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________________ २९४ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ नहीं हैं, पृथक् हैं। बायीं ओर चतुर्भुजो गोमुख यक्ष और दायीं ओर षोडशभुजी चक्रेश्वरी यक्षीकी मूर्ति है। ये भगवान् ऋषभदेवके सेवक यक्ष-यक्षी हैं। इस प्रतिमाके दर्शन चरणोंमें खड़े होकर नहीं हो पाते, इसके लिए मूर्तिसे कुछ हटकर सामने खड़ा होना पड़ता है। . बायीं ओर दोवारमें दो फुट ऊंचे एक शिलाफलकमें अजितनाथ तीर्थंकरकी पद्मासन प्रतिमा उत्कीणं है। परिकरमें भामण्डल, छत्र, गजलक्ष्मी और मालाधारी गन्धर्व हैं। चमरवाहक एक हाथमें चमर तथा दूसरे हाथमें जलकलश लिये हुए हैं। प्रतीकात्मक रूपसे सौधर्म और ऐशान इन्द्रोंको सानत्कुमार और माहेन्द्र इन्द्रोंके कार्योंको करते हए दिखाया गया है। अधोभागमें अजितनाथके यक्ष-यक्षी महायक्ष और अजिता बने हुए हैं। चरण-चौकीपर अजितनाथका लांछन हाथी अंकित है। . बड़ी मूर्तिके आगे एक बड़ा चबूतरा है तथा दोनों बाजुओंमें दालान या सभामण्डप बने हुए हैं। बड़ी मूर्तिके अभिषेक आदिके उद्देश्यसे ऊपर जानेके लिए सीढ़ियां और मंच बने हुए हैं। ऊपर मूर्तिके सिरके पीछे एक कमरे में तीन वेदियां बनी हुई हैं। मध्यवेदीमें भगवान् चन्द्रप्रभकी श्वेत पाषाणकी कायोत्सर्गासन प्रतिमा है जिसकी अवगाहना ३ फुट है । यह वीर संवत् २४५७ में प्रतिष्ठित हुई है। - शेष दोनों वेदियोंमें इसी संवत्के प्रतिष्ठित तीन मुनियोंके चरण-चिह्न बने हुए हैं । मुनियोंके नाम हैं-मुनि आनन्दसागरजी, मुनि शान्तिसागरजी और मुनि ज्ञानसागरजी। बावनगजाजीसे कुछ ऊपर जानेपर एकद्वार मिलता है। बायीं ओरको आदिनाथ मन्दिर है। इसमें भगवान् ऋषभदेवकी संवत् १३८० की एक पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। इसकी अवगाहना २ फुट है। बायीं ओर १ फुट १ इंच ऊंचे और १ फुट ५ इंच चौड़े शिलाफलकमें एक पद्मासन तीर्थंकर प्रतिमा विराजमान है। इसके दोनों पाश्वोंमें दो खड्गासन प्रतिमाएं बनी हुई हैं। दायीं ओर एक फलकमें यक्ष-यक्षी बने हुए हैं। दोनों बैठे हुए हैं। उनके दोनों पैर लटके हुए हैं । ये दोनों प्रतिमाएं पहाड़पर उत्खननमें प्राप्त हुई थीं। दायीं ओर श्वेत वर्ण चन्द्रप्रभ विराजमान हैं । प्रतिमाका आकार १ फुट ७ इंच है। यह पद्मासन है और संवत् १९६७ की प्रतिष्ठित है। मन्दिरके बाहर दो खण्डित तीर्थंकर मूर्तियाँ रखी हुई हैं। ये भी उत्खननमें प्राप्त हुई बतायी जाती हैं। पहाड़की चोटीपर चूलगिरि मन्दिर है। यही सिद्धभूमि है। यहींसे मुनि इन्द्रजीत, मुनि कुम्भकर्ण और अन्य अनेक मुनि मुक्त हुए हैं। उनकी साधना, तपस्या और वीतरागतासे पवित्र हुए यहाँके परमाणु अब तक यहांके कण-कणमें व्याप्त हैं। देवताओं और इन्द्रोंने इन मुनियोंका निर्वाणोत्सव इसी स्थानपर आकर धूमधामसे मनाया था । चलगिरि मन्दिरमें महामण्डप और गर्भालय हैं। अन्य मन्दिरोंके समान यह मन्दिर शिखरबन्द है । गर्भालयमें वेदीपर उक्त मुनिराजोंके तीन चरण-चिह्न बने हुए हैं तथा श्वेत पाषाणकी दो प्रतिमाएं विराजमान हैं-मल्लिनाथ और चन्द्रप्रभ । इनके चरण-पीठपर क्रमशः कलश और अर्धचन्द्र ये चिह्न अंकित हैं। इनके अतिरिक्त महामण्डपमें दोनों ओर ३६ मूर्तियां विराजमान हैं। इनमें २ मूर्तियां खण्डित हैं। इन मूर्तियोंमें १४ मूतियाँ संवत् १३८० की है, शेष संवत् १९३९ की प्रतिष्ठित हैं । मूर्तियोंकी चरण-चौकीपर मूर्ति-लेख अंकित हैं। ३६ मूर्तियोंमें १७ श्वेत, ६ कृष्ण और १३ भूरे वर्णकी हैं। मन्दिरके महामण्डपमें ४ शिलालेख भी हैं। शिलालेख संवत् १११६, .१२२३ और १५०८ के हैं। इन शिलालेखोंके अनुसार इन संवतोंमें इस मन्दिरका निर्माण एवं
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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