकाशित कर दिया। समाजमें स्वीकृत तथ्यके रूपमें यह प्रचारित हो गया। ऐसी निराधार मान्यता बड़ी उपहासास्पद प्रतीत होती है। चूलगिरि क्षेत्रको तलहटीके मन्दिरोंका विवरण इस प्रकार है (१) पाश्वनाथ मन्दिर-इसमें मूलनायक भगवान् पार्श्वनाथकी कृष्ण पाषाणकी पद्मासन मूर्ति है। इसकी आकार ३ फुट है। इस मन्दिरमें ५ पाषाण और २ धातु मूर्तियाँ हैं। इसके निर्माता सेठ गम्भीरमल टेकचन्द मनावर हैं। . (२) चन्द्रप्रभ मन्दिर-इसमें चन्द्रप्रभ भगवान्की श्वेतवर्ण मूर्ति है। यह पद्मासन है और ३ फुट ५ इंच उन्नत है । इसके अतिरिक्त यहां २ पाषाणको तथा २ धातुकी मूर्तियां हैं। मन्दिरका निर्माण श्री लच्छीराममलजी अंजड़ने कराया। ____(३) पार्श्वनाथ मन्दिर-इसमें ३ फुट उन्नत पाश्वनाथ स्वामीकी मूर्ति नौ फणावलीसे मण्डित है । मूर्ति कृष्ण पाषाणकी है और पद्मासन है। इसके अतिरिक्त इस मन्दिरमें ३ पाषाणकी और ६ धातुकी मूर्तियां और भी हैं। ___ (४) पाश्वनाथ मन्दिर-इस मन्दिरके निर्माता चौ. गोण्डुसा महाकाल-सा मण्डलेश्वर हैं। इसमें भगवान् पार्श्वनाथकी कृष्ण वर्णकी ३ फुट ऊंची पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। (५) शान्तिनाथ मन्दिर-इसमें मूलनायक शान्तिनाथ स्वामीकी ३ फुट ३ इंच अवगाहनावाली श्वेत वर्ण प्रतिमा है। यह पद्मासन मुद्रामें ध्यानावस्थित है। इस मन्दिरके निर्माता सेठ सेवासा पीपल गोत्र हैं। यहाँ ६ पाषाणकी और १ धातुको प्रतिमा और है । धातुको एक चौबीसी संवत् १४८७ की है। . (६) पाश्र्वनाथ मन्दिर-यहाँ पार्श्वनाथ भगवान्को श्यामवर्ण ३ फुट ३ इंच ऊँची पद्मासन प्रतिमा है । इसके अतिरिक्त दो पाषाण प्रतिमाएं और हैं। इस मन्दिरका निर्माण सेठ शामलाल पन्नालाल धरमपुरीने कराया है।
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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